एक तरफ भारत के साथ विवाद के मुद्दों पर बातचीत और उसे सुलझाने के लिए सहमति देने और दूसरी ओर जिन मसलों पर टकराव है, उसी को और जटिल बनाने की कोशिश करके चीन आखिर क्या हासिल करना चाहता है? पिछले कुछ वर्षों से लगातार चीन अपने इसी चेहरे के साथ पेश हो रहा है और दुनिया के सामने खुद को मासूम भी बताता रहता है।
उसकी ताजा हरकत एक बार फिर यही साबित करती है कि या तो वह सीमा से जुड़े विवाद को और जटिल बनाना चाहता है या फिर अपनी अवांछित गतिविधियों से भारत को चिढ़ाना चाहता है। सवाल है कि दुनिया भर में अपने महाशक्ति होने का दंभ भरते हुए ऐसी निम्न स्तर की हरकतों के जरिए चीन क्या संदेश दे रहा है?
खबरों के मुताबिक, चीन ने ‘राष्ट्रीय मानचित्र जागरूकता प्रचार सप्ताह’ के तहत सोमवार को 2023 के ‘मानक मानचित्र’ का नया संस्करण जारी किया है, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन सहित भारत के कई इलाकों को अपने क्षेत्र में दिखाया है। सीमा पर अलग-अलग तरीके से घुसपैठ और तनाव पैदा करने की कोशिशों से इतर यह दस्तावेजी तौर पर चीन की ऐसी हरकत है, जो उसके एजंडे को दर्शाती है।
स्वाभाविक ही भारत ने चीन के इस कथित नए नक्शे पर सख्त आपत्ति जाहिर की और उसके बेतुके दावे का कड़ा विरोध किया है। विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में साफ कहा गया कि चीन के जिस तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ में भारत के इलाकों पर दावा किया गया है, उस पर हमने कूटनीतिक माध्यमों के जरिए सख्त विरोध जताया है।
बयान में यह भी कहा गया है कि हम इस तरह के बेबुनियाद दावों को खारिज करते हैं; चीन की ओर से अगर इस तरह के कदम उठाए जाते हैं तो यह सीमा संबंधी विवादों को सुलझाने की जगह इसे और ज्यादा उलझाएंगे। चीन ने जिन इलाकों को अपने नक्शे में दर्शा दिया है, उन पर वह पहले भी दावा जताता रहा है। यों भारत को अपनी ही सीमा के बारे में बताने की जरूरत पड़ रही है तो इससे चीन की मंशा का ही पता चलता है।
हालांकि यह भी सही है कि अगर चीन ने महज कथित नया नक्शा जारी कर दिया है तो सिर्फ इतने से भारत का कोई हिस्सा उसका नहीं हो जाता है। भारत का अपना क्षेत्र क्या है और उसे कैसे संभालना है, इसके बारे में किसी अन्य देश को बताने या उससे पूछने की जरूरत नहीं है।
इसलिए इस संबंध में विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन को ठीक जवाब दिया है कि बेतुके दावे कर देने से दूसरे लोगों का क्षेत्र आपका नहीं हो जाता है। हैरानी की बात यह है कि नए नक्शे के जरिए इस मामले को तूल देने की कोशिश तब सामने आई है, जब हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के मुद्दे पर हुई चर्चा को सकारात्मक दिशा में बढ़ने वाला बताया गया था।
सवाल है कि एक ही समय में दो चेहरे के साथ चीन किस तरह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को एक ऐसे देश के रूप में पेश कर पाता है कि वह विश्व भर में विकास और अर्थव्यवस्था के स्वरूप को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाए जाने को लेकर प्रतिबद्ध है? विस्तारवाद की अपनी बेलगाम भूख की वजह से वह अपने पड़ोसी देशों को ही अगर तंग करता है, उनकी सीमाओं का अतिक्रमण करता है तो उसके सार्वजनिक दावों और वादों को किस तरह देखा जाएगा?