देश में रेल सेवाओं के आधुनिकीकरण और उसे बेहतर बनाने के लगातार प्रयासों के बीच अगर हादसों की रफ्तार पर लगाम नहीं लग पा रही है तो निश्चित रूप से यह चिंता की बात है। हालांकि कई स्तरों पर सुधार की वजह से रेल दुर्घटनाओं में कमी दर्ज की जा रही है, लेकिन अब भी ऐसे हालात बने हुए हैं जिसमें बालासोर हादसे जैसी त्रासद घटना सामने आ जाती है। इसके अलावा, देश भर में रेल पटरियों पर छोटे-बड़े हादसे अक्सर होते रहते हैं। लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने यह जानकारी दी कि 2014 से 2023 के दौरान हर वर्ष औसतन एकहत्तर रेल दुर्घटनाएं हुईं। यह स्थिति तब है जब सरकार की ओर से रेल सेवाओं में बेहतरी के लिए आधुनिक और तकनीकी पहलू से हर स्तर पर काम करने का दावा किया गया और सुविधाओं से लेकर रफ्तार तक के मामले में नए मानक गढ़ने का भरोसा दिया गया।
हादसों में कमी, लेकिन तस्वीर अब भी संतोषजनक नहीं
हालांकि यह कहा जा सकता है कि 2014 से पहले के दस वर्षों की अवधि में हुई रेल दुर्घटनाओं के मुकाबले बाद के इन वर्षों में हादसों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई। लेकिन इसके बावजूद मौजूदा तस्वीर को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।यों रेलपथ, सिग्नल प्रणाली और इंजन आदि में कई स्तर पर सुधार, संरक्षा कार्य और उनके नवीनीकरण और उन्नयन के लिए राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का सृजन करने की पहल हुई है। लेकिन यह भी सही है कि देश में जितनी भी रेल दुर्घटनाएं होती हैं, उनके मुख्य कारणों में इसी मोर्चे पर मौजूद खामियां होती हैं, जिन्हें समय पर या दुरुस्त नहीं किया जाता है। सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, मानवीय विफलताओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को समाप्त करने के लिए इस साल मई तक छह हजार चार सौ सत्ताईस स्टेशनों पर सिग्नल और प्वाइंट के केंद्रीकृत परिचालन वाली इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रानिक इंटरलाकिंग प्रणाली की व्यवस्था की गई है।
इसके अलावा, ग्यारह हजार तेंतालीस समपार फाटकों पर इंटरलाकिंग का इंतजाम किया गया है। लेकिन करीब दो महीने पहले बालासोर में तीन ट्रेनों के आपस में टकरा जाने का जो भयानक हादसा हुआ था, उसमें शुरुआती तौर पर यांत्रिक गड़बड़ियों और मानवीय त्रुटियों को ही जिम्मेदार बताया गया था। जाहिर है, संसाधनों की व्यवस्था के साथ-साथ उसके उपयोग के मामले में भी जरूरी प्रशिक्षण और सजगता सुनिश्चित करने की जरूरत है।
यह जोर देकर बताया जाता है कि ट्रेनों की रफ्तार को बढ़ाया जाएगा। कई मामले में ऐसा संभव भी हो सका है। लेकिन यह पहलू भी ध्यान रखने की जरूरत है कि पटरियों की गुणवत्ता और आयु के मुताबिक उस पर बोझ हादसों की स्थितियों को प्रभावित करते हैं। रखरखाव या प्रबंधन और निगरानी के मामले में बहुत मामूली चूक किसी तेज रफ्तार ट्रेन के हादसे को ज्यादा भयावह रूप दे सकती है। इसी तरह, दुर्घटनाओं को रोकने के लिए टक्कर-रोधी प्रणाली के विस्तार की गति अभी बहुत धीमी है। इसलिए कमोबेश हर दुर्घटना के बाद कारण के रूप में जिन बातों को चिह्नित किया जाता है, उन्हें दूर करने को लेकर उतनी ही सजगता भी दर्शायी जानी चाहिए।
रेल महकमे में दो लाख चौहत्तर हजार पद रिक्त
सूचना के अधिकार के तहत सामने आई एक जानकारी के मुताबिक अब भी रेल महकमे में दो लाख चौहत्तर हजार पद रिक्त हैं, जिनमें करीब पौने दो लाख पद केवल सुरक्षा श्रेणी के हैं। रेल सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने के बीच तेज रफ्तार और सुविधाओं से लैस ट्रेनों के संचालन के साथ-साथ सुरक्षा और संरक्षा के मोर्चे को भी पूरी तरह दुरुस्त करने की जरूरत है। अन्यथा हर साल इतनी तादाद में होने वाले हादसे रेलवे के आधुनिकीकरण के सामने एक बड़ी चुनौती बने रहेंगे।