बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में खेती-किसानी से जुड़े दो अहम फैसले किए गए। एक यह कि सरकार दालों की कीमत पर अंकुश लगाने के लिए इनका बड़ी मात्रा में आयात करेगी। पिछले एक साल में दालों के दाम में पैंसठ फीसद की बढ़ोतरी हुई है। आयात के जरिए आपूर्ति बढ़ा कर सरकार मूल्य-वृद्धि पर लगाम लगाना चाहती है। पर यह समस्या का समाधान नहीं है। दालें प्रोटीन का सबसे सुलभ स्रोत रही हैं। लेकिन दलहन की खेती का रकबा साल-दर-साल घटता गया है।
सरकार को सोचना चाहिए कि दलहन के लिए प्रोत्साहन के क्या-क्या कदम उठाए जाएं। सरकार के दूसरे फैसले के मुताबिक चीनी मिलों को छह हजार करोड़ रुपए का ब्याज-मुक्त कर्ज मिलेगा, इसलिए कि वे किसानों का बकाया चुका सकें। गौरतलब है कि चीनी मिलों पर गन्ना उत्पादकों का बकाया इक्कीस हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इसलिए सरकार का हस्तक्षेप जरूरी था। पर सरकार ने इस पहल में इतनी देर क्यों की? इससे पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय चीनी मिलों को यह निर्देश दे चुका है कि वे तीस जून तक किसानों का कम से कम पचास फीसद बकाया चुका दें। चीनी मिलें इसमें अपने को असमर्थ बता रही थीं। यह सही है कि सरकार की ओर से मुहैया कराए जाने वाले ऋण की परिणति किसानों के बकाए के भुगतान में होगी। पर सरकार किसानों के लिए ही चिंतित थी, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश से पहले उसने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया।
यह पहला मौका नहीं है जब किसानों का पैसा दिलाने के लिए चीनी मिलों को कर्ज जारी किया गया हो। चीनी मिलें जब-जब संकट में पड़ी हैं या इसका रोना रोया है, सरकार ने उनकी तरफ मदद के हाथ बढ़ाए हैं। फिर, किसानों के बकाए के भुगतान की समस्या क्यों हर वक्त बनी रहती है? शायद ही कोई साल जाता हो जब अपना भुगतान पाने के लिए गन्ना उत्पादकों को आंदोलन न करना पड़े।
दिसंबर 2013 में यूपीए सरकार ने गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान करने के लिए चीनी मिलों को 6,600 करोड़ रुपए का ब्याज-मुक्त ऋण दिया था। डेढ़ साल बाद उन्हें फिर छह हजार करोड़ रुपए का ब्याज-मुक्त कर्ज देना पड़ रहा है। साल भर तक ब्याज न लगने की सूरत में सरकार को छह सौ करोड़ रुपए की भरपाई करनी होगी। इसे चीनी विकास निधि के मत्थे डाला जाएगा। पर इतने से मिल मालिकों के संघ यानी इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन को संतोष नहीं है।
उसका कहना है कि अतिरिक्त उत्पादन और दाम में आई कमी की समस्या अपनी जगह बनी हुई है। इसी शिकायत के मद्देनजर सरकार ने कुछ और भी कदम उठाए हैं। एक तो यह कि चीनी का आयात शुल्क बढ़ा दिया है। दूसरे, चीनी के लिए निर्यात-सबसिडी की घोषणा की है। ऐसे कदम अतिरिक्त उत्पादन की सूरत में ही उठाए जाते हैं। इस साल चीनी का उत्पादन 2.80 करोड़ टन को पार कर जाने का अनुमान है। पिछले साल यह 2.43 करोड़ टन था। देश में चीनी की खपत 2.40 करोड़ टन है। सरकार चाहे तो बफर स्टॉक के तौर पर खरीद कर चीनी उद्योग को और सहारा दे सकती है। पर राहत के अलावा संकट के स्थायी समाधान के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।
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