रक्षा उपकरणों, प्रणालियों और पुर्जों के आयात के बजाय घरेलू स्तर पर बनी वस्तुओं की खरीद को बढ़ावा देने के लिए रक्षा मंत्रालय ने चौथी सूची जारी की है, जिसमें नौ सौ अट्ठाईस उप-प्रणालियों और पुर्जों को चिह्नित किया गया है। इस तरह ढाई हजार वस्तुओं की खरीद घरेलू स्तर पर ही करने का संकल्प लिया गया है।
इनमें से ज्यादातर पुर्जों और उप-प्रणालियों का घरेलू स्तर पर ही निर्माण किया जाता है और करीब बारह सौ वस्तुओं को अगले कुछ सालों में निर्मित और विकसित करने की योजना है। भारत आयुध सामग्री का बड़ा आयातक देश है, इस तरह उसे अपने बजट का काफी बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों, प्रणालियों आदि को खरीदने पर खर्च करना पड़ता है।
यहां तक कि छोटे-छोटे पुर्जों के लिए भी दूसरे देशों का मुंह जोहना पड़ता है। ऐसे में अगर उनका निर्माण और उनकी खरीद घरेलू स्तर पर ही की जाती है, तो इससे कई लाभ होंगे। एक तो यह कि रक्षा सौदों में बिचौलियों पर निर्भरता खत्म होगी, दूसरे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। फिर आयात घटने से व्यापारिक घाटे का अंतर भी काफी कम होगा। पिछले साल थोड़े वक्त के लिए ही कुछ वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने से व्यापारिक घाटा पाटने में काफी मदद मिली थी।
सबसे अहम बात कि केंद्र सरकार ने रक्षा उपकरणों के मामले में आत्मनिर्भर बनने की जो घोषणा कई साल पहले कर दी थी, उसे इससे बल मिलेगा। रक्षा सामग्री के निर्माण में आत्मनिर्भर बनने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ को सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसका सकारात्मक नतीजा भी दिखने लगा है।
कई विदेशी लड़ाकू विमानों से प्रतिस्पर्धा करते विमान बनाए जाने लगे हैं। इसी तरह उपकरणों और रक्षा प्रणालियों के मामले में गति आई है। स्वाभाविक ही इससे दूसरे देशों से महंगे दामों पर रक्षा उपकरणों की खरीद की बाध्यता कुछ कम हुई है। हालांकि आज जिस तरह रक्षा उपकरणों में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है, उसमें रूस, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों से रक्षा सामग्री की खरीद के लिए निर्भर रहना पड़ता है।
मगर जैसे-जैसे हमारे यहां ऐसे लड़ाकू विमानों और रक्षा उपकरणों का निर्माण बढ़ेगा, वैसे-वैसे न सिर्फ दूसरे देशों पर निर्भरता कम होगी, बल्कि भारत भी रक्षा सामग्री का बड़ा निर्यातक देश बनेगा। अब भी कुछ देश भारतीय लड़ाकू विमानों और कुछ रक्षा उपकरणों की खरीद में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इस तरह घरेलू स्तर पर बनने वाले पुर्जों और रक्षा प्रणालियों से इसे और बल मिलेगा। पहले छोटे-छोटे पुर्जों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था, तब तक खराब उपकरण बेकार पड़े रहते थे। अब उनकी मरम्मत के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
हालांकि रक्षा उपकरणों का उत्पादन और खरीद संवेदनशील मामला होता है। इसकी तकनीक और प्रणालियां गोपनीय ढंग से बनाई जाती हैं, इसलिए दूसरी वस्तुओं की तरह इसके उत्पादन का रास्ता नहीं खोला जा सकता। फिर कई बार रक्षा उपकरणों की तकनीक दुश्मन देश को बेचने की शिकायतें भी आती हैं, इसलिए डीआरडीओ की सुरक्षा को भी चाकचौबंद रखना बड़ी चुनौती है।
मगर घरेलू स्तर पर जिन छोटे कल-पुर्जों और उप-प्रणालियों को प्रोत्साहन देने का संकल्प लिया गया है, उसमें इस तरह का खतरा नहीं होता। उनमें से बहुत सारी चीजें पहले से हमारे यहां बन रही हैं। अब सेना के लिए उनकी खरीद को मंजूरी मिल जाने से निस्संदेह उनके उत्पाद में न केवल वृद्धि होगी, बल्कि उनकी तकनीक भी उन्नत होती जाएगी।