इसे रोकने के लिए कड़े कानून हैं, मादक पदार्थ निरोधक दस्ते सक्रिय देखे जाते हैं, इसके बावजूद न तो इनकी उपलब्धता में कमी आ पा रही है और न इनका सेवन करने वालों की संख्या में। एक ताजा अध्ययन में चिंता व्यक्त की गई है कि अगले एक दशक में दस से सत्रह साल की उम्र के किशोर बुरी तरह नशे की गिरफ्त में आ सकते हैं।
मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दों, कामकाज का दबाव, बढ़ता खालीपन और बदलती सामाजिक आर्थिक स्थितियों का इस वर्ग पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसके चलते वे नशे की गिरफ्त में आसानी से आ जाते हैं। अध्ययन के मुताबिक नशे की बढ़ती लत का दायरा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़ेगा। भारत चूंकि सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है, इसलिए यह अध्ययन अधिक चिंता पैदा करने वाला है।
इस पर काबू पाने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने कुछ उपाय सुझाए हैं, जिनमें अभिभावकों, सामाजिक संस्थाओं की जिम्मेदारी रेखांकित की गई है। मगर जिस तरह नशीले पदार्थों का कारोबार तेजी से फैल रहा है, उसमें ये संस्थाएं प्राय: अशक्त ही नजर आती हैं।
यह सच्चाई है कि किशोरावस्था में बहुत सारे लोग फिल्मी नायकों, अपने वरिष्ठों, परिवार के लोगों आदि को देख कर नशीले पदार्थों के प्रति आकर्षित होते हैं। फिर ऊब, खीझ, खालीपन, पढ़ाई-लिखाई, कामकाज के दबाव में इन पदार्थों का सेवन बढ़ाते जाते हैं। फिर वे इनके लती हो जाते हैं। अब तो महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक में अवैध मादक पदार्थों की उपलब्धता लगातार बढ़ती गई है।
यह छिपी बात नहीं है और नशीले पदार्थों की इतनी किस्में बाजार में सहज उपलब्ध हैं कि बहुत सारे किशोरों, युवाओं के लिए अब ये सामान्य उपभोग की वस्तु जान पड़ते हैं। अभिभावकों, अध्यापकों, रिश्तेदारों, परिचितों से छिप-छिपा कर ही ऐसे नशे का सेवन किया जाता है, इसलिए उनके लिए निगरानी रख पाना कठिन होता है।
बहुत सारे अभिभावकों को तो तब इसकी भनक मिलती है, जब उनके बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। तब तक उनकी लत पर अंकुश लगाने में काफी देर हो चुकी होती है, बहुत सारे किशोरों पर परामर्श वगैरह का भी असर नहीं हो पाता। वे आक्रामक हो जाते और हर वक्त गुस्से से भरे रहने लगते हैं।
पिछले कुछ सालों में कई ऐसे मामले उजागर हो चुके हैं, जिनमें भारी मात्रा में मादक पदार्थों की खेप किसी बंदरगाह या दूसरे ठिकानों पर पकड़ी गई। उनके आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मादक पदार्थों का कितना बड़ा कारोबार देश में फल-फूल रहा है। मगर जब भी ऐसे पदार्थों की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने की बात होती है, तो छिटपुट जलसों वगैरह में कुछ लोगों को इनका सेवन करते पकड़ कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली जाती है।
इसके असली सूत्र पकड़ से बाहर ही रह जाते हैं। हैरानी की बात नहीं कि कुछ मौकों पर इस कारोबार में कई राजनीतिक रसूख वाले लोगों के नाम भी उजागर हो चुके हैं। ऐसे में सरकारी तंत्र से ही अपेक्षा की जाती है कि वह किशोरों और युवाओं में मादक पदार्थों की बढ़ती लत पर लगाम लगाने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाए। जिस युवा पीढ़ी के बल पर देश के विकास का सपना संजोया जा रहा है, अगर वही नशे की गर्त में होगी, तो भला कैसे विकास होगा।