वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में बढ़ोतरी के आंकड़े इस बात का संकेत दे रहे हैं कि कोरोना महामारी से उपजे संकट के कारण महीनों से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था में अब जान आने लगी है। पिछले आठ महीने में पहली बार जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा। अगर कर संग्रह का यह सिलसिला आगामी महीनों में भी बना रहा तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा और अगले वित्त वर्ष से हालात तेजी से सुधरने लगेंगे।
पिछले महीने यानी अक्तूबर में जीएसटी संग्रह एक लाख पांच हजार पांच सौ पंद्रह रुपए रहा, जबकि पिछले साल (2019) इसी अवधि में यह पनचानबे हजार तीन सौ उनासी करोड़ रुपए रहा था। सालाना हिसाब से इसमें दस फीसद की वृद्धि हुई है। देश में कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए इस साल मार्च के अंतिम हफ्ते से दो महीने तक के लिए देशभर पूर्णबंदी लगा दी गई थी।
इस कारण सारे छोटे-बड़े उद्योग-धंधे बंद हो गए, करोड़ों लोगों का काम छिन गया, लोगों के सामने पैसे का संकट खड़ा हो गया और मांग, उत्पादन और खपत का चक्र इस कदर ध्वस्त हुआ कि देश का जीडीपी शून्य से चौबीस फीसद नीचे चला गया। हालांकि हालात अभी भी चुनौती पूर्ण हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था को संभालने और गति देने देने के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है।
पूर्णबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों जैसे बिजली, तेल और गैस, कोयला, इस्पात, सीमेंट, खनन और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में उत्पादन पर भारी असर पड़ा था। पिछले दो साल से मंदी की मार झेल रहे वाहन उद्योग का तो भट्ठा ही बैठ गया था। रियल एस्टेट क्षेत्र अभी तक नहीं उबर पाया है। ऐसे में कारखानों में कैसे उत्पादन होता और कैसे कर संग्रह के रास्ते खुलते? औद्योगिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए पूर्णबंदी में चरणबद्ध तरीके से ढील दी गई और समय-समय पर राहत और प्रोत्साहन पैकेज भी जारी किए, जिनका कुछ नतीजा अब दिखना शुरू हुआ है।
हालांकि छोटे और मझौले उद्योग अभी भी संकट में हैं। अच्छा संकेत यह है कि पिछले दो महीनों में औद्योगिक उत्पादन में जो तेजी आई है, वह तेरह साल में सबसे ज्यादा है। इससे काफी उम्मीदें बंधी हैं। जीडीपी में सात फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले वाहन उद्योग के कारोबार में पिछले महीने अठारह फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दुपहिया वाहनों में पैंतीस फीसद से ज्यादा की वृद्धि देखने को मिली। बिजली और कोयला क्षेत्र में मांग, उत्पादन और खपत बढ़ी है।
चाहे जीएसटी हो या फिर अन्य कर, सरकार को राजस्व तभी मिलेगा जब आर्थिक गतिविधियां सामान्य रूप से चलती रही होंगी।
जीएसटी संग्रह बढ़ना इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी पैसे से राज्यों को भी उनके हिस्से का पैसा मिलता है और उनके कामकाज चल पाते हैं। कई राज्य जीएसटी का अपना हिस्सा नहीं मिलने के कारण संकट में हैं।
ऐसे में राज्यों की माली हालत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस वक्त औद्योगिक गतिविधियों में रफ्तार त्योहारी मांग निकलने से भी बढ़ी है। इसलिए अब ज्यादा चुनौती तो इस बात की है कि मांग और उत्पादन का यह सिलसिला आगे भी बना रहना चाहिए। अगर यह वृद्धि कहीं ठहर गई तो फिर से संकट खड़ा हो सकता है। अर्थव्यवस्था को अभी ऐसे प्रोत्साहनों और पैकेजों की जरूरत है जिनसे नियोक्ता छंटनी के लिए मजबूर न हो, नए रोजगार सृजित हों और लोगों के हाथ में नियमित आमद के रूप में पैसे आएं, तभी बाजारों में रौनक का सिलसिला बनेगा।