जनसत्ता 11 नवंबर, 2014: हमारे आसपास अलग-अलग वजहों से होने वाला शोर आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। लोग आमतौर पर उसे प्रदूषण से जोड़ कर नहीं देखते और परेशानी महसूस करने पर भी चुपचाप उसे झेल लेते हैं। जबकि किसी भी रूप में तीखा शोर अन्य तरह के प्रदूषण से कम खतरनाक नहीं है। इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में ही साफ निर्देश दिए थे, जिसके तहत राज्य सरकारों को लाउडस्पीकर, पटाखे चलाने और ध्वनि प्रदूषण के दूसरे कारकों पर पाबंदी लगाने को कहा गया था। उन निर्देशों पर कितना अमल होता है, यह हर कोई अपने अनुभव से जानता है।
पर लोग चुपचाप इसे सहते रहते हैं। ज्यादातर लोग नहीं जानते होंगे कि कहां शिकायत करें। फिर, कोई शिकायत करने को सोचे भी, तो उसे ऐसे व्यक्तियों की नाराजगी मोल लेने का डर सताता है जो परिचित होते हैं या आसपास ही रहते हैं। लेकिन राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक बलवंत सिंह ने खुद को हुई असुविधा का हवाला देकर ध्वनि प्रदूषण की समस्या की बाबत सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। याचिका में उन्होंने जयपुर में विधानसभा भवन के पास स्थित अपने घर के नजदीक राजनीतिक दलों और दूसरे संगठनों के आए दिन होने वाले प्रदर्शनों के दौरान लाउडस्पीकरों की तेज आवाज के खिलाफ शिकायत की और संबंधित महकमों को निर्देश देने की मांग की। अब सर्वोच्च अदालत ने नौ साल पहले दिए गए उसके निर्देशों के मुताबिक राजस्थान सरकार से कदम उठाने को कहा है।
दरअसल, जब भी प्रदूषण का सवाल आता है तो आमतौर पर हवा में घुलते जहरीले तत्त्वों, धुंध-कोहरे या नदियों में बहाए जाने वाले खतरनाक रसायनों तक बात सिमट कर रह जाती है। जल प्रदूषण से चिंतित संपन्न लोग पानी के लिए बाजार के बोतलंबद पानी पर निर्भर होते जा रहे हैं। लेकिन ध्वनि प्रदूषण से तो पैसे वालों को भी बाजार निजात नहीं दिला सकता, जो कि खुद तरह-तरह के शोर का अड््डा है। बाजार ही क्यों, आज हालत यह है कि न सिर्फ पर्व-त्योहार के मौके पर, बल्कि आम दिनों में भी लगभग हर जगह शोर बढ़ता जा रहा है। शादी-ब्याह या किसी समारोह में ऊंचे बजाए जाने वाले लाउडस्पीकर हों, बड़े-बड़े साउंडबॉक्स हों या फिर सड़क पर चलते हुए या जाम लगे होने के बावजूद तेज हॉर्न की आवाज, कानों पर चोट पड़ती रहती है। धार्मिक कार्यक्रमों या जागरण जैसे आयोजनों में दिन-रात इतनी ऊंची आवाज में भक्ति गीत-संगीत बजाया जाता है कि आसपास के घरों में लोगों के लिए सो पाना और बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखाई करना मुश्किल हो जाता है।
तमाम अध्ययन बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा करता है। कई बार खुद पुलिस की मौजूदगी में रात-रात भर ऐसे आयोजनों में लाउडस्पीकर बजते रहते हैं और कोई कार्रवाई तो दूर, आयोजकों को रोका तक नहीं जाता। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च अदालत के ताजा रुख से राज्य सरकारें चेतेंगी और ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने की पहल करेंगी। प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया है। अच्छी बात है। पर अभी तक इसमें पर्यावरण का पहलू क्यों नदारद है?
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