नागरिकों की पहचान का प्रामाणिक दस्तावेज किसे माना जाए, यह लंबे समय से विचार का विषय रहा है। इसी क्रम में अलग-अलग दस्तावेजों को वैधानिक मान्यता दी गई। मगर उसमें उलझन फिर भी यह बनी रही कि अपनी पहचान साबित करने के लिए लोगों को एक साथ कई दस्तावेज प्रस्तुत करने पड़ते थे।
ऐसे में तय हुआ कि क्यों न कोई ऐसा दस्तावेज लागू किया जाए, जो अंतिम रूप से व्यक्ति की पहचान प्रमाणित करता हो। इसी सोच के साथ आधार पहचानपत्र शुरू किया गया, मगर वह विवादों में घिर गया और उसे व्यक्ति के पहचान का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सका। अब सरकार ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम के जरिए जन्म प्रमाणपत्र को एकल दस्तावेज के रूप में मान्यता प्रदान कर दी है।
इस तरह लोग विभिन्न आवेदनों के साथ अलग-अलग दस्तावेज लगाने के बजाय केवल जन्म प्रमाणपत्र नत्थी कर सकेंगे। निश्चित रूप से यह बड़ी राहत की बात है। अभी तक बच्चों का दाखिला कराने, विवाह पंजीकरण, मोटर वाहन चलाने के लिए लाइसेंस लेने, पासपोर्ट आदि बनवाने के लिए अलग-अलग दस्तावेज लगाने पड़ते थे। मसलन, जन्मतिथि प्रमाणित करने के लिए अलग दस्तावेज, घर का पता प्रमाणित करने के लिए अलग दस्तावेज लगाना पड़ता था। इन सबके साथ आधार पहचानपत्र भी नत्थी करना जरूरी था।
नया नियम अगले महीने से लागू होगा। हालांकि पहले भी जन्म प्रमाणपत्र को प्रमुख दस्तावेज माना जाता था, क्योंकि इसमें व्यक्ति की पहचान से जुड़ी सभी बुनियादी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। उसमें जन्मतिथि, जन्म स्थान और माता-पिता की पहचान दर्ज होती है। मगर उसमें दिक्कत यह आती थी कि ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र की सुविधा नहीं थी।
शहरों में तो नगरपालिकाएं यह प्रमाणपत्र बना देती हैं, मगर गांवों में अब भी जन्म-मृत्यु संबंधी विवरण दर्ज करने के लिए कुटुंब रजिस्टर की व्यवस्था चली आ रही है। वह कितना अद्यतन होता है, दावा नहीं किया जा सकता। अगर किसी व्यक्ति को जन्म प्रमाणपत्र की जरूरत होती है, तो ग्राम प्रधान या सरपंच एक कागज पर लिख कर दे देता है।
इस तरह गावों में बहुत सारे लोग कुटुंब रजिस्टर में अपने बच्चों के पैदा होने की जानकारी दर्ज कराने की जरूरत ही नहीं समझते। फिर जिन लोगों के नाम उसमें दर्ज होते भी हैं, वे जन्म प्रमाणपत्र को जरूरी दस्तावेज के रूप में संभाल कर नहीं रखते। हालांकि अब डिजिटल रूप में भी जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है, मगर गांवों में चली आ रही व्यवस्था कितनी बदल पाएगी, कहना मुश्किल है।
जन्म प्रमाणपत्र को एकल प्रमाणपत्र की मान्यता मिलने से निश्चित रूप से बहुत सारे लोगों के लिए सुविधा हो जाएगी। मगर आधार पहचानपत्र को जिस तरह हर योजना और हर पंजीकरण में अनिवार्य कर दिया गया है और उससे लोगों के व्यक्तिगत विवरणों के चोरी हो जाने का खतरा बताया जाता रहता है, उससे मुक्ति मिलना संभव नहीं लगता।
नागरिकता प्रमाणपत्र एक ऐसे दस्तावेज के रूप में होना चाहिए, जो हर नागरिक को सहज सुलभ हो और जिसकी वजह से उसकी व्यक्तिगत गोपनीयता में सेंध लगने का खतरा न हो। जन्म प्रमाणपत्र इस मामले में सुरक्षित दस्तावेज माना जा सकता है, मगर बहुत सारे दूरदराज गांवों में रहने वाले और अशिक्षित लोगों के पास यह मौजूद नहीं है। उसके लिए विशेष व्यवस्था करनी होगी। ग्राम पंचायतों को भी नगरपालिकाओं की तरह डिजिटल सुविधाओं से जोड़ कर इस समस्या से पार पाया जा सकता है।