सीरज सक्सेना
चांगचुंग छोटा शहर है, पर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। हर तरफ निर्माण हो रहा है, खुदाई हो रही है, ट्रकों से सीमेंट लाया जा रहा है। बहुमंजिला इमारतें, बाजार, सेतु आदि बन रहे हैं। शहर में एक पार्क है। एक बड़ी झील के चारों ओर पसरा। इस झील में नौका विहार, तैराकी और तरह-तरह की जल क्रीड़ाएं होती हैं। हर सप्ताहांत शहर की नाचने-गाने वाली मंडलियां यहां अपनी कलात्मक प्रस्तुति देती हैं। हर सुबह शहर के बुजुर्ग यहां छोटे-छोटे समूह में प्राचीन चीनी लोकगीतों पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य यहां एक व्यायाम भी है। अपने एक महीने के प्रवास में यहीं चीनी संस्कृति की झलक इन गीतों, बुजुर्गों के लिबास और चेहरों में देखने को मिली।
हमारे होटल के पास ही हर सुबह तयशुदा जगह पर बाजार लगता है। यह हमारे हाट का थोड़ा परिष्कृत और व्यवस्थित रूप है। यहां ताजा हरी सब्जियां, फल, तरह-तरह की मछलियां और मशरूम, कपड़े, पुराने सिक्के, ट्रांजिस्टर, मोबाइल फोन, घड़ियां, जूते, थैले आदि बिकते हैं। खरीदारों में अधेड़ स्त्री-पुरुष अधिक होते हैं, युवाओं की संख्या बहुत कम। इस समय यहां तरबूज बहुत आए हैं। ग्राहक और विके्रता सभी संयम और अनुशासन में हैं। सड़कों पर जितना अनुमान था उतनी साइकिलें नहीं दिखीं, पर बैटरी से चलने वाले दुपहिया वाहन यहां खूब चल रहे हैं। शहर में बसें, ट्राम, मेट्रो टैक्सी आदि भी लोग जिम्मेदारी से इस्तेमाल करते हैं। हर तरह के वाहन महिलाएं भी सहजता और कुशलता से चलाती हैं।
एक शाम कलाकार मित्रों के साथ इनडोर स्टेडियम जाने का मौका मिला। स्टेडियम की छत से चांगचुंग शहर का नजारा देखने लायक था। भाषा अवश्य यहां एक समस्या है। बहुत कम लोगों को अंगरेजी का सामान्य ज्ञान है। चूंकि हम यहां विदेशी हैं और चीनी भाषा हमारे लिए विचित्र, तो कुछ रोचक अनुभव हमारे हिस्से आने ही थे। किसी रेस्तरां में जब शाकाहारी सामान्य भोजन मंगवाना हो तो निश्चित ही यह एक कठिन काम होता। बात कभी-कभी इतनी रसहीन हो जाती कि अर्थ का अनर्थ हो सकता था।
हम चालीस कलाकारों ने यहां अपने एक महीने के प्रवास में जो शिल्प रचे, उनकी प्रदर्शनी चांगचुंग विश्व शिल्प कला उद्यान में आयोजित होनी है। आयोजकों ने एक दिन हमें इस शिल्प उद्यान का भ्रमण कराया। बाईस हेक्टेयर में बने इस पार्क का अस्सी प्रतिशत हिस्सा खुले आकाश में है। उद्यान में एक बड़ी झील भी बनाई गई है, जिसके चारों ओर समकालीन कलाकारों द्वारा बनाए गए मूर्त-अमूर्त शिल्पों को प्रदर्शित किया गया है। अधिकतर शिल्प पत्थर और लकड़ी से बने हैं। विश्व के लगभग हर देश के कलाकारों को यहां आमंत्रित कर उनसे शिल्पों की रचना कराई गई है। उद्यान शहर की मुख्य सड़क के पास ही है। इसे देखने के लिए यहां तीस-चालीस बैटरी-चालित बग्गियां हैं। इन्हीं बग्गियों पर सवार होकर पूरा उद्यान देखा जाता है। उद्यान के अपने गाइड भी हैं, पर सभी चीनी भाषा में ही उद्यान से जुड़े रोचक विवरण बताते हैं।
हर वर्ष यहां लाखों चीनी और विदेशी दर्शक आते हैं। हर साल यहां अंतरराष्ट्रीय मूर्तिकला शिविर का आयोजन किया जाता है, जिसमें तीस-चालीस कलाकार देश-विदेश से आमंत्रित किए जाते हैं और वे एक माह रह कर पत्थर, धातु या लकड़ी से अपने शिल्प रचते हैं। जिस दिन हम सिरेमिक कलाकारों की प्रदर्शनी का शुभारंभ होना है, उसी दिन यहां तीन दिवसीय शिल्प कला सम्मेलन की भी शुरुआत होनी है, जिसमें विश्व के लगभग दो सौ कलाकार, कला समीक्षक और क्यूरेटर हिस्सा लेने वाले हैं। यह मूर्तिकला का सचमुच विशाल आयोजन है।
प्रदर्शनी के शुभारंभ के बाद हम सभी दो सौ कलाकारों को उद्यान में सामूहिक तस्वीर खिंचवाने के लिए एकत्रित किया गया। यह हममें से अधिकतर कलाकारों के लिए सबसे बड़ी सामूहिक तस्वीर होगी। उद्यान में एक कला दीर्घा भी है, जिसमें अफ्रीकी कला का स्थायी प्रदर्शन होता है। अफ्रीकी कलाकारों द्वारा छोटे-बड़े करीब पांच सौ लकड़ी के बनाए गए शिल्पों को यहां अफ्रीका से लाया गया है। दीर्घा की बाहरी दीवार पर अफ्रीकी चित्रकला भी प्रदर्शित है। ये चित्र इनेमल रंग से बनाए गए हैं। यह देखना मेरे लिए आश्चर्यजनक था। हमारे यहां एनेमल रंग का उपयोग होर्डिंग, नाम पट्टिका, ट्रकों और अन्य वाहनों पर नंबर और घरों के दरवाजे और लोहे की जाली रंगने के लिए होता है, कलाकार इस रंग से चित्र नहीं बनाते। इस कला प्रांगण में घूमते हुए भारत भवन भोपाल की याद आती रही। शिल्पों के इस महा-प्रांगण में अपने चीनी मिट्टी के शिल्पों को देखना सुखद रहा। चीन से विदा लेने के पहले हम सभी कलाकारों को उद्यान की ओर से हमारी सामूहिक तस्वीर का एक बड़ा प्रिंट भेंट किया गया। इस विशाल शिल्प उद्यान की स्मृति मेरे स्टूडियो की दीवार पर अब भी जीवित है।
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