जनसत्ता 13 अक्तूबर, 2014: अप्रैल से जून के बीच जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 फीसद थी। यह नौ तिमाहियों का सबसे ऊंचा स्तर था। ये उत्साहजनक आंकड़े आए तो इसे मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया। यह माना गया कि नई सरकार आने से निवेशकों का हौसला बढ़ा है। फिर यह उम्मीद भी जताई जा रही थी कि यह रुझान बना रहेगा, शायद उसमें और तेजी नजर आए। लेकिन इस सारे अनुमान और उम्मीद पर पानी फिर गया है। बीते शुक्रवार को जारी किया गया केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का आकलन बताता है कि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में महज 0.4 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई, जो कि पांच महीनों का न्यूनतम स्तर है। यह तथ्य कई कारणों से बेहद निराशाजनक है। एक तो यह कि पहली तिमाही के शानदार प्रदर्शन से औद्योगिक उत्पादन में ठहराव का सिलसिला बंद होने और नए आशाजनक रुझान की उम्मीद की जा रही थी। कारों की बिक्री में इजाफे और शेयर बाजार में दिखी तेजी से भी इस उम्मीद को बल मिला था। दूसरे, पिछले साल भी अगस्त में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर इतनी ही, 0.4 फीसद रही थी।

लेकिन इस साल अगस्त में आइआइपी यानी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक को न शेयर बाजार की तेजी से कोई सहारा मिला, न पिछले साल के तुलनात्मक आधार के काफी नीचे होने का। यह भी गौरतलब है कि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में आई कमी का मुख्य कारण विनिर्माण क्षेत्र में आई गिरावट है। आइआइपी में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा पचहत्तर फीसद है। विनिर्माण क्षेत्र रोजगार का भी बड़ा क्षेत्र है, इसलिए इसमें संकुचन रोजगार के अवसरों के लिहाज से भी चिंताजनक है। अगस्त के आंकड़े बताते हैं कि पूंजीगत सामान, उपभोक्ता सामान, टिकाऊ उपभोक्ता सामान, इन तीनों के उत्पादन में कमी आई है। पूंजीगत सामान की बिक्री नए निवेश का परिचायक मानी जाती है, वहीं उपभोक्ता और टिकाऊ उपभोक्ता सामान की खपत बाजार में तेजी का। साफ है कि नए निवेश के लिहाज से भी अगस्त के आंकड़े निराश करने वाले हैं और बाजार में मांग के लिहाज से भी। अगस्त से पहले जुलाई में भी आइआइपी का प्रदर्शन बेहद लचर रहा। दो महीने लगातार आइआइपी के लुढ़कने से स्वाभाविक ही यह सवाल उठा है कि क्या मौजूदा वित्तवर्ष के बाकी महीनों में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन ऐसा रहेगा कि वह नुकसान की भरपाई करते हुए पूरे वित्तवर्ष की विकास दर को पांच फीसद से ऊपर ले जा सके?

ये आंकड़े ऐसे समय आए हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया के नारे के साथ विनिर्माण क्षेत्र को ज्यादा अहमियत देने की मंशा जता चुके हैं। लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में तेजी सिर्फ नारे से नहीं आ सकती। अमेरिका रवाना होने से ऐन पहले नई विनिर्माण नीति का एलान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत को दुनिया एक बड़े बाजार के रूप में देखती है, पर यहां के बाजार में तेजी तब तक नहीं आ सकती जब तक गरीबों की भी क्रयशक्ति नहीं बढ़ती। बात सही है, पर सवाल है कि क्या सरकार की नीतियां कमजोर तबकों की क्रयशक्ति बढ़ाने में मददगार हैं? उपभोक्ता सामान खासकर टिकाऊ उपभोक्ता सामान की मांग तभी बढ़ती है जब महंगाई से लोग राहत महसूस करें और उनके पास बचत की गुंजाइश बने। जबकि थोक मूल्य सूचकांक में भले महंगाई घटी हुई दिखती हो, खुदरा बाजार में उसका दंश लोग रोज महसूस करते हैं। अगर हमारे नीति नियामक सचमुच मांग का दायरा बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें इस नजरिए से भी सोचना होगा कि आम लोगों की आय कैसे बढ़े।

 

 

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