जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2014: कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का रुख छिपा नहीं है। वह बार-बार इस समस्या का समाधान आपसी बातचीत के बजाय तीसरे पक्ष की उपस्थिति में निकालने की मांग करता रहा है। मगर इस बार जिस तरह उसने पहले खुद सीमा पर संघर्ष विराम समझौते का लगातार उल्लंघन कर भारतीय सेना को उकसाने का काम किया और फिर संयुक्त राष्ट्र के सामने भारत के खिलाफ शिकायत लेकर पहुंच गया उससे उसने विश्व बिरादरी के सामने अपनी ही भद पिटवा ली। संयुक्त राष्ट्र ने दो टूक जवाब दिया कि भारत और पाकिस्तान आपसी बातचीत के जरिए अपने मतभेदों को दूर करने की कोशिश करें। यह पहली बार नहीं है जब उसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ने यह नसीहत दी है। मगर पाकिस्तान खुद कभी कश्मीर मसले को लेकर किसी सही नतीजे पर पहुंचने के लिए गंभीर नहीं रहा। जब भी भारत की ओर से बातचीत की पहल होती है, वह जानबूझ कर कोई न कोई ऐसा कदम उठा देता है, जिससे शांति प्रयासों में बाधा पहुंचती है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही संकेत दे दिया था कि वे पाकिस्तान के साथ अपने मतभेदों को दूर करने के सारे प्रयास करेंगे। मगर जब दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की बातचीत का समय नजदीक आया तो पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं की बैठक बुला कर भारत को अंगूठा दिखाने की कोशिश की। फिर जिस समय जम्मू-कश्मीर के लोग प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे थे पाकिस्तानी सैनिकों ने एक महीने के भीतर सत्रह बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, जिसकी वजह से सीमा के आसपास के लोगों को नाहक दर-बदर होना पड़ा और कई लोग इस गोलीबारी में मारे गए।
दरअसल, पाकिस्तान खुद अपने अंतर्विरोधों से बाहर नहीं निकल पाया है। वहां के राजनीतिक नेतृत्व की गर्दन पर सेना और कट्टरपंथी ताकतों की पकड़ इतनी मजबूत है कि वह राजनीतिक तरीके से कश्मीर समस्या का हल निकालने की पहल कर ही नहीं पाता। वहां की सेना और कट्टरपंथी ताकतें भारत के प्रति नफरत का माहौल बना कर ही अपने अस्तित्व को बचाए रख सकती हैं। इसलिए वे नहीं चाहतीं कि किसी भी तरह दोनों देशों के बीच राजनीतिक तालमेल ठीक हो। इस बार सीमा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन के पीछे माना जा रहा था कि चूंकि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक हैं, इसलिए सेना की मदद से कट्टरपंथी ताकतें अपने लोगों को इस पार भेजने के प्रयास में जुटी थीं। मगर जिस समय कश्मीर में तबाही का मंजर था, ऐसी हरकत करके उसने कश्मीरी लोगों के प्रति कौन-सी हमदर्दी दिखाई। फिर संयुक्त राष्ट्र के सामने किस मुंह से उसने भारत के खिलाफ आरोप लगाया कि सीमा पर अशांति के लिए जिम्मेदार वही है। संयुक्त राष्ट्र उसकी हरकतों से बखूबी वाकिफ है कि पहले वह खुद भारत को ललकारता है और फिर इस तरह विश्व पटल पर चर्चा का माहौल बनाने का प्रयास करता है। भारत की शांति बहाली की कोशिशें भी उससे छिपी नहीं हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र से एक बार फिर मुंह की खाकर पाकिस्तान को क्या हासिल हुआ। दरअसल, वह खुद इतनी समस्याओं से घिरा हुआ है कि उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता। जिन आतंकवादी संगठनों को वह भारत के खिलाफ पोसता रहा, वही अब उसके लिए परेशानी पैदा करने लगे हैं। इसलिए जब तक पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व अपनी असल समस्याओं से पार नहीं पा लेता, कश्मीर मसले को सुलझाने की दिशा में उसका कोई भी कदम सकारात्मक नहीं हो सकता।
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