भाजपा के सत्ता में आने से शिक्षा के भगवाकरण का जो अंदेशा जताया जा रहा था वह गहराता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण हरियाणा में शैक्षिक मार्गदर्शक के रूप में दीनानाथ बतरा को चुना जाना है। पिछले हफ्ते राज्य के शिक्षामंत्री रामविलास शर्मा ने एलान किया कि बतरा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी जो शिक्षा में सुधार के सुझाव देगी। बतरा कैसी सलाह देंगे इसका अंदाजा उनकी पुस्तकों से लगाया जा सकता है, जिनमें स्टेम सेल जैसी आधुनिक वैज्ञानिक खोज को प्राचीन भारत में हुई बताया गया है और वर्तमान भारत के बजाय अतीत के ‘अखंड भारत’ के मानचित्र को मानने की वकालत की गई है।

बतरा की पुस्तकों को इतिहासकार खारिज कर चुके हैं। लेकिन उन्हें हरियाणा सरकार ने सलाह देने के लिए चुना तो साफ जाहिर है कि उसके लिए अकादमिक जगत की राय नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव ज्यादा मायने रखता है। बतरा का संघ से नाता जाहिर है। वे संघ से संबद्ध शिक्षा बचाओ आंदोलन के अगुआ रहे हैं। संघ के लिए उनका महत्त्व जो हो, सवाल यह है कि क्या हरियाणा में वैसी ही मनगढंत धारणाओं को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा, जो बतरा की पुस्तकों की खासियत हैं और जिसके चलते बतरा खासे विवादास्पद हो चुके हैं। वे तब भी विवाद में आए थे जब अमेरिकी विद्वान वेंडी डोनिजर की एक किताब को भारत में न बिकने देने के लिए उन्होंने मुहिम छेड़ दी थी। एक शिक्षाविद में विचारों के प्रति खुलापन होना चाहिए। बतरा इस कसौटी पर कहां नजर आते हैं? संघ से जुड़े तमाम लोग यह दलील देते रहे हैं कि शिक्षा में बदलाव की जरूरत है, उसे भारतीयता और भारतीय मूल्यों के अनुरूप ढालना होगा। ऊपर से सही दिखती इस दलील के बरक्स कई बातें विचारणीय हैं। इससे कौन इनकार कर सकता है कि शिक्षा कोई जड़ चीज नहीं है। शिक्षा नीति में कई बार परिवर्तन-संशोधन हुए हैं। जो कुछ पढ़ाया जा रहा है उसकी समीक्षा हो और जो परिवर्तन जरूरी जान पड़ें उन्हें शामिल किया जाए, यह मान्य शिक्षाविदों की देखरेख में होना चाहिए, न कि उनकी अगुआई में जिन्हें बस संघ के पूर्वग्रहों को बच्चों के दिमाग में ठूंसने से मतलब है। मगर जब खुद प्रधानमंत्री स्टेम सेल और प्लास्टिक सर्जरी को पौराणिक किस्से में बदल दें, तो समझा जा सकता है कि भाजपा की राज्य सरकारों को कैसी प्रेरणा मिल रही होगी!

हरियाणा में शिक्षा सुधार संबंधी सलाहकार के तौर पर बतरा का चयन वैसा ही आपत्तिजनक है जैसा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष पद पर वाइ सुदर्शन राव को बिठाने का फैसला था। राव ब्लॉग पर लिखी अपनी एक टिप्पणी में जातिप्रथा को महिमामंडित कर चुके हैं। प्राचीन भारत का गौरव बताने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन इतिहास के रूप में वही बातें पढ़ाई जानी चाहिए, जो तथ्यात्मक कसौटी पर खरी उतरें। मिथकों और रूपकों को विज्ञान साबित करने के फेर में न तो उनका अर्थ और संदेश बचा रह सकता है न विज्ञान की समझ आ सकती है। इस तरह की कवायद से क्या हासिल होगा यह बतरा जैसे लोग ही जानते होंगे, पर आने वाली पीढ़ियों को जो नुकसान होगा उसकी कल्पना ही डराती है। शिक्षा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह बारीकी और फर्क करना सिखाती है। ऐसी शिक्षा से किसका भला होगा, जो मिथकों, पुराख्यानों, इतिहास और विज्ञान की समझ विकसित करने के बजाय इनके बीच घालमेल करना सिखाए?

 

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