हरियाणा के बहादुरगढ़ में इंडियन नेशनल लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी की हत्या से एक बार फिर यही जाहिर हुआ है कि अपराधियों का मनोबल इस कदर बढ़ा हुआ है कि वे किसी नेता की हत्या करने से भी नहीं हिचक रहे। कई बार घटना की प्रकृति से भी पता चलता है कि हमलावर कानून से कितने बेखौफ हैं। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कार से पीछा करके अपराधियों ने सरेआम ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं, जिसमें नफे सिंह की जान चली गई और उनके कई सुरक्षाकर्मी भी घायल हो गए। घायल हुए एक अन्य कार्यकर्ता को भी नहीं बचाया जा सका।

हालांकि इस हत्याकांड की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है, मगर अब घटना के बाद एक रस्म की तरह पुलिस ने आरोपियों को जल्दी पकड़ लेने का भरोसा दिया। विंडबना है कि ऐसे आश्वासन अगर पूरे हो भी जाते हैं तो अगली घटनाओं को रोकने के लिए सबक नहीं बन पाते। सवाल है कि ऐसी नौबत आने से पहले सरकार और प्रशासन की ओर से समय पर ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए जाते, जिससे अपराधों पर लगाम लगाई जा सके!

ऐसी घटनाओं में एक आम आशंका यह उभरती है कि क्या इसके पीछे राजनीतिक खींचतान, आपसी रंजिश या फिर महत्त्वाकांक्षाओं का टकराव मुख्य कारण है। यह नफे सिंह राठी की हत्या के संदर्भ में अभी स्पष्ट नहीं हुआ है, मगर उनके बेटे ने इसके पीछे राजनीतिक साजिश होने का दावा किया और कहा कि ऐसे लोग हैं जो उनके पिता को विधायक के रूप में नहीं देखना चाहते थे।

इस मामले में प्रशासनिक तंत्र की कोताही इस रूप में सामने आई है कि खबरों के मुताबिक राठी पर पहले भी हमले हुए थे और लगातार धमकियां दी जा रही थीं। इसके बावजूद सरकार की ओर से उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी। अगर इस अपराध की साजिश पहले रची गई थी, तो प्रशासन इसे भांपने में कैसे नाकाम रहा? यह संभव है कि राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा या आपसी रंजिश के तहत एक नेता की हत्या कर दी गई हो, लेकिन यह साफ है कि अगर सरकार ने समय पर जरूरी कदम उठाए होते, तो इस वारदात को रोका जा सकता था।