मणिपुर में हालात की जटिलता के मद्देनजर सरकार ने सुरक्षा के मोर्चे पर सख्ती से लेकर शांति समिति गठित करने की जो कवायदें जारी रखी हैं, उससे इस बात की उम्मीद बंधती है कि जल्दी ही वहां हल का कोई रास्ता निकलेगा। लेकिन अब भी रह-रह कर हिंसा की आग जिस तरह भड़क रही है, उससे यही लगता है कि वहां कुछ ऐसे समूह हैं, जिनकी मंशा समस्या का समाधान निकालने के बजाय अराजकता का माहौल बनाए रखना है।

हालांकि यह समझना मुश्किल है कि हिंसा के जरिए किसी भी समूह को हासिल क्या होगा, लेकिन इतना तय है कि सरकार के सामने फिलहाल मुख्य चुनौती ऐसे तत्त्वों की पहचान करने और उन्हें रोकने की है, जो शांति की राह में सुनियोजित तरीके से अड़चनें पैदा कर रहे हैं। मणिपुर में पहले ही कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा थम नहीं रही है और इससे निपटने में सरकार को कई तरह की मुश्किलें पेश आ रही हैं।

लेकिन शुक्रवार को एक बार फिर राजधानी इंफल में वेस्ट जिले के एक गांव में जो घटना हुई है, उससे हालात और बिगड़ने की आशंका पैदा हुई है। गौरतलब है कि वहां सुरक्षाकर्मियों के वेश में आए कुछ उग्रवादियों ने तलाशी अभियान के बहाने तीन लोगों को उनके घर से बाहर बुलाया और गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।

जिस समय राज्य में प्राथमिक जरूरत शांति स्थापित करना है और उसके लिए शुरू की गई प्रक्रिया में सभी संबंधित पक्षों को सक्रिय होकर भागीदारी करनी चाहिए, वैसे में इस तरह की हिंसा और हत्या की एक घटना सुधरती स्थिति को फिर से बिगाड़ सकती है। सवाल है कि अगर अधिकारियों का शक सही है कि हिंसा की इस घटना में मैतेई समुदाय के लोग शामिल हैं, तो यह समझने की जरूरत है कि मौजूदा विवाद में वे एक मुख्य पक्ष हैं और अगर किसी की ओर से भी शांति की कोशिशें बाधित होंगी तो हालात कैसे होंगे।

खासतौर पर ऐसी स्थिति में, जबकि इससे पहले भी हत्या और हिंसा की लगातार घटनाओं ने जातीय टकराव को और तीखा ही किया है। यों मणिपुर में जिस स्तर पर हिंसा फैली, वह किसी साजिश का भी परिणाम हो सकती है। मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग के खिलाफ पिछले महीने की शुरुआत में पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता जुलूस’ के आयोजन के बाद हिंसा फैल गई थी, जिसमें अब तक करीब सौ लोगों की जान जा चुकी है और कई सौ घायल हो चुके हैं। इसके अलावा, हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।

विडंबना यह है कि केंद्रीय गृहमंत्री के प्रभावित इलाकों के दौरे से लौटने के बाद भी आगजनी और हिंसा की कई घटनाएं हुर्इं। सवाल है कि अगर हिंसा और अराजकता की यह स्थिति बनी रही तो इससे किसका हित पूरा होगा? आखिर किसी मांग को लेकर आंदोलन करने वाले या फिर हिंसा से प्रभावित सभी पक्ष मसले का हल ही चाहते होंगे।

तो क्या यह सभी के हित में नहीं होगा कि अगर सरकार ने शांति समिति बनाई है, तो उसके प्रयासों में शामिल होकर पहले स्थिति को सामान्य बनाने को प्राथमिकता दी जाए! संभव है कि अचानक पैदा हुई परिस्थितियों में कुछ समुदायों के बीच क्षोभ पैदा हुआ, लेकिन इसका हल अराजकता से नहीं निकल सकता। सरकार को शांति समिति के जरिए हालात को सामान्य बनाने के साथ-साथ पर्दे के पीछे से हिंसा फैलाने वाली ताकतों को भी कानून के कठघरे में लाना चाहिए। सबसे पहली जरूरत मैतेई और कुकी जातीय समूहों के बीच अविश्वास की स्थिति को दूर करने की है, तभी ठोस समाधान की राह भी निकल सकेगी।