जनसत्ता 13 नवंबर, 2014: जातीय पंचायतों के प्रेमी जोड़ों के सिर कलम करने, कोड़े बरसाने, गांव छोड़ कर चले जाने, किसी समुदाय या जाति विशेष पर हमले करने जैसे फरमानों से किसी समाज की कैसी तस्वीर उभरती है? यह बात हैरान भी करती है और स्तब्ध भी, कि हमारे देश में जब-तब कुछ कथित पंचायतें ऐसा काम करती हैं जैसा तालिबानी गुट करते हैं। इससे हमारी सामाजिक प्रगति और एक लोकतांत्रिक और सभ्य देश होने के हमारे दावे पर सवालिया निशान लगता है।
विडंबना यह है कि न तो सरकारें इससे खास चिंतित नजर आती हैं न राजनीतिक दल। बल्कि ऐसी बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय कई बार कुछ राजनीतिक भी ऐसे फरमान जारी करने वालों का बचाव करते दिखते हैं। इसके पीछे उनकी सामंती मानसिकता के अलावा जाति-समुदाय के वोट का गणित भी काम कर रहा होता है। स्थानीय राजनीतिकों के संरक्षण की वजह से पुलिस भी दायित्व निभाने में हिचकती है। इसी का नतीजा है कि जातीय पंचायतों पर अंकुश लगाना मुश्किल बना हुआ है। राजस्थान के राजसमंद में चारभुजा क्षेत्र की जातीय पंचायत ने एक महिला को अर्धनग्न अवस्था में मुंह काला करके गधे पर बिठा कर पूरे गांव में घुमाने का आदेश दिया तो शायद उसे भरोसा रहा होगा कि प्रशासन उनके साथ कोई सख्ती नहीं बरतेगा। पीड़ित महिला का दोष स्पष्ट नहीं है। कुछ दिन पहले उसके एक रिश्तेदार की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई थी, जिसे लेकर शक जाहिर किया गया कि उसमें पीड़ित महिला का हाथ रहा होगा। फिर जातीय पंचायत ने उसे निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाने का फरमान सुना डाला। इस मामले में पुलिस ने उनतालीस लोगों को गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू कर दी है। मगर फौरी तत्परता काफी नहीं है। यह जरूरी कि ऐसी पंचायतों की मनमानियों पर लगाम लगे और इस मामले में कार्रवाई तर्कसंगत परिणति तक पहुंचे।
संवैधानिक प्रावधान के तहत देश में हर कहीं निर्वाचित पंचायतें हैं। उन्हें गांव के सामाजिक-आर्थिक मामलों में कुछ अधिकार हासिल हैं। वे कई योजनाओं की भी स्थानीय कड़ी हैं। फिर भी कई जगह जातीय पंचायतों का दबदबा दिखता है। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाप पंचायतें कई ऐसे फैसले सुना चुकी हैं जो कानून के खिलाफ तो थे ही, क्रूरता की मिसाल भी थे। पर उनके खिलाफ कोई ऐसा प्रशासनिक कदम नहीं उठाया जा सका, जिससे उनमें कानून का भय पैदा हो। ऐसी घटनाओं की खबरें बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि से भी आती रही हैं।
राजसमंद की घटना ने यही साबित किया है कि राजस्थान भी इस मानसिकता से मुक्त नहीं है। महिलाएं जातीय पंचायतों का सबसे आसान निशाना होती हैं। उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाने, कोड़े लगाने, खौलते तेल में हाथ डाल कर सत्य परीक्षण करने या फिर चुड़ैल बता कर मार डालने जैसी कई घटनाएं ज्यादातर पंचायती आदेशों से होती हैं। क्रूरता भरे इस ‘न्याय’ में हमेशा वही होता है जो दबंग लोग चाहते हैं। इसलिए न सिर्फ महिलाएं बल्कि कमजोर जातियों के पुरुष भी इन पंचायती फैसलों के शिकार होते रहे हैं। राजसमंद की घटना में कानूनी कार्रवाई अंजाम तक पहुंचे, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा। जिस राज्य की कमान एक महिला राजनीतिक के हाथ में हो, वहां इतनी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए!
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