प्रकृति अपने मूल स्वरूप में जीवन देती है। लेकिन मौसम का अपना चक्र होता है। बरसात के दिनों में बाढ़ से बड़े पैमाने पर जानमाल के नुकसान की घटनाएं अब आम होती देखी जा सकती हैं। हालांकि बाढ़ या मौसम के अनुरूप अन्य किसी प्राकृतिक उथल-पुथल को रोका जाना संभव नहीं होता, लेकिन इससे बचाव के कुछ साधारण इंतजामों के जरिए बहुत कुछ बचाया जरूर जा सकता है।

विडंबना यह है कि मौसम के स्वरूप के बारे में आज विस्तृत अध्ययन की सुविधा होने और उसके बारे में काफी हद तक सही पूर्वानुमानों के बावजूद अमूमन हर साल आपदाओं की वजह से जानमाल का व्यापक नुकसान होता है। हजारों लोगों की जान चली जाती है, अरबों रुपए की संपत्तियां तबाह हो जाती हैं।

हाल में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब आदि इलाकों में भारी बरसात और बाढ़ ने जैसा कहर ढाया, वह सबके सामने है। इससे पहले भी बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों में हर वर्ष बाढ़ बहुत तबाह करती रही है। अब केरल और कर्नाटक जैसे दक्षिण भारतीय इलाकों में भी बरसात और बाढ़ की वजह से भारी क्षति होने लगी है।

गौरतलब है कि सोमवार को सरकार ने राज्यसभा में बताया कि देश में सन 2012 से 2021 के बीच बाढ़ और भारी बारिश की वजह से सत्रह हजार चार सौ बाईस लोगों की जान चली गई। करीब साढ़े पांच लाख पालतू पशुओं की भी मौत हो गई। इस दौरान घरों, फसलों सहित कुल दो लाख छिहत्तर हजार चार करोड़ का नुकसान हुआ।

ऐसी आपदाओं के बाद नुकसानों का सटीक आकलन कई बार मुमकिन नहीं हो पाता, क्योंकि कई स्तर पर वास्तविक क्षति के ब्योरे नहीं दर्ज हो पाते हैं। सही है कि कई बार बाढ़ या अन्य आपदाओं का स्वरूप बिगड़ जाता है और उससे बड़े पैमाने पर तबाही होती है। लेकिन अगर समय पर बचाव के पर्याप्त इंतजाम किए जाएं तो बहुत सारे लोगों की जान बचाई जा सकती है।

यों बाढ़ की आशंका वाले शहरी क्षेत्रों में इस समस्या से निपटने के लिए भूजल पुनर्भरण और अन्य प्रकृति आधारित समाधानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की ओर से कई पहलकदमी हुई है, लेकिन अभी उनका पूरी तरह जमीन पर उतर पाना बाकी है।

यों बरसात के मौसम में कभी ज्यादा बारिश और उससे नदियों में आने वाली बाढ़ एक सामान्य और स्वाभाविक चरण है। अगर नदियों की राह अति की हद तक बाधित नहीं हो, तो पानी अपनी रफ्तार से आकर निकल जाता है और अक्सर जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ा जाता है।

लेकिन किसी भी तरह के अनियंत्रित निर्माण की वजह से नदियों के रास्ते में बाधा खड़ी होती है तो बाढ़ के दिनों में उसका प्रवाह आसपास के इलाकों को तबाह कर डालता है। मुश्किल यह है कि आपदा से होने वाली क्षति के लंबे अनुभवों के बावजूद अब तक बाढ़ की स्थिति में जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम से लेकर वर्षा जल संचयन की दिशा में ठोस योजनाओं को लेकर गंभीरता कम ही दिखती है।

बरसात के मौसम में नदियों के प्रवाह और जलग्रहण क्षेत्रों में आपातकालीन बचाव इंतजाम भी सिर्फ तब दिखते हैं, जब कोई आपदा कहर बरपाने लगती है। जबकि अगर इसे प्रकृति की सामान्य गतिविधि के तौर पर स्वीकार कर लिया जाए तो नदियों के प्रवाह और उसके जलग्रहण क्षेत्रों को बाधित करने के बजाय बचाव की पूर्व तैयारी की जा सकती है। इसके अलावा, आपदा के दौरान आपात स्थिति में बचाव कार्यों का तंत्र ठोस तरीके से काम करे तो मनुष्यों और अन्य जीवों की नाहक मौत को टालने के साथ-साथ अन्य नुकसानों को काफी कम किया जा सकता है।