जनसत्ता 22 अक्तूबर, 2014: हर साल बरसात के मौसम में मलेरिया, चिकुनगुनिया, डेंगू, जापानी बुखार जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से कई लोग दम तोड़ देते हैं। पिछले कुछ सालों से दिल्ली में डेंगू पर काबू पाना चुनौती बना हुआ है। बरसात शुरू होने से पहले ही सरकारी घोषणाओं में इससे निबटने के उपाय करने के दावे दिखने लगते हैं। बड़े पैमाने पर विज्ञापनों आदि के जरिए जन-जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। मगर ये हर बार नाकाफी साबित होते हैं। डेंगू के मच्छर पैदा होने की वजहें सब जानते हैं, फिर भी न तो सरकारी स्तर पर इनकी बढ़वार रोकने के मुस्तैद इंतजाम किए जा पाते हैं और न ही लोग इस मामले में गंभीर दिखाई देते हैं। यही वजह है कि इस साल भी जाती बरसात के समय डेंगू के मामले तेजी से बढ़े। पिछले हफ्ते दिल्ली में सड़सठ मामले सामने आए। इनमें एक बच्चे की मौत हो गई। विचित्र है कि सबसे अधिक मामले संभ्रांत माने जाने वाले दक्षिण दिल्ली के इलाके में पाए गए। अब नगर निगम का कहना है कि डेंगू के बढ़वार वाले स्थानों की पहचान कर ली गई है और जल्दी ही इस पर काबू पा लिया जाएगा। ऐसे बयान हर साल आते हैं। हकीकत यह है कि ठंड शुरू होने के बाद जैसे ही मच्छरों का प्रकोप कम होता है, निगम के लोग राहत की सांस लेते और अगले मौसम तक हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते हैं।

 

जिन इलाकों में डेंगू, मलेरिया, चिकुनगुनिया आदि के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं, वहां न जल निकासी की व्यवस्था ठीक है न नालियों पर ढक्कन लगे हैं। कूलरों आदि को साफ रखने, आसपास साफ पानी का जमाव और उसमें डेंगू के मच्छर पलने से रोकने की तमाम अपीलों के बावजूद लोगों का लापरवाह रवैया बना हुआ है। दरअसल, इस समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार की सक्रियता जितनी जरूरी है उतनी ही जन-सहभागिता भी। मगर दोनों मोर्चों पर शिथिलता ही दिखती रही है। यों डेंगू के मच्छरों पर नजर रखने, जल-जमाव की स्थितियां दूर करने, नियमित मच्छर भगाने वाला धुआं छोड़ने आदि के लिए नगर निगम के कर्मचारी तैनात हैं, पर वे अक्सर मुस्तैद नहीं पाए जाते। सरकारी अस्पतालों में डेंगू, जापानी बुखार आदि की रोकथाम के उपाय करने के दावे हर साल किए जाते हैं, पर जब ये रोग पांव पसारने शुरू करते हैं, सरकार और इन अस्पतालों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। हर साल अनेक लोग समय पर इलाज न हो पाने के कारण जान गंवा बैठते हैं। ज्यादातर बरसाती बीमारियों की वजह गंदे पानी का जमाव और साफ-सफाई का अभाव है। तमाम दावों के बावजूद दिल्ली नगर निगम के सामने कचरे का उचित निपटान और सीवर लाइनों की सफाई बड़ी चुनौती बनी हुई है। जगह-जगह कचरे का ढेर कई दिनों तक सड़ता रहता है, जिन पर मलेरिया, चिकुनगुनिया आदि के विषाणु पनपते रहते हैं। यही हाल सीवर लाइनों के फट कर पानी बहते रहने और नालियों के खुली रहने से होता है। इसकी जवाबदेही आखिर नगर निगम की है। फिर एक तकाजा नागरिकों के स्तर पर सावधानी का भी है। विचित्र है कि साफ-सफाई के अनेक आधुनिक तकनीकी उपाय मौजूद होने के बावजूद दिल्ली नगर निगम अब भी मानव श्रम के जरिए इन समस्याओं से पार पाने का प्रयास करता है। ऐसी समग्र स्वास्थ्य नीति बननी चाहिए जिसमें स्थानीय निकायों की भी जिम्मेदारी तय की जाए।

 

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