भारी उद्योगों को परियोजनाएं शुरू करने के लिए भूमि आबंटन में पर्यावरण मंत्रालय का अड़ंगा या फिर पक्षपातपूर्ण रवैया छिपा नहीं है। यूपीए सरकार के समय इसे लेकर कई बार अंगुलियां उठीं। ये भी आरोप लगे कि सरकार जिन उद्योग समूहों को पर्यावरण संबंधी मंजूरी देना चाहती थी और किसी पर्यावरण मंत्री ने उसे लटकाने की कोशिश की तो उसे हटा दिया गया। जयराम रमेश का विभाग अचानक बदल दिया गया तभी ये सवाल उठने लगे थे। क्योंकि उन्होंने कुछ परियोजनाओं को मंजूरी देने से मना कर दिया था। फिर जयंती नटराजन को मंत्री बनाया गया और उन परियोजनाओं को हरी झंडी मिली। इसे लेकर नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंचों से यूपीए सरकार के पर्यावरण मंत्रालय में चल रही अनियमितताओं पर सवाल उठाना शुरू कर दिया था। अब जयंती नटराजन ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफे की घोषणा करते हुए अपने कार्यकाल में हुई अनियमितताओं का खुलासा किया है। उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर आरोप लगाया है कि पर्यावरण मंत्रालय का कामकाज उन्हीं की देखरेख में चलता था और नटराजन ने सारे फैसले उन्हीं के कहने के मुताबिक किए। इससे कांग्रेस एक बार फिर सांसत में पड़ गई है। मोदी सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि वह उन तमाम फैसलों की जांच कराएगा। नटराजन के बयान के मद्देनजर सीबीआइ ने कुछ मामले तुरंत दर्ज कर लिए हैं। सरकार नटराजन या फिर पूरी अनियमितता के खिलाफ क्या कदम उठाती है, देखने की बात है। मगर जिस तरह जयंती नटराजन ने खुलासा किया है कि पर्यावरण मंत्रालय के कामकाज को लेकर की गई जासूसी के मामले में नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने के लिए उन पर दबाव डाला गया था, उससे उनकी राजनीतिक रणनीति का कुछ पता जरूर मिलता है।

सवाल है कि जयंती नटराजन ने अनियमितताओं का खुलासा अभी क्यों किया। अगर वे सचमुच सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैए और गलत तरीके से पर्यावरण संबंधी मंजूरियां देने से विचलित थीं तो उन्होंने तभी इसका खुलासा क्यों नहीं किया। नटराजन की कांग्रेस से नाराजगी की वजह बहुत मामूली है। खुद नटराजन को यह कह कर पर्यावरण मंत्रालय से हटाया गया था कि पार्टी की अहम जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी, मगर फिर उन्हें कोई महत्त्व नहीं दिया गया। वे काफी समय से पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का वक्त मांग रही थीं, मगर वे उनसे नहीं मिले। इससे वे आहत हुर्इं और एक विस्फोटक पत्र लिख कर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। मीडिया के सामने भी उन्होंने गुबार निकाला। यानी अगर उन्हें पार्टी की कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई होती, राहुल गांधी ने उनसे कोई दूरी नहीं बनाई होती तो वे अब भी चुप्पी साधे रहतीं। यह पहली बार नहीं है, जब किसी वरिष्ठ नेता ने पार्टी के आला नेताओं से नाराजगी के बाद अलग होते हुए सारे राज उगले हैं। इस तरह उनका किया-धरा जायज नहीं हो जाता। विचित्र है कि ज्यादातर राजनेताओं को जब तक सत्ता या पार्टी में अहम जगह मिली रहती है, सारे गलत कामों पर परदा डालते रहते हैं और जैसे ही उनके निजी हित प्रभावित होने लगते हैं, वे राज खोलना शुरू कर देते हैं। जयंती नटराजन वरिष्ठ नेता हैं और लंबे समय तक सत्ता के करीब रही हैं, उन्हें अभी क्यों कांग्रेस के नेताओं में कमजोरियां दिखाई देने लगीं हैं। यूपीए सरकार की कई अनियमितताओं के खुलासे हुए, उन्हें लेकर देश भर में आंदोलन चले, सीबीआइ ने जांच शुरू की और कई नेता दोषी पाए गए, मगर तब नटराजन की आत्मा क्यों नहीं जागी। उनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा जो हो, पर उनके आरोपों के मद्देनजर निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

 

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