एक समय खासतौर पर बाघों की तेजी से कम होती संख्या को लेकर चिंता जताई जाने लगी थी, लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें कुछ सुधार आ रहा है। वहीं हाथियों के सुरक्षित जीवन को लेकर भी अलग से योजनाएं रही हैं। हालांकि आज भी बाघ और हाथियों के संरक्षण का सवाल उतना ही अहम बना हुआ है, क्योंकि ये दोनों पशु कई तरह से निशाने पर रहे हैं।
इसके मद्देनजर बाघ और हाथियों के संरक्षण के लिए आवश्यक धन का इंतजाम करने के मकसद से अलग-अलग कोष बनाए गए थे। लेकिन अब इस दिशा में एक अहम बदलाव करते हुए सरकार ने इन दोनों कोषों को साझा बना दिया है। इसके तहत अब राज्यों को इस मामले में साझा वार्षिक योजना भेजी जाएगी। जाहिर है, अब जिन राज्यों में इन दोनों पशुओं के संरक्षण के लिए विशेष गतिविधियां चल रही होंगी, अब उनमें अब कम से कम धन की जरूरत को एक तरह से नए सिरे से संयोजित करना पड़ेगा। हालांकि बाघ और हाथियों के संरक्षण के लिए प्रशासनिक ढांचा चूंकि पुराना ही रहेगा, इसलिए नई व्यवस्था के तहत साझा कोष में मिली राशि के उपयोग में ज्यादा जटिलता नहीं खड़ी होगी।
दरअसल, इस फैसले का मकसद यह है कि इसके जरिए प्रभावी एकीकरण और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। सरकार का मानना है कि इससे दोनों पशुओं के संरक्षण के मदों में धन जारी करने की प्रक्रिया आसान हो सकेगी, वक्त की बचत होगी और सबसे अहम कि इस क्रम में दोहराव की प्रक्रिया से बचा जा सकेगा।
वन्यजीव संरक्षण के दायरे में आने वाले ये दोनों पशु पारिस्थितिकी के लिए बेहद जरूरी माने जाते रहे हैं। लेकिन मनुष्य और पशु के बीच टकराव के क्रम में एक समय इनके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगे थे। यही वजह है कि इनके संरक्षण के लिए विशेष इंतजाम किए गए। गौरतलब है कि भारत में इस साल बाघों के संरक्षण के मामले में पचास साल और हाथियों के संरक्षण के संदर्भ में तीस साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। इतने लंबे वक्त से चल रही योजनाओं की वजह से इन दोनों पशुओं की संख्या और उनकी जीवन-स्थितियों को बेहतर बनाने में मदद मिली है।
संरक्षित पशु के रूप में बाघ और हाथियों के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि जंगल में कई बार बाघों की देखरेख या निगरानी और उन्हें खोजने के काम में हाथी बेहद उपयोगी साबित होते रहे हैं। इसलिए अगर इस मामले में कोई साझा कार्यक्रम बन रहा है तो इसकी अहमियत समझी जा सकती है। लेकिन हकीकत यह भी है कि एक ओर बाघों के पर्यावास क्षेत्र के आसपास इंसानी आबादी के विस्तार की वजह से जहां मनुष्य और जंगली पशुओं के बीच टकराव और बाघों के मारे जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं, वहीं आए दिन ट्रेन से टकराने या अन्य वजहों से हाथियों की मौत की खबरें भी आती रहती हैं।
कई जगहों पर जंगलों के बीच से ट्रेन की पटरियां गुजरती हैं और वहां घेरा बनाने का मसला आधा-अधूरा बना हुआ है। यों मानव बस्तियों के साथ-साथ हाथियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ राज्यों में हाथी गलियारे का निर्माण किया गया था। लेकिन इनमें कई गलियारे खराब स्थिति में हैं, जिनकी वजह से हाथियों के जीवन पर जोखिम बना रहता है। इसलिए जरूरी है कि वन्यजीवों के रूप में पारिस्थितिकी के लिए अहम इन दोनों पशुओं के संरक्षण के लिए कोई भी नई योजना व्यवहार में इनकी सुरक्षा तय करने में मददगार साबित हो।
