भारतीय जनता पार्टी को पहली बार हरियाणा में अपने बूते सरकार बनाने का मौका मिला है, इसी के साथ दस साल बाद राज्य को नया नेतृत्व भी। हरियाणा की बागडोर अब मनोहरलाल खट्टर के हाथ में होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके खट्टर भाजपा में लंबे समय से विभिन्न सांगठनिक जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।
चुनाव अभियान में अपनी रणनीतिक कुशलता भी साबित की। पर वे पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं। जाहिर है, विधायी कार्यों और प्रशासनिक अनुभव के लिहाज से पार्टी के कई दूसरे नेता मुख्यमंत्री पद के लिए कहीं अधिक सशक्त दावेदार थे। पर खट्टर को तरजीह मिली। इसलिए कि वे मोदी के खासे विश्वासपात्र रहे हैं।
संघ से उनका पुराना रिश्ता भी काम आया होगा। बेशक खट्टर के पक्ष में पार्टी के विधायक दल की सहमति ली गई, पर उन्हें चुने जाने के पीछे मोदी और संघ की पसंद होना ज्यादा बड़ा कारण रहा। एक और वजह शायद यह रही कि भाजपा की जीत में गैर-जाट वोटों के ध्रुवीकरण की अहम भूमिका थी और मुख्यमंत्री के चयन में भी पार्टी ने इसका खयाल रखना जरूरी समझा हो। हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है।
अठारह साल बाद पहली बार राज्य का नेतृत्व ऐसे राजनीतिक के हाथ में आया है जिसका ताल्लुक जाट समुदाय से नहीं है। पर खट््टर को यह ध्यान रखना होगा कि कोई समुदाय अपने को उपेक्षित महसूस न करे। मंत्रिमंडल का गठन ऐसा पहला अवसर होगा, जब वे यह संदेश दे सकते हैं। इसके अलावा, प्रशासन और विकास योजनाओं में क्षेत्रीय संतुलन का भी ध्यान रखना होगा।
पिछली सरकार पर एक प्रमुख आरोप यही था कि नई नियुक्तियों और विकास योजनाओं का लाभ एक खास क्षेत्र तक सिमट कर रह गया, जिसके चलते भूपिंदर सिंह हुड्डा को उनके अपने भी कुछ लोग रोहतक का मुख्यमंत्री कहने लगे थे। सामुदायिक और क्षेत्रीय संतुलन बिठाने के साथ ही खट्टर के सामने बड़ी चुनौती प्रशासन को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाने और कानून-व्यवस्था की हालत सुधारने की होगी।
नए मुख्यमंत्री ने कहा है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। बेशक खट्टर की अपनी छवि साफ-सुथरी रही है, पर हरियाणा का कांग्रेसी किला ढहाने के चक्कर में भाजपा ने थोक में कांग्रेस के लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए।
इनमें बहुत-से वैसे लोग भी होंगे, जो पिछली सरकार के समय तमाम सही-गलत कामों में शामिल रहे हों। हरियाणा में अनियमितता की कहानी वडरा मामले तक सीमित नहीं है। राज्य में रियल एस्टेट के कारोबार को पारदर्शी बनाने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। अगर नई सरकार इसके लिए तैयार है, तो उसे इस क्षेत्र के लिए नियामक के गठन की पहल करनी चाहिए।
हरियाणा की गिनती देश के अपेक्षया संपन्न राज्यों में होती रही है। पर कुछ वर्षों से बिजली उत्पादन और आपूर्ति की दुर्दशा ने जहां कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक असर डाला है, वहीं विनिर्माण क्षेत्र की संभावनाओं पर भी। अब केंद्र के साथ-साथ हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है और वह भी अकेले अपने बहुमत के बल पर। स्थिरता और राजनीतिक सहूलियत ने खट्टर के लिए बहानेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है।
जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात की विसंगति और खाप पंचायतों के बेजा फरमान हरियाणा की छवि एक प्रगतिशील राज्य की बनने नहीं देते। खट्टर कई मामलों में पुरातनपंथी खयालों के रहे हैं, और इनका इजहार करते उनके कई बयान विवाद खड़ा कर चुके हैं। यह अंदेशा जताया जा सकता है कि क्या वे हरियाणा को आधुनिकीकरण की राह पर ले जा सकेंगे? क्या यह उम्मीद की जाए कि अब वे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी के अनुरूप मूल्य-बोध का परिचय देंगे!