अमेरिका अपनी चौधराहट दिखाने के मौके तलाशता रहता है। सो, हैरानी की बात नहीं कि जब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बढ़ता नजर आया तो उसने बिना देर लगाए मध्यस्थता की पेशकश कर दी। उसने शायद दोनों देशों की मंशा को भी भांपने का प्रयास नहीं किया। भारत और चीन के बीच सीमा पर विवाद नया नहीं है। लद्दाख के जिस इलाके में पिछले दिनों दोनों देशों की सेनाएं सक्रिय हुईं, वहां अब तक सीमा की वास्तविक निशानदेही नहीं हो पाई है, इसलिए भी कई बार गलतफहमियां हो जाया करती हैं। यह ठीक है कि कई बार चीन अपनी साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा के चलते भी शक्ति प्रदर्शन का प्रयास करता है, पर भारत ने हमेशा अपन बूते उसे वापस लौटने पर विवश किया है। दोनों देशों के सेनाधिकारी आपस में बातचीत करके गलतफहमियों को दूर कर लेते रहे हैं। अमेरिका इन बातों से अनभिज्ञ नहीं हो सकता। फिर उसने मध्यस्थता की पेशकश क्या सोच कर की, हैरानी की बात है। उसके खुद के चीन के साथ संबंध कोई अच्छे नहीं हैं। वह चीन को हर समय नीचा दिखाने का मौका तलाशता रहता है। ऐसे में वह मध्यस्थता कर चीन के साथ क्या बातचीत करता?

यह पहला मौका नहीं है, जब भारत के किसी मामले में अमेरिका ने दखल देने की कोशिश की है। कश्मीर के मसले पर भी वह बार-बार मध्यस्थता की पेशकश करता रहा है। मगर भारत ने हर बार उसकी पेशकश को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि हमें अपने पड़ोसी देशों के साथ विवादों में किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरूरत नहीं। फिर भी डोनल्ड ट्रंप ने पिछले साल कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने की इतनी उतावली दिखाई कि उन्होंने मीडिया पर कह दिया कि भारत के प्रधानमंत्री ने उनसे कश्मीर मसले पर मध्यस्थ बनने की अपील की है। इससे नाहक भारत सरकार को असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा। चीन के साथ विवाद को लेकर भी ट्रंप कुछ वैसी ही खामखयाली में मध्यस्थ के रूप में खड़े हो गए। अब जो स्थिति है, पता नहीं उससे उन्हें कैसा लग रहा होगा। अब चीन का भारत के प्रति रुख नरम हो चुका है। जो नेपाल चीन के उकसाने पर भारत के खिलाफ तल्ख तेवर अपनाए हुए था, उसका भी सुर बदला हुआ है। यानी अब तो अमेरिका को बार-बार खुद बिचौलिया बन कर खड़े होने के बजाय यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि भारत अपने बूते अपनी समस्याओं को हल करने में सक्षम है।

भारत और चीन के बीच पैदा विवादों में अमेरिका के कूद पड़ने की कुछ वजहें समझी जा सकती हैं। चीन से उसकी अदावत छिपी नहीं है। अभी कोरोना विषाणु को लेकर उसने चीन को घेरने की कोशिश की। वह किसी भी तरह चीन की ताकत खत्म करना चाहता है। ऐसे में भारत-चीन विवाद उसे एक और मौके के रूप में दिखा, जिसमें पड़ कर चीन को आंखें तरेरी जा सकती थीं और अगर भारत का इशारा मिलता तो उसे सबक सिखाने का भी मौका तलाशा जाता। मगर भारत ने डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह अमेरिका के लिए संकेत काफी था कि वह चीन के साथ अपनी दुश्मनी साधने के लिए भारत को माध्यम न बनाए। इससे भारत के विवेकशील राजनय का परिचय मिला है। इससे शायद अमेरिका को समझ आए कि देशों के बीच रिश्ते किस तरह बनाए और बचाए रखे जाते हैं।