हाल ही में जब बाघों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की खबर आई थी, तब इसे राहत की तरह देखा गया, क्योंकि इस संरक्षित पशु को बचाने के लिए पिछले कई दशक से व्यापक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिन अब बाघों की मौत की लगातार घटनाओं ने एक नई चिंता पैदा कर दी है कि आखिर रखरखाव और संरक्षण के किन मोर्चों पर चल रही योजनाओं में सुधार की जरूरत है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अपने ताजा आंकडो में जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक इस साल अब तक अलग-अलग वजहों से छप्पन बाघों की जान जा चुकी है। अकेले अप्रैल में आठ बाघों की मौत हो गई। इनमें ज्यादा संख्या मादा बाघों की है। हालांकि बाघों के जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव पर नजर रखने वालों का मानना है कि आमतौर पर जनवरी से लेकर मार्च महीने के बीच इस पशु की मौतों की ज्यादा संख्या दर्ज की जाती है। लेकिन जब करीब दो महीने पहले इस तरह की खबरें आई थीं तब यह सवाल उठाया गया था कि क्या इस संरक्षित पशु के जीवन को बचाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को लेकर उत्साह में कमी आ रही है!

बाघों को बचाने के लिए चलाई जा रही विशेष परियोजना और उसके तहत अक्सर जैसी सक्रियता देखी जाती रही है, उसमें यह उम्मीद स्वाभाविक है कि इस पशु को विलुप्ति के खतरे की जद से दूर रखा जा सकेगा। यही वजह है कि कुछ समय पहले बीते चार साल में बाघों की गिनती में दो सौ की बढ़ोतरी का आंकड़ा आया, तो इसे संरक्षण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की कामयाबी के तौर पर देखा गया।

लेकिन अगर इस आंकड़े के बरक्स बाघों के मरने की खबरें भी समांतर आ रही हों तो उसे कैसे देखा जाएगा? तादाद में बढ़ोतरी के मुकाबले अगर बाघों की मौतों को नहीं थामा जा सका तो संख्या में संतुलन का सुरक्षित अनुपात कैसे कायम किया जा सकेगा? निश्चित रूप से एक संरक्षित पशु के रूप में बाघों को बचाने के लिए बाकायदा संगठित रूप से अभियान चलाए गए, अभयारण्यों को सुरक्षित बनाने और इनके जीवन के लिए जरूरी आबोहवा उपलब्ध कराने को लेकर लिए व्यापक कार्यक्रम भी अमल में लाए गए। मगर यह समझना मुश्किल है कि बचाने की तमाम महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के अमल में अक्सर सक्रियता दिखने के बावजूद बाघों के जीवन पर यह कैसा खतरा मंडरा रहा है!

दरअसल, इंसानी आबादी के साथ-साथ रिहाइशी इलाकों के विस्तार के बीच जैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें एक गंभीर असर वन्यजीवों के सामान्य जीवन पर भी पड़ रहा है। कहीं जंगल में रहने वाले पशुओं के पर्यावास का क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं तो कहीं मनुष्य और पशुओं के बीच टकराव की स्थितियां बन रही हैं। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि बाघ या इसी वर्ग के किसी पशु ने इंसान पर हमला कर दिया।

इसकी वजह जितनी जानवरों के भीतर उपजी आक्रामकता है, उससे ज्यादा उनके सामान्य जीवन में खड़ी हो रही बाधाएं कई बार संकट की जड़ बन रही हैं। इसके बावजूद बाघ संरक्षण की परियोजना पर हुए काम का ही यह हासिल रहा कि बाघों की गिनती में बढ़ोतरी दर्ज की गई। लेकिन अब अगर इसके समांतर बाघों की मौतों की रफ्तार भी इस कदर तेज है तो यह बेशक चिंता की बात है। ऐसे में न सिर्फ बाघों के प्राकृतिक जीवन-क्षेत्र को पूरी तरह सहज और सुरक्षित बनाए जाने की जरूरत है, बल्कि उनके खानपान, रहन-सहन, पर्यावरण आदि को लेकर भी हर स्तर पर सजगता बरतनी पड़ेगी।