महाराष्ट्र में भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के साथ ही नए मुख्यमंत्री का नाम तय हो गया है। देवेंद्र फडणवीस राज्य के नए और महाराष्ट्र में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री होंगे। उनके हाथ में बागडोर आना राज्य की राजनीति में आए बदलाव को भी सूचित करता है। महाराष्ट्र में पहली बार भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला है। इससे पहले, 1995 से 1999 के दौरान भी भाजपा राज्य की सत्ता में रही थी, पर गठबंधन सरकार में कनिष्ठ साझेदार के तौर पर। उस गठबंधन सरकार की अगुआई शिवसेना के पास थी। मगर ढाई दशक बाद इस बार दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और नतीजों ने उनके पुराने समीकरण बदल दिए हैं। दो सौ अट्ठासी सदस्यों की विधानसभा में एक सौ बाईस सीटें हासिल कर भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। जबकि शिवसेना अपनी सीटों में कुछ इजाफे के बावजूद भाजपा के मुकाबले करीब आधी सीटें ही हासिल कर सकी। त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर उभरते ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने बगैर मांगे भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी, जबकि नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान राकांपा को भ्रष्टाचारवादी कहा था।
राकांपा की पेशकश का लाभ उठाते हुए भाजपा ने शिवसेना को यह अहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह उसके समर्थन की मोहताज नहीं है, अगर शिवसेना की साझेदारी या समर्थन से सरकार बनी भी तो उसकी कोई शर्त नहीं मानी जाएगी। पर यह भाजपा का ही नहीं, राकांपा का भी खेल है। शरद पवार चाहते हैं कि नई सरकार की शिवसेना पर निर्भरता कम से कम हो। बहरहाल, पार्टियों के गणित में आए बदलाव के अलावा और भी कई बातें लंबे समय बाद हुई हैं। मसलन, दशकों बाद मुख्यमंत्री विदर्भ से होगा, जहां से भाजपा को अपनी एक तिहाई सीटें हासिल हुई हैं। फडणवीस विदर्भ से चौथे मुख्यमंत्री होंगे, इससे पहले विदर्भ से आने वाले जिस राजनीतिक ने यह जिम्मेदारी संभाली थी वे सुधाकर राव नाइक थे। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय और चीनी लॉबी का दबदबा रहा है। यह वर्चस्व टूटा है। लेकिन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहते हुए फडणवीस ने चाहे जितनी सक्रिय भूमिका निभाई हो, पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव नहीं लड़ा था। पार्टी के चुनाव अभियान के केंद्र में नरेंद्र मोदी थे। इस मायने में फडणवीस की स्थिति शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जैसे क्षत्रपों से अलग है। मगर अब उन पर जो जिम्मेदारी आन पड़ी है वह मोदी की छाया बन कर पूरी नहीं की जा सकती।
महाराष्ट्र बड़ा राज्य है और कई तरह की जटिलताओं से भरा हुआ भी। एक तरफ राज्य की औद्योगिक अग्रगामिता में आए ठहराव को तोड़ना है और दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र को संकट से उबारना है। पिछले कुछ वर्षों से विदर्भ की पहचान किसानों की खुदकुशी की घटनाओं से होती रही है। विदर्भ के एक राजनीतिक के हाथ में राज्य की कमान आने से स्वाभाविक ही इस इलाके के लोगों की उम्मीदें बढ़ी हुई होंगी। क्या फडणवीस विदर्भ की कृषि त्रासदी की तह में जाएंगे? सिंचाई घोटाले सहित भ्रष्टाचार के कई मामलों में कार्रवाई की मांग उठ सकती है। शिवसेना को नाथने के लिए राकांपा से पेंग बढ़ाने की तरकीब भाजपा को अभी भले रास आ रही हो, मगर देर-सबेर नई सरकार की साख को इससे नुकसान हो सकता है। बहुमत साबित करने के लिए फडणवीस को पंद्रह दिन का वक्त मिला है। इस बीच बहुमत के लिए होने वाली कवायद से भी नई सरकार की राजनीतिक मुश्किलों के कुछ संकेत मिल जाएंगे।