जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2014: ताजमहल पर पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर लंबे समय से अंगुलियां उठती और चिंता जताई जाती रही है। पर्यावरणविदों और इतिहासकारों ने इसके भविष्य को लेकर कई बार गहरी चिंता प्रकट की है। खुद सर्वोच्च न्यायालय ताजमहल की सुरक्षा को लेकर सख्त आदेश जारी कर चुका है। इसके मद्देनजर समय-समय पर कई कोशिशें भी हुर्इं, ताजमहल के आसपास चल रही औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। मगर सच यह है कि अब तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकल सका है और आज भी नियम-कानूनों की लगातार अनदेखी हो रही है। इसी के मद्देनजर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के पांच जिलाधिकारियों और आगरा के आयुक्त को तलब किया है। हो सकता है कि ताजमहल के संरक्षण से संबंधित महकमों के लिए एक बार फिर कुछ निर्देश जारी हों। पर सवाल है कि इस तरह बार-बार जाहिर की जाने वाली चिंताओं का हासिल क्या है!
आसपास की औद्योगिक इकाइयों के धुएं और प्रदूषण ने ताजमहल के सफेद संगमरमर की क्या हालत बना दी है, यह किसी से छिपा नहीं है। आज भी आगरा और उससे सटे जिलों में गैरकानूनी तरीके से कांच और चीनी मिट््टी के बर्तन बनाने के उद्योग चलाए जा रहे हैं। जबकि करीब चौदह साल पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने ताज नगरी में पेट्रोल-डीजल से चलने वाले उद्योगों पर पाबंदी लगा दी थी और उन्हें प्राकृतिक गैस से चलाने का आदेश दिया था। तब आगरा और उसके आसपास के कुछ जिलों को मिला कर बाकायदा ताज संरक्षण क्षेत्र बना दिया गया था, जहां नए उद्योग-धंधे लगाने पर रोक है। इस समूचे इलाके में कोयले के उपयोग और र्इंट भट्ठों पर भी पाबंदी है। लेकिन विचित्र है कि ताजमहल को बचाने के मकसद से लागू इन नियम-कायदों का पालन करना न स्थानीय लोगों को जरूरी लगा, न सरकार ने इस पर सख्ती से अमल सुनिश्चित किया। इस अनदेखी की वजह से पिछले दो-तीन सालों में इस क्षेत्र में अवैध रूप से कांच और चीनी मिट्टी के बर्तन के कई नए कारखाने खोले गए और पुराने कारखानों का विस्तार किया गया। गौरतलब है कि कांच और चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। वायु प्रदूषण की दूसरी वजहों के साथ-साथ मुख्य रूप से इस गैस के असर से ताजमहल के सफेद और चमकीले पत्थरों का रंग फीका पड़ता गया है।
हर साल लगभग एक करोड़ दर्शक ताजमहल देखने आते हैं। इतनी भारी संख्या में लोगों का वहां आना भी ताजमहल के ढांचे पर धीरे-धीरे ही सही, प्रतिकूल असर डालता है। हाल ही में इतिहासकार आर. नाथ ने चेतावनी दी है कि अगर आगरा में पर्यटकों की बढ़ती भीड़ का सही तरीके से प्रबंधन और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का पुनर्गठन नहीं किया गया, तो इस खूबसूरत निशानी के भविष्य पर सवालिया निशान लग सकता है। इस अनदेखी का ही नतीजा है कि देश भर में ऐसी अनेक ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो अतिक्रमण से प्रभावित हैं और वे धीरे-धीरे जर्जर होती जा रही हैं। काफी पहले एक संसदीय समिति ने अपनी रपट में देश भर में कई संरक्षित धरोहरों के ‘लापता’ होने का उल्लेख किया था। सवाल है कि क्या हम तब चेतेंगे जब देश की सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत के रूप में देखा जाने वाला ताजमहल भी खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगा?
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