एफआईआर दर्ज करने के सतर्कता अदालत के आदेश के बाद केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। लेकिन जैसा कि वे पहले कह रहे थे, अदालत के आदेश के बाद भी उन्होंने यही दोहराया है कि वे निर्दोष हैं और उनके इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है। पर वे सचमुच दोषी हैं या निर्दोष, यह तो जांच के बाद तय होगा, और इसका फैसला अदालत करेगी। लेकिन ऐसे कई कारण हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हट जाना चाहिए।

एक तो इसलिए कि यह नैतिकता का तकाजा है। दूसरे, यह तकाजा सिर्फ उन तक सीमित नहीं है। वे एक राज्य सरकार के मुखिया हैं, और जब तक वे भ्रष्टाचार के एक संगीन आरोप से घिरे हुए हैं, उस सरकार की भी साख कठघरे में रहेगी। तीसरे, दबाव से पूरी तरह मुक्त और हर तरह से निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के मकसद से भी चांडी का मुख्यमंत्री पद से हट जाना ही ठीक होगा। जिस मामले में चांडी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश त्रिशूर की सतर्कता अदालत ने दिया है, उसका खुलासा दो साल से ज्यादा वक्त पहले हुआ था। इस घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता एस नायर और सह-आरोपी बीजू राधाकृष्णन हैं, जिन्होंने सौर पैनल लगाने की एक कंपनी बना कर राज्य में कई लोगों को ठगा। दोनों यह दावा करते थे कि सत्ता के गलियारे में उनकी पहुंच है, मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी आना-जाना है।

अपनी यह निकटता प्रदर्शित करने में वे कामयाब भी रहे। यही कारण है कि निवेशक तथाकथित परियोजना को सरकार की ओर से समर्थित मान बैठे और ठगे गए। मामले की जांच कर रहे न्यायमूर्ति शिवराजन आयोग के समक्ष गवाही देते हुए पिछले दिनों मुख्य आरोपी सरिता एस नायर ने दावा किया कि उसने मुख्यमंत्री के एक करीबी सहयोगी को 1.90 करोड़ रुपए और बिजलीमंत्री आर्यदन मोहम्मद को चालीस लाख रुपए की रिश्वत दी थी। चांडी और आर्यदन इस आरोप से इनकार रहे हैं। उनकी एक दलील यह भी है कि सह-आरोपी बीजू राधाकृष्णन द्वारा लगाए गए आरोप जांच में टिक नहीं सके थे।

लेकिन सतर्कता अदालत के आदेश के पीछे शक का कुछ आधार जरूर होगा। सरिता का बयान दर्ज करने से पहले न्यायिक आयोग ने चांडी से लंबी पूछताछ की थी। एक टेप का खुलासा भी हो चुका है जिसके मुताबिक प्रदेश कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने सरिता को कोई खतरा मोल न लेने की सलाह दी थी। यूडीएफ सरकार के दो मंत्रियों को बार रिश्वत कांड में संलिप्तता के आरोपों के चलते पद छोड़ना पड़ा। चांडी और आर्यदन के लिए दूसरा पैमाना कैसे हो सकता है! उनके लिए यही उचित होगा कि बेगुनाही के अपने दावे को विधि प्रक्रिया से खरा साबित करें।

नैतिक ही नहीं, उनकी पार्टी के लिए रणनीतिक लिहाज से भी यह जरूरी लगने लगा है कि अब केरल की कमान चांडी के हाथ में न रहने दी जाए। कुछ ही महीनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। सौर ऊर्जा घोटाले को चुनावी मुद््दा बनाने में विपक्ष कोई कसर क्यों छोड़ेगा? माकपा ने तो चांडी के इस्तीफे की मांग को लेकर राज्य भर में विरोध-प्रदर्शन आयोजित कर इसकी शुरुआत भी कर दी है। ऐसे में चांडी को बनाए रखना यूडीएफ और खासकर यूडीएफ की अगुआई कर रही कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से काफी जोखिम भरा साबित हो सकता है