जनसत्ता 20 अक्तूबर, 2014: देश से बाहर जमा काले धन को वापस लाएंगे, लोकसभा चुनाव में भाजपा का यह एक खास मुद््दा था। नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी रैली में यह वादा जोर-शोर से दोहराते थे। उन्होंने कहा था कि बाहर के विभिन्न बैंकों में चोरी-छिपे देश के अरबों-खरबों रुपए जमा हैं; वे देश की पाई-पाई वापस लाएंगे, वह सारा पैसा गरीबों में बांट देंगे। कभी कहा कि हर गरीब परिवार के हिस्से करीब पंद्रह लाख रुपए आएंगे, कभी कहा कि हर गरीब आदमी को तीन लाख रुपए हासिल होंगे। पार्टी के अन्य तमाम नेता भी यही राग अलापते थे कि बाहर जमा काला धन जल्दी ही वापस आएगा, बस भाजपा के सत्ता में आने की देर है। लेकिन केंद्र की सत्ता संभालने के पांच महीने बाद अब भाजपा भी वही कह रही है जो कांग्रेस कहती थी। काले धन पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान पिछले हफ्ते मोदी सरकार ने कहा कि वह विदेशों में गुप्त खाता रखने वाले भारतीयों के नाम उजागर नहीं करेगी, क्योंकि ऐसा किया गया तो काले धन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए भारत से समझौता कर चुके देश नाराज हो जाएंगे। यही बात यूपीए सरकार भी कहती थी कि दोहरे कराधान से बचाव के समझौते खुलासे के आड़े आ रहे हैं। तब भाजपा नेताओं को यह दलील निरी बहानेबाजी लगती थी। उन्होंने यूपीए सरकार के हर स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए काले धन की वापसी को लेकर उसके गंभीर न होने, यहां तक कि उस पर दोषियों को बचाने का भी आरोप मढ़ा था। पर अब मोदी सरकार का भी रुख वही है जो यूपीए सरकार का था। और अब स्वामी रामदेव खामोश हैं, जिन्होंने काले धन की वापसी को लेकर आंदोलन चलाया था! वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सारी अड़चन उन समझौतों की वजह से आ रही है जो पिछली सरकार ने किए थे। अगर यह बाधा दूर की ही नहीं जा सकती, तो भाजपा ने सत्ता मिलने पर काला धन वापस लाने का वादा क्यों किया?

 

क्या यह कहना गलत होगा कि भाजपा इस मामले में शुरू से सब्जबाग दिखाती रही है? जिनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने बाहर जमा काले धन की जांच के लिए विशेष टीम के गठन का आदेश दिया था, उन्होंने यानी राम जेठमलानी ने मोदी सरकार की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया है, यह कहते हुए कि ये दलीलें आरोपियों को ही शोभा देती हैं, सरकार को नहीं। सर्वोच्च अदालत ने अंतरराष्ट्रीय करारों की आड़ लेने पर यूपीए सरकार को खरी-खोटी सुनाई थी और यह तक कहा था कि अगर ये करार बाधक साबित हो रहे हैं, तो अच्छा होगा कि ऐसे करार न किए जाएं। तब यूपीए सरकार जिस कठघरे में खड़ी थी, अब मोदी सरकार भी वहीं नजर आ रही है। सवाल यह भी उठता है कि अगर मोदी सरकार सचमुच काले धन पर अंकुश लगाने और उसे पकड़ने के लिए संजीदा है, तो उसका प्रवाह बंद करने के लिए वह क्या कर रही है। काला धन केवल वही नहीं है जो स्विस बैंकों और इस तरह के अन्य विदेशी ठिकानों में जमा है। रिश्वतखोरी और शेयर बाजार में पहचान छिपा कर निवेश करने से लेकर फर्जी कंपनियां खड़ी करने तक काले धन की ढेर सारी प्रक्रियाएं हैं। चुनाव में भी बड़े पैमाने पर काला धन इस्तेमाल होने की बात कही जाती है। इस सारे गोरखधंधे को बंद करने के कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?

 

 

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