राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बर्दवान दौरे को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाराजगी का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा है कि राज्य के खुफिया विभाग को जांच करने देना चाहिए था; जब उसने बुद्धदेव भट्टाचार्य के कार्यकाल में कोलकाता के अमेरिकन सेंटर पर हुए आतंकी हमले की दक्षतापूर्वक जांच की थी, तो बर्दवान के विस्फोट कांड की जांच के सिलसिले में उस पर अविश्वास क्यों किया गया। लेकिन जब ममता बनर्जी एनआइए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी से तहकीकात कराने पर सहमति जता चुकी थीं तो वे अब राज्य के खुफिया विभाग से जांच की जिम्मेदारी ले लिए जाने की शिकायत क्यों कर रही हैं। फिर, यह मामला उस विभाग पर शक का नहीं, बल्कि सामने आए खतरे की गंभीरता और दायरे का है। गौरतलब है कि दो अक्तूबर को बर्दवान जिले में खागरागढ़ के एक मकान में बम बनाने के दौरान विस्फोट हो गया। इस काम में लगे दो व्यक्तियों की मौत हो गई। मौके से काफी मात्रा में विस्फोटक और रसायन आदि बरामद हुए।
एनआइए ने अब तक की अपनी जांच के आधार पर कहा है कि बम बनाने में लगे लोग जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से जुड़े थे और उनका काम बांग्लादेश में धमाकों को अंजाम देने के लिए संबंधित सामान की आपूर्ति करना था। एनआइए के इस खुलासे ने जहां भारत को चिंतित किया है वहीं बांग्लादेश को भी। बांग्लादेश सरकार ने स्वाभाविक ही इस बारे में भारत से जानकारी मांगी है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस सारे घटनाक्रम को बेहद गंभीरता से लिया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और उनके साथ केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के आला अफसरों के दौरे से जाहिर है। यह आशंका जताई जा रही है कि जमात-उल-मुजाहिदीन के जरिए अलकायदा की भी कोई योजना हो सकती है। अगर ऐसा है तो फिर ये विस्फोटक बांग्लादेश ले जाने के इरादे के अलावा भारत के भी किसी हिस्से में भेजने या उसकी साजिश के सुराग मिलने चाहिए। पर अभी तक वैसी शिनाख्त नहीं हो पाई है। अलबत्ता एनआइए ने राज्य के कुछ मदरसों पर भी अंगुली उठाई है। इसके विरोध में कई मुसलिम संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन किया है। इसकी परवाह क्यों की जाए, अगर मामला आतंक की फैक्टरी चलने और आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरे का है। पर बर्दवान और आसपास के इलाकों में बम-उद्योग कोई नई बात नहीं है। राज्य में पिछले साल जितने विस्फोटक बरामद हुए उनमें से अस्सी फीसद इसी इलाके में मिले।
बीते साल पश्चिम बंगाल में नौ हजार बम पकड़े गए जिनमें से सात हजार बर्दवान, बीरभूम और मुर्शिदाबाद में बरामद हुए। इन इलाकों में लंबे समय से आपराधिक गुटों की सक्रियता रही है जो आए दिन आपस में भिड़ते रहते हैं। बर्दवान में बम बनाने की फैक्टरी पर छापे के बाद भी, जब इस पूरे इलाके पर पुलिस से लेकर तमाम एजेंसियों की कड़ी नजर थी, हिंसा की कई घटनाएं हुर्इं। यहां तक कि पिछले हफ्ते खागरागढ़ से साठ किलोमीटिर दूर बीरभूम में एक पुलिस अधिकारी को बम से निशाना बनाया गया। इन इलाकों में क्रशर उद्योग और रेत खनन के माफिया सक्रिय हैं। वे अवैध हथियारों के बड़े ग्राहक हैं। कई बार राजनीतिक हिंसा की घटनाओं में भी स्थानीय स्तर पर बनने वाले बमों का इस्तेमाल होता है। बम बनाने की जो घटना चर्चा का विषय बनी है, वह कोई इस तरह का अकेला मामला नहीं है। हां, आतंकवादी गुटों से उसका तार जुड़े होने का संदेह जरूर ज्यादा चिंता की बात है। पर जहां बड़े पैमाने पर बमों की बरामदगी के आंकड़े हों, वहां जांच का दायरा और व्यापक किए जाने की जरूरत है।