एक पखवाड़े में यह दूसरी बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी के सांसदों को यह पाठ पढ़ाना पड़ा कि वे अपनी जुबान पर काबू रखें और कुछ ऐसा न बोलें, जिससे विपक्ष को एकजुट होने का मौका मिले। लेकिन एक ओर प्रधानमंत्री ने सांसदों को कुछ भी बोलते समय ‘लक्ष्मण रेखा’ पार न करने की नसीहत दी, तो दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने फिर धर्मांतरण के मसले पर विवादित बयान दे डाला कि ‘घर वापसी’ एक सतत प्रक्रिया है और यह जारी रहेगी। यह समझना मुश्किल है कि भाजपा के कुछ नेता या सांसद प्रधानमंत्री के आग्रह या सलाह को तरजीह क्यों नहीं दे रहे हैं!
यह विचित्र है कि भाजपा सरकार अपने कामकाज के एजेंडे पर आगे बढ़ने के दावे कर रही है तो दूसरी तरफ आए दिन उसका कोई न कोई नेता ऐसा आपत्तिजनक बयान दे देता है, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा बढ़ने लगता है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में धारा-370 के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भाजपा को असहज स्थिति में डाल दिया था। फिर साध्वी निरंजन ज्योति ने भाजपा समर्थकों के लिए ‘रामजादे’ और विरोधियों के लिए एक बेहद आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल कर दिया, जिस पर उठे विवाद के चलते संसद का कामकाज कई दिन तक बाधित हुआ। लेकिन विपक्ष का एक प्रस्ताव पारित होने के बाद यह मसला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताते हुए उसका महिमामंडन कर डाला।
गौरतलब है कि साध्वी निरंजन ज्योति के विवादित बयान के बाद नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में पार्टी के नेताओं से अपनी जुबान पर काबू रखने की चेतावनी देते हुए कहा था कि इस मसले पर मैं कोई समझौता नहीं करूंगा। मगर हकीकत यही है भाजपा नेताओं में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है। आखिर किन वजहों से प्रधानमंत्री ने ऐसे बोल बोलने वाले नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है? विडंबना है कि ऐसे भाजपा नेता अब भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनकी पार्टी सरकार में है और उनकी बेलगाम जुबान जनता के एक बड़े हिस्से के बीच नकारात्मक संदेश प्रसारित कर रही है। इससे यह संदेश भी जा रहा है कि उनके लिए प्रधानमंत्री की फटकार का कोई महत्त्व नहीं है।
हालांकि भाजपा के निचले स्तर से लेकर उच्च पदों पर बैठे कई नेताओं ने महज विवाद भड़काने के मकसद से कुछ बोलने से शायद ही कभी परहेज किया। गौरतलब है कि सरकार बनने के बाद स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि विकास में तेजी लानी है तो लोग कम से कम दस साल तक के लिए जाति और धर्म के झगड़े भुला दें।
लेकिन खुद भाजपा सहित संघ परिवार से जुड़े लोग लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे तनाव की स्थिति बन रही है। यह भी समझना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री ने तो पार्टी नेताओं से अपनी जुबान काबू में रखने रखने की नसीहत दी, मगर भाजपा अध्यक्ष ने कोई पहल नहीं की है। वे प्रधानमंत्री के नजदीकी माने जाते हैं। इस पर उनकी खामोशी खलती है। यह सिर्फ नसीहत देकर टालने का मामला नहीं, बल्कि पार्टी में अनुशासन बनाए रखने का है। अगर प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष सचमुच सुशासन और पार्टी में अनुशासन को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें कठोर नियम-कायदों से परहेज क्यों करना चाहिए।
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