निर्माणाधीन भवनों या फिर उनके निर्माण से कमजोर पड़े आसपास के भवनों के ढहने और उनमें मजदूरों के दब कर मरने की घटनाएं जब-तब सामने आती रहती हैं, पर विकास प्राधिकरणों को शायद इस पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाना जरूरी नहीं लगता। चंडीगढ़ में एक मकान गिरने से मलबे में दब कर छह मजदूरों की मौत और कई लोगों के घायल हो जाने की घटना इसी का नतीजा है। वहां एक मकान का भूतल बनाने के लिए गहरी खुदाई चल रही थी, जिसके चलते पास के मकान की बुनियाद कमजोर पड़ गई और वह धराशायी हो गया। उस वक्त कुछ मजदूर खुदाई कर रहे थे और पास का जो भवन ढहा, वहां दुकान पर कई ग्राहक जमा थे। प्रशासन ने मृतक मजदूरों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजा घोषित कर दिया है। मगर इस तरह नियम-कायदों की अनदेखी कर भूतल का निर्माण कराने वाले व्यक्ति और ठेकेदार के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी! घटनास्थल पर करीब दस फुट गहरी खुदाई की गई थी, पर कैसे प्रशासन या फिर किसी जागरूक व्यक्ति की उस पर नजर नहीं गई! कैसे निर्माण-कार्यकराने वाले व्यक्ति या फिर उसके ठेकेदार को यह आशंका नहीं हुई कि इतनी गहरी खुदाई कराने से पास का मकान प्रभावित हो सकता है, गिर सकता है। कायदे से ऐसी खुदाई कराने से पहले पास की इमारतों को सुरक्षित रखने के उपाय किए जाते हैं, मगर छोटे ठेकेदारों के पास न तो इसके लिए समुचित संसाधन होते हैं और न निर्माण कराने वाला व्यक्ति उस पर पैसा खर्च करना चाहता है।

नियम है कि कोई भी नया मकान बनाने या फिर उसका विस्तार करने से पहले विकास प्राधिकरण से इजाजत ली जाए, उसका नक्शा पास कराया जाए। मकान बनाते समय तो कुछ हद तक लोग इस नियम का पालन करते हैं, पर उसमें भी विकास प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार का लाभ उठा कर नियम-कायदों की अनदेखी करने से बाज नहीं आते। अवैध निर्माण करने वाले तो सुरक्षा-मानकों की परवाह ही नहीं करते। अक्सर शहरों के गैर-सूचित इलाकों में लोग चार-पांच मंजिला तक मकान बना लेते हैं। इस बात की परवाह नहीं की जाती कि मकान की बुनियाद मजबूत बन रही है या नहीं। आमतौर पर लोग किसी भवन विशेषज्ञ से विचार-विमर्श किए बगैर, पारंपरिक अनुभवों के आधार पर मकान बनवाना पसंद करते हैं। किराए पर देने के मकसद से बनवाए जाने वाले मकानों की बाबत अक्सर ऐसी लापरवाहियां बरती जाती हैं। ऐसे मकानों के निर्माण में अकुशल मिस्त्री और ठेकेदार ही मालिक की मर्जी के मुताबिक नक्शा तैयार कर देते हैं और कम से कम लागत में मकान तैयार कर देने का ‘कमाल’ कर दिखाते हैं। इन्हीं लापरवाहियों के चलते इमारतें या तो निर्माण के दौरान ही धराशायी हो जाती हैं या फिर कभी बाद में बोझ न सह पाने से जमींदोज हो जाती हैं। नतीजतन, कुछ लोगों की जान चली जाती है और कुछ अपंग हो जाते हैं। दूसरे शहरों के मुकाबले चंडीगढ़ को व्यवस्थित शहर माना जाता है। जब वहां इस तरह गैर-कानूनी तरीके से निर्माण चलते हैं, तो दूसरे अपेक्षया अधिक सघन इलाकों में किस कदर मनमानी चलती होगी, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।