उत्तरी सिक्किम में तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आने से मची तबाही चिंतित करने वाली है। वहां ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने से काफी नुकसान हुआ है। सड़कें तो टूटी ही हैं, सैन्य प्रतिष्ठानों को भी नुकसान पहुंचने की खबरें हैं। तीन-चार अक्तूबर की दरमियानी रात में दक्षिण ल्होनक झील पर बादल फट गया था जिससे तीस्ता नदी बेसिन में बाढ़ आ गई।

बाढ़ में बह गए लोगों में से 14 की मौत हो गई और 22 सैन्य कर्मियों समेत 102 लोग लापता हो गए। स्वाभाविक रूप से अभी सबसे ज्यादा ध्यान लापता सैनिकों व अन्य की तलाश करने और यह सुनिश्चित करने पर दिया जा रहा है कि जहां भी जरूरी हो जल्द से जल्द मदद पहुंचाई जाए। ऊपरी इलाकों में लगातार बारिश से जलस्तर बढ़ रहा है। राहत एवं बचाव अभियान में दिक्कत आ रही है। कई जगह रास्तों में पर्यटक फंसे हुए हैं।

उत्तरी सिक्किम का यह प्रभावित इलाका भारत-नेपाल सीमा के करीब पड़ता है। भौगोलिक तौर पर इस जगह को संवेदनशील बताया जाता रहा है। दो साल पहले एक अध्ययन में चेताया गया था कि भविष्य में सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील फट सकती है। वर्ष 2021 में हुआ अध्ययन जर्नल ‘जियोमोर्फोलाजी’ में प्रकाशित हुआ था।

इसमें रेखांकित किया गया था कि दक्षिण ल्होनक झील का स्तर हिमनद के पिघलने की वजह से बीते एक दशक में खासा बढ़ा है और हिमनद झील के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) का खतरा बढ़ गया है। हिमनद झील के फटने से बाढ़ तब आती है जब हिमनद के पिघलने से बनी झील में अचानक बाढ़ आ जाए।

अध्ययन के मुताबिक, 1962 से 2008 के बीच 46 साल में हिमनद करीब दो किलोमीटर पीछे हट गए हैं और यह 2008 से 2019 के बीच तकरीबन चार सौ मीटर और पीछे चले गए हैं। हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) के मुताबिक, सिक्किम में 733 हिमनद झीलें हैं और 288 झीलें 5000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं।

दक्षिण ल्होनक झील समुद्र तल से 5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह झील ल्होनक हिमनद के पिघलने से बनी है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की और भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरू के शोधार्थियों ने पाया है कि ये झीलें मुख्यत: सुदूर और पर्वतीय घाटियों में स्थित हैं लेकिन निचले बहाव क्षेत्र में 10 किलोमीटर तक जान और माल का नुकसान कर सकती हैं।

शोध रिपोर्टों में लगातार चेतावनी दी जाती रही है कि वर्तमान और भविष्य में हिमनद टूटने से होने वाले परिवर्तनों से जुड़े खतरे का मूल्यांकन करना जरूरी है। इसी साल मार्च महीने में संसद में पेश की गई एक रपट में बताया गया था कि हिमालय के तमाम हिमनद अलग-अलग दर से, लेकिन तेजी से पिघल रहे हैं और इस वजह से हिमालय की नदियां किसी भी समय बड़ी प्राकृतिक आपदा का कारण बन सकती हैं।

यह सही है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक मसला है और किसी एक देश की सरकार अकेले ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। फिर भी बड़े और संवेदनशील हिमनदों की स्थिति पर लगातार नजर रखते हुए संभावित हादसों से निपटने की तैयारी जरूर की जा सकती है। लोगों को अपेक्षाकृत ज्यादा जागरूक रखा जा सकता है। हादसे भले न टाले जा सकें, लेकिन नुकसान जरूर कम किया जा सकता है। लेकिन सिक्किम की आपदा के मामले में जाहिर है ऐसा नहीं हो सका।