रूस ने यूक्रेन को ऐसे हमलों के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी थी। यूक्रेन भी आशंका जता रहा है कि रूस ‘डर्टी बम’ का इस्तेमाल कर सकता है। दरअसल, करीब दो हफ्ते पहले यूक्रेन की ओर से किए गए एक बड़े हमले के जवाब में रूस जिस तरह यूक्रेन के शहरों को निशाना बना कर हमले कर रहा है, उससे भारी तबाही की आशंका गहरी होती गई है।

इस सिलसिले में भारत ने एक बार फिर दोहराया है कि किसी भी रूप में, किसी भी पक्ष द्वारा परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह मानवता के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा। इस मसले का हल कूटनीति और आपसी बातचीत से ही निकालने का प्रयास किया जाना चाहिए। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने यह अपील अपने रूसी समकक्ष सर्गेई शोइगु से बातचीत के दौरान की। यह बातचीत रूस की पहल पर ही आयोजित हुई थी। हालांकि कहना मुश्किल है कि रूस भारत की इस अपील को कितनी गंभीरता से लेगा। जब युद्ध शुरू हुआ तबसे लेकर अब तक भारत कई बार यह बात दोहरा चुका है, मगर दोनों में से किसी भी देश ने अपने रुख में लचीलापन लाने का प्रयास नहीं किया।

भारतीय प्रधानमंत्री कई बार फोन पर दोनों देशों के नेताओं से बातचीत करके आपसी संवाद के जरिए समाधान निकालने की सलाह दे चुके हैं। समरकंद में शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात हुई तब भी उन्होंने यह बात कही थी। उस वक्त पुतिन ने उनकी सलाह पर अमल का भरोसा भी जताया था। मगर उसके कुछ दिन बाद ही रूस ने यूक्रेन पर भारी हमले शुरू कर दिए थे।

रूस चाहता है कि यूक्रेन आत्मसमर्पण कर दे, मगर वह झुकने को तैयार नहीं। दरअसल, सोवियत संघ टूटने के बाद यूक्रेन ने रूस से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान कायम की थी। अब वह यूरोपीय देशों के संगठन नाटो का सदस्य बन कर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। रूस को लगता है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया, तो यूरोपीय सेनाएं उसकी सरहद पर आ खड़ी होंगी। इसलिए उसने यूक्रेन पर यह सदस्यता न लेने का दबाव बनाया। यूक्रेन नहीं माना, तो रूस ने उस पर हमला कर दिया। हालांकि इस मसले को आपस में मिल-बैठ कर भी सुलझाया जा सकता था, मगर दोनों अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और दुनिया तबाही देख रही है।

अब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा इसलिए बढ़ गया है कि यूक्रेन को इतने लंबे समय से झुकता न देख रूस का अहं चोट खा रहा है। हालांकि परमाणु हथियारों के दुष्परिणामों से दोनों देश अनजान नहीं हैं। युद्ध में अक्सर ऐसे क्षण आते हैं, जब दुश्मन को घुटने टेकने को मजबूर करने की चाह में सत्ताधीश अपना विवेक खो देते हैं। इसीलिए हर कोई इस खतरे से आशंकित है। इस युद्ध को चलते लंबा वक्त हो गया।

इसका असर पूरी दुनिया पर नजर आने लगा है। अब जरूरत है कि केवल सलाह देने के बजाय सभी देश मिल कर इसे रोकने के लिए बातचीत की पहल करें। कुछ ऐसे देशों की एक ऐसी समिति बने, जिन पर दोनों देशों को भरोसा हो। वे मिल कर बातचीत का सिलसिला चलाएं और तब तक दोनों देशों से युद्ध रोकने पर सहमति बनाई जाए।