महिलाओं के प्रति पुलिस के अपेक्षित रूप से संवेदनशील न होने की शिकायत हमेशा से रही है। पुरुष पुलिसकर्मियों की मानसिकता से लेकर उनका व्यवहार किसी से छिपा नहीं है। एक आंकड़े के मुताबिक राज्य पुलिस बलों में महिलाओं का अनुपात साढ़े पांच फीसद भी नहीं है। यही कारण है कि पुलिस को और संवेदनशील बनाने के अलावा पुलिस-बल में महिलाओं के उचित अनुपात की जरूरत जताई जाती रही है।
लिहाजा, दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस-बल में अराजपत्रित स्तर तक की सीधी नियुक्तियों में महिलाओं के लिए तैंतीस फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को केंद्र सरकार की मंजूरी स्वागत-योग्य है। इसके अमल में आने के बाद अगर दिल्ली पुलिस में खाली पदों को भरने का काम शुरू होता है तो अगले कुछ सालों में आठ से नौ हजार महिलाओं की भर्ती होगी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुरुष पुलिसकर्मियों के खराब व्यवहार की अक्सर आने वाली खबरों के बरक्स यह संभावित तस्वीर दिल्ली की महिलाओं के लिए कितनी आश्वस्तिकारक हो सकती है।
हालांकि कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर पुलिस-बल में महिलाओं का अनुपात सुधारने के लिए पहल की है। बिहार पुलिस की नियुक्तियों की अभी चल रही प्रक्रिया में महिलाओं को पैंतीस फीसद तक आरक्षण की व्यवस्था की गई है। लगभग दो साल पहले राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में पुलिस बल को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने, अधिक संख्या में भर्ती करने, हर थाने में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करने आदि के सुझाव आए थे। लेकिन अब तक कोई ठोस पहलकदमी नहीं हुई थी। केंद्र सरकार के ताजा फैसले के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के दूसरे तमाम राज्य भी पुलिस-बल में महिलाओं की भर्ती के विशेष अभियान चलाएंगे।
अगर स्त्रियां खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पातीं तो इसकी जड़ें न केवल समाज की मानसिकता में हैं, बल्कि कई बार पुलिस और प्रशासन की तरफ से भी वैसा ही बर्ताव देखा जाता है। हालांकि महिलाओं की सुरक्षा और उनके उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई के लिए कई कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
लेकिन सभी जानते हैं कि अपने अधिकारों के हनन या किसी भी तरह के अत्याचार की शिकायत लेकर सामने आना और पुलिस की मदद लेना महिलाओं के लिए आसान नहीं रहा है। दरअसल, थानों में महिलाओं के प्रति सहज और संवेनदशील माहौल बनाने के साथ-साथ पुलिस बल में उनकी भागीदारी कई लिहाज से जरूरी है। यौन-हिंसा की शिकार कोई स्त्री शिकायत दर्ज कराने जाती है तो वह अपने साथ हुए अपराध का ब्योरा खुल कर नहीं दे पाती। पुलिसकर्मी ऐसे बेतुके सवाल पूछते हैं कि पीड़ित स्त्री को यही लगता है कि इंसाफ पाना उसके बस की बात नहीं है।
जबकि ऐसे मौकों पर अगर उनका साबका महिला पुलिसकर्मी से हो तो वे सहज ढंग से अपनी पीड़ा बता सकेंगी। लेकिन दिल्ली या देश के दूसरे इलाकों के माहौल को देखते हुए जोखिम वाली जगहों पर अकेली महिला पुलिसकर्मी की ड्यूटी लगाने के मामले में उनकी सुरक्षा के मद््देनजर जो चिंता जताई गई है, उसे भी निराधार नहीं कहा जा सकता। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अधिकारी से लेकर ज्यादा संख्या में पुलिस बल में महिलाओं की मौजूदगी के बाद ही इस चिंता का सामना करने के साथ-साथ महिलाओं को सुरक्षित और सहज माहौल मुहैया कराया जा सकता है।
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