जनसत्ता 30 सितंबर, 2014: संयुक्त राष्ट्र महासभा का सालाना अधिवेशन भले वैश्विक मसलों पर केंद्रित रहता हो, यह विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर अलग से बातचीत का अवसर भी बनता रहा है। महासभा को संबोधित करने के दूसरे रोज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला से मुलाकात की। अपने शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही मोदी ने अपनी विदेश नीति में पड़ोसी देशों को खासी अहमियत देने के संकेत दे दिए थे। उस समारोह में सार्क देशों के नेताओं ने भी शिरकत की थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पहले ही स्वदेश रवाना हो चुके थे। क्या पता दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की होने वाली बातचीत भारत की ओर से स्थगित कर दिए जाने के कारण यह उनका सोचा-समझा कदम रहा हो। बहरहाल, पड़ोस पहले की नीति का सकारात्मक असर दिखा। राजपक्षे, शेख हसीना और कोइराला ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मोदी के सुझाव का समर्थन किया है। राजपक्षे ने तो लिखित सहमति भी दे दी है। भारत के मंगल अभियान की कामयाबी ने मोदी के सुझाए सार्क सेटेलाइट मिशन में भी इन पड़ोसी देशों की दिलचस्पी बढ़ी दी है।

शेख हसीना और राजपक्षे ने मोदी से यह भी कहा कि वे अपने यहां उनके आने का इंतजार कर रहे हैं। पर एक राष्ट्राध्यक्ष को अन्य देश की यात्रा पर जाने से पहले अनेक कूटनीतिक पहलू देखने होते हैं। श्रीलंका और भारत के बीच मछुआरों की सुरक्षा को लेकर चली तनातनी फिलहाल थम चुकी है, पर विवाद के स्थायी समाधान का रास्ता निकलना अभी बाकी है। यूपीए सरकार के दौरान बांग्लादेश से तीस्ता के जल बंटवारे का समझौता ममता बनर्जी के विरोध के कारण अधर में लटक गया, पर सीमांकन संबंधी प्रस्तावित समझौते पर खुद भाजपा एतराज जताती रही। मोदी निकट भविष्य में श्रीलंका या बांग्लादेश जाएं या नहीं, पर नवंबर में उन्हें फिर नेपाल जरूर जाना है, इस बार सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सेदारी के नाते। इस तरह पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर बनाने के मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से शुरू हुए प्रयास और आगे बढ़े हैं। न्यूयार्क में इन नेताओं की मुलाकात में आतंकवाद भी बातचीत का एक खास विषय था, जिसकी प्रासंगिकता अलकायदा की हाल में आई धमकी के कारण पहले से कहीं बढ़ गई है। पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पाकिस्तान की साझेदारी और जवाबदेही के बगैर नहीं लड़ी जा सकती। संयुक्त राष्ट्र के मंच से कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान और भारत ने एक दूसरे पर जो भी टीका-टिप्पणी की, यह अच्छी बात है कि दोनों देशों ने वार्ता प्रक्रिया को बहाल करने की रजामंदी दिखाई है।

संयुक्त राष्ट्र के अपने संबोधन में मोदी ने भले शरीफ को सख्त जवाब दिया, पर यह भी साफ कहा कि भारत कश्मीर समेत सभी द्विपक्षीय मुद््दों पर बातचीत के लिए तैयार है। इस पर न केवल पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान में बल्कि वहां के मीडिया में भी सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई है। पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने बातचीत की प्रक्रिया फिर से पटरी पर आने का भरोसा जताते हुए यह भी कहा कि भारत में उनके उच्चायुक्त का हुर्रियत नेताओं से उस वक्त मुलाकात करना अनावश्यक था। भारत चाहता है कि बातचीत शिमला समझौते और 1999 के लाहौर घोषणापत्र की दिशा में हो। लाहौर घोषणापत्र पर अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ ने हस्ताक्षर किए थे। पाकिस्तान की कमान फिर से शरीफ के हाथ में है। दूसरी तरफ वाजपेयी की ही पार्टी के मोदी प्रधानमंत्री हैं। पर समस्या यह है कि कई बार घरेलू राजनीति का बेजा दबाव बातचीत के आड़े आ जाता है। इससे हर हाल में दोनों पक्षों को उबरना होगा।

 

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