जनसत्ता 10 अक्तूबर, 2014: पिछले कुछ समय से इंटरनेट के जरिए यानी ऑनलाइन खरीद-बिक्री ने हमलावर तरीके से सामान्य खुदरा कारोबारियों और ग्राहकों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। लेकिन बीते छह अक्तूबर को आॅनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट की एक योजना के चलते जो हुआ उससे व्यवसाय के इस स्वरूप पर गहरे सवाल उठे हैं। कुछ साल पहले शुरू हुए ऑनलाइन कारोबार में आज कई बड़ी कंपनियां शामिल हो चुकी हैं और उनके बीच कड़ी प्रतियोगिता चल रही है। इसी प्रतिद्वंद्विता में अपना बाजार बढ़ाने के लिए फ्लिपकार्ट ने अचानक एक ‘बिग बिलियन डे’ सेल की घोषणा कर दी और कई उत्पादों पर भारी रियायत की पेशकश की।
आज लाखों लोग ऑनलाइन खरीदारी पर निर्भर हैं और हर पल यहां विज्ञापित आकर्षक प्रस्तावों पर नजर रखते हैं। शायद इसीलिए फ्लिपकार्ट पर कई चीजों की बिक्री शुरू होने के तुरंत बाद ‘स्टॉक खत्म’ की सूचना आने लगी। इसके अलावा, जिन लोगों ने आॅर्डर कर दिया था, उनमें से बहुतों को बाद में रद्द कर दिया गया। एक ओर, फ्लिपकार्ट ने अपनी वेबसाइट को एक अरब हिट मिलने और छह अरब के सामान खरीदे जाने का दावा किया, वहीं ग्राहकों के बीच भारी नाराजगी फैली। बड़े पैमाने पर ग्राहकों की शिकायतों को देखते हुए सही ही वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने चिंता जताई और जरूरत पड़ने पर ई-रिटेल पर अलग नीति बनाने की बात कही। ग्राहकों का भरोसा व्यापार की सबसे जरूरी शर्त होती है। लेकिन फ्लिपकार्ट की इस कवायद से उसी को सबसे ज्यादा ठेस पहुंची है। शायद इसी से फिक्रमंद फ्लिपकार्ट के संस्थापकों ने पोर्टल की साख बचाने के लिए अपने ग्राहकों को लंबा-चौड़ा माफीनामा भेजा। लेकिन सवाल है कि उसके इतने बड़े और खुले आयोजन की विफलता के बाद ग्राहक उस पर भरोसा कैसे करें!
हालांकि यह एक गैरजागरूक उपभोक्ता-वर्ग की भी पहचान कराता है। अगर ढाई हजार के किसी मोबाइल की कीमत एक रुपए या करीब चौदह हजार रुपए के ‘टैबलेट’ चौदह सौ में मिलने की घोषणा की जा रही हो तो समझने की जरूरत है कि यह धोखे के सिवा और क्या हो सकता है। इसी तरह दिन भर टीवी चैनलों पर सस्ती दर में उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध कराने के दावे वाले विज्ञापन चलते रहते हैं। इनके झांसे में आकर रोज लोग ठगे जाते हैं।
लेकिन हमारे यहां उपभोक्ताओं को जागरूक और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिहाज से समाज और सरकारी तंत्र दोनों विफल हैं। विडंबना है कि इस बाबत फिलहाल कोई ऐसा दिशा-निर्देश नहीं है, जिसके तहत कारोबार के इस तौर-तरीके का नियमन किया जा सके। ऐसी कंपनियां खुद को भले सिर्फ ‘कमीशन एजेंट’ के रूप में पेश करें, इनके बेलगाम और हमलावर प्रचार के साथ-साथ बहुत सारी चीजों पर रियायत एक ऐसा पहलू है, जो सामान्य ग्राहकों को भी आकर्षित करता है। यही वजह है कि ज्यों-ज्यों इंटरनेट उपभोक्ताओं का बाजार बढ़ा है, ऑनलाइन खरीदारी भी नई ऊंचाइयां छू रही है। लेकिन इसका सीधा असर सामान्य खुदरा कारोबार पर पड़ा है। दरअसल, बड़ी पूंजी वाली कंपनियां कम या शून्य मुनाफे पर पहले अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर या खत्म करती हैं, फिर उपभोक्ताओं के सामने विकल्पहीन स्थितियां पैदा कर अकूत फायदा कमाने लगती हैं। खुदरा बाजार में वॉलमार्ट जैसी विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दाखिल होने के विरोध के पीछे यही तर्क है। अब ई-कॉमर्स या ऑनलाइन खरीदारी के चलन ने उसी चुनौती का विस्तार किया है। इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
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