जनसत्ता 10 नवंबर, 2014: दलित हमारे समाज के सबसे कमजोर समुदाय हैं। सदियों से तरह-तरह की प्रताड़ना और भेदभाव वे झेलते आए हैं। इसलिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उनके लिए विशेष स्थान आरक्षित करने की संवैधानिक व्यवस्था की गई, उन पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए विशेष कानून बनाया गया। कई योजनाएं भी उन्हें ध्यान में रख कर चलाई जाती रही हैं। यह सब, अनेक अड़चनों और कमियों के बावजूद, लोकतांत्रिक भारत की सामाजिक प्रतिज्ञा का हिस्सा रहा है।

पर पंजाब सरकार दलितों के प्रति संवेदनशील नहीं दिखती। वह न सिर्फ अनुसूचित जाति के लिए बनाए गए कल्याणकारी कार्यक्रमों की एक तिहाई राशि खर्च करने में विफल रही, बल्कि कुछ राशि दूसरे मदों में भी लगा दी गई। यह विपक्ष के किसी दल या किसी सामाजिक संगठन का आरोप नहीं है, बल्कि खुद केंद्रीयसामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में इसके तथ्य पेश किए हैं। गौरतलब है कि पंजाब में दलितों की आबादी करीब बत्तीस फीसद है, किसी भी और राज्य की आबादी में दलितों का अनुपात इतना नहीं है। मगर पिछले वित्तवर्ष में कुल योजना-व्यय का अट्ठाईस फीसद ही अनुसूचित जाति के मद में रखा गया। यह साफतौर पर योजना आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। फिर, इस मद की तैंतीस फीसद राशि खर्च नहीं हुई। ऐसा पिछले कई सालों से चल रहा है। नियम-कायदों को ताक पर रख कर पहले एससीएसपी के लिए बजट आबंटन में गड़बड़ी की गई, उसके बाद जो राशि तय की गई उसे खर्च करने में भी कोताही बरती गई। इसका असर साफ दिखने लगा है। अनुसूचित वर्ग के छात्रों को उन्हें मिलने वाली राहत या प्रोत्साहन राशि से वंचित होना पड़ रहा है। अनुसूचित जाति छात्रवृत्ति योजना के तहत दलित विद्यार्थियों को स्कूल-कॉलेजों में फीस से मुक्त रखा गया है। लेकिन उनसे सरकारी और निजी, दोनों तरह के संस्थानों में फीस वसूली जा रही है। इसके खिलाफ पंजाब में कई जगह आंदोलन भी शुरू हो गया है।

दलितों के सशक्तीकरण की योजनाओं के पैसे को दूसरे मदों में खर्च कर देने के मामले में पंजाब अकेला राज्य नहीं है। दलित संगठनों के एक साझा मंच का आरोप है कि ओड़िशा में जहां इस मद में आबंटित राशि का उपयोग जेलों के रखरखाव में कर दिया गया था, वहीं राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली में यह पैसा रबड़ की सड़कें बनाने में खर्च हुआ; गुजरात में एससीएसपी के तहत जारी राशि का इस्तेमाल सद्भावना उपवास के आयोजन में लगाया गया। यह किसी से छिपा नहीं है कि देश भर में दलितों के लोगों के प्रति सामाजिक व्यवहार का इतिहास और वर्तमान क्या है। हर मोर्चे पर इनकी भागीदारी क्या है, यह भी सभी जानते हैं। इस तस्वीर को बदलने की जिम्मेदारी से कोई भी सरकार मुंह नहीं मोड़ सकती। अगर कोई सरकार दलितों-वंचितों के लिए बनाई गई योजनाओं की राशि दूसरे मदों में खर्च कर देती है, तो यह उनका हक मारने जैसा है। अगर राशि का एक खासे हिस्से का उपयोग नहीं होता, तो जिम्मेदारी में गंभीर कोताही का मामला है। उस राशि को किसी और मद में हस्तांतरित करने के बजाय अनूसूचित जाति के आबंटन में ही जोड़ा जाना चाहिए। इससे आगे से पूरी राशि का उसी मद में इस्तेमाल करने का दबाव बनेगा।

 

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