सरकार स्वदेशी तकनीक के विकास और व्यापार घाटा पाटने की दिशा में गंभीरता से प्रयास कर रही है। इसी क्रम में उसने विदेशी लैपटाप, टैबलेट और कंप्यूटरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। माना जा रहा है कि इससे भारत में बनने वाले इन उपकरणों की बिक्री बढ़ जाएगी। इनके आयात पर प्रतिबंध संबंधी इस घोषणा के बाद कुछ स्वदेशी कंपनियों के शेयरों में उछाल भी देखा गया।
हालांकि यह सरकार का अचानक लिया या कोई बिल्कुल नया फैसला नहीं है। इससे पहले सैकड़ों ऐसी विदेशी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, उनमें रक्षा उपकरणों से संबंधित कई चीजें भी शामिल हैं। खबरों के मुताबिक, लैपटाप, टैबलेट आदि उपकरणों के आयात के लिए लाइसेंस को जरूरी किए जाने के बाद कंपनियों को आवेदन के लिए अधिक वक्त दिया जा सकता है।
यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि पहले से पारगमन में मौजूद खेप को मंगाने में कंपनियों को किसी तरह की असुविधा न हो। दरअसल, इस भूमंडलीकरण के जमाने में जब सारी दुनिया एक बाजार में तब्दील हो गई है, लोगों को यह आजादी मिली है कि वे अपनी पसंद से अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएं कहीं से भी खरीद सकते हैं। इस तरह विदेशी वस्तुओं का चुनाव लोगों की आदत में शामिल हो गया है।
इसका असर देश में बनने वाली वस्तुओं पर पड़ता है। स्वाभाविक ही, घरेलू बाजार में जगह न मिल पाने के कारण स्वदेशी कंपनियां अपने उत्पाद की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार करने में सक्षम नहीं हो पातीं। ऐसे में लोगों की आदतें सुधारने की दृष्टि से भी ऐसे प्रतिबंध कई बार जरूरी होते हैं।
विदेशी कंप्यूटरों, लैपटाप आदि पर प्रतिबंध के पीछे सुरक्षा कारण बताए गए हैं। इनमें एचएसएन कोड 8471 वाले सात श्रेणी के कंप्यूटरों, लैपटाप और टैबलेट पर ही प्रतिबंध लगाया गया है। एचएसएन यानी ‘हार्मोनाइज्ड सिस्टम आफ नामेनक्लेचर’ कोड एक वर्गीकरण प्रणाली है, जिसका उपयोग कराधान उद्देश्यों के लिए उत्पादों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
इस कोड का उपयोग उन उपकरणों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो डेटा प्रोसेसिंग कार्य करने के लिए तैयार किए गए हैं। इस तरह लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित रखने के मकसद से यह कदम उठाया गया है। इन दिनों जिस तरह लोगों के निजी आंकड़ों की चोरी और उन्हें दूसरे देशों की कंपनियों को बेचने की प्रवृत्ति बढ़ी है, उसमें दूसरे देशों में तैयार ऐसी प्रणाली पर नजर रखना कठिन काम साबित होता है।
फिर चीन जैसे कुछ देश जासूसी के नए-नए तरीके ईजाद करते देखे जाते हैं, उसमें भी ऐसी प्रणाली खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए नए फैसले में कोरिया और चीन से आयात होने वाले ऐसे उपकरणों की खेप में कटौती की गई है। अब वही कंपनियां इन उपकरणों का कारोबार कर सकती हैं, जो भारत में ही इनका उत्पादन या संकलन करती हैं।
हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि इस फैसले से विश्व व्यापार नियमों का उल्लंघन होगा और सरकार यह इसलिए कर रही है कि उसका मकसद अपनी चहेती कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाना है। मगर सरकारें अपने सुरक्षा कारणों से ऐसे फैसले ले सकती हैं। फिर लोगों को बाहर से ऐसी मशीनें मंगाने पर प्रतिबंध नहीं होगा, इसके लिए उन्हें आयात शुल्क भुगतान करना पड़ेगा।
दरअसल, बाहर की वस्तुओं पर रोक लगाने के पीछे सरकार का एक बड़ा मकसद यह भी है कि इस तरह उसका व्यापार घाटा काफी कम हो जाता है। दरअसल, निर्यात के मामले में भारत अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा है और आयात में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, जिससे व्यापार घाटा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है। इस तरह आयात पर प्रतिबंध लगा कर सरकार बेशक व्यापार घाटा कुछ पाट सकती है, मगर बिना निर्यात बढ़ाए अर्थव्यवस्था को गति देना एक चुनौती बनी ही रहेगी।
