दाल में काला
कालेधन पर कोई और नहीं केंद्र में विराजमान मोदी सरकार ही ‘ब्लैकमेल’ की कोशिशों के बीच अपनी साख पर कालिख पोत रही है। सौ दिनों में कालेधन को भारत लाने के वादे के साथ सत्ता में आई भाजपा अपने बचाव में अब भी कांग्रेस को ही हथियार बना रही है। वित्तमंत्री अरुण जेटली बयान देते हैं कि अगर हमने विदेशी बैंकों में कालाधन छिपाने वालों के नाम बताए तो कांग्रेस को शर्मिंदगी झेलनी होगी। जेटली को भला कांग्रेस की शर्मिंदगी का भय क्यों सता रहा है? कहीं इस बहाने वे अपने खास लोगों को तो नहीं बचा रहे हैं? उन्होंने शीर्ष न्यायालय के सामने आठ सौ में से चुनिंदा 136 नामों को ही प्रस्तुत करने की बात क्यों कही? न्यायालय को इसका संज्ञान लेना चाहिए। विपक्ष में थे, तो कांग्रेस और अब सत्ता में हैं तो भी कांग्रेस पर हमले! जबकि हकीकत यह है कि मोदी सरकार ने आज तक जो भी नीति अपनाई या कार्य हाथ में लिए हैं, सब कांग्रेस सरकार की नीतियां रही हैं या उसके द्वारा शुरू किए गए काम हैं।
कालेधन पर भी मोदी सरकार ने नया कुछ नहीं किया। एसआईटी भी पिछली सरकार ने न्यायालय के दबाव में बनाई गई थी, चुनाव आचार संहिता के उल्लघंन की भाजपा की शिकायत पर ही कार्य आगे नहीं बढ़ा। नई सरकार बनने पर शुरू हुआ। जो कमेटी तय हुई थी, वही रही। विदेशों में कालाधन रखने वालों के नाम उजागर करने को लेकर जिन अंतरराष्ट्रीय संधियों का हवाला कांग्रेस सरकार दे रही थी, वही अब मोदी सरकार दे रही है। विपक्ष में रहते हुए यही लोग जो कह रहे थे, अब खुद उसे क्यों नहीं कर रहे हैं? गलतबयानी और जनता को धोखा देने के लिए क्यों नहीं न्यायालय को इनके खिलाफ संज्ञान लेना चाहिए? मोदी सरकार तो घोषित तौर पर खास लोगों की सरकार है। यह विदेशी बैंकों की तो छोड़ें, देशी बैंकों में 1,30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि डकारे बैठे हमारे धन्नासेठों के नाम तो बता नहीं रही। हाशिये पर सरकती कांग्रेस पर सब कुछ डाल कर अपनी नाकामी छुपाने और जनता को भ्रमित करने का खेल ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है। उपचुनावों में भाजपा के घटे समर्थन को महाराष्ट्र में भी महसूस किया गया है। महाराष्ट्र के चौकोने मुकाबले में ले-देकर ही सरकार बनने जा रही है।
दिवाली आई, बाजार ने कुलांचें भरी और पूंजीवादी समृद्धि का सूचक शेयर बाजार भी छलांगें मारता दिखाई दिया पर गरीब की भूख और तकलीफ वहीं रही। दिवाली से एक सप्ताह पहले अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने स्वीकार किया कि हमारे सतत प्रयासों के बाद भी विश्व में हर दिन 1.2 अरब लोग 75 रुपए से भी कम राशि पर दिन का गुजारा करते हैं। इस दुनिया में 2.4 अरब लोग 120 रुपए रोजाना पर गुजारा करते हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ‘वर्ष 2008 में वित्तीय संकट की शुरुआत के बाद से गैर बराबरी और बढ़ी है। महिलाओं और लड़कियों के साथ भेदभाव भी कायम है।’ उन्होंने दुनिया को सचेत करते हुए कहा कि ‘बढ़ती गरीबी और तरफदारी और धन व अभाव के बीच बड़ी खाई समाज के ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकती है। इससे अस्थिरता होगी।’
गरीबी के इस नरक के बीच समृद्धि के टापू इतरा रहे हैं। महज 3.5 करोड़ लोग या 700 करोड़ विश्व आबादी के केवल दो प्रतिशत लोगों के पास संसार की आधी दौलत है। यानी 696.5 करोड़ लोगों के पास कुल मिला कर इतना धन है जितना 3.5 करोड़ धनवानों के पास है।
यह विषमता भारत में भी कम नहीं है। देश के सौ अमीरों के पास ही 20,760 अरब रुपए की दौलत है। जबकि 95 प्रतिशत लोगों के पास औसतन छह लाख रुपए से भी कम की संपदा है। विश्व के 3.5 करोड़ अमीरों में 2.5 लाख भारतीय हैं। दुनिया के दो प्रतिशत रइसों की संपदा को सब में बराबर बांट दिया जाए तो हर व्यक्ति के हिस्से में 22.54 लाख रुपए आएंगे। यह उसी तरह की दिलासा है जैसी कालेधन को लेकर मोदी ने हर भारतवासी के बैंक खाते में 15 लाख रुपए आ जाने की बात चुनाव प्रचार के दौरान कह कर दी थी। कांग्रेस के प्रवक्ता अजय माकन मोदी से पूछ रहे हैं कि मेरे खाते में वे पंद्रह लाख अभी तक क्यों नहीं आए? दाल में कहीं कुछ काला है।
’रामचंद्र शर्मा, तरुछाया नगर, जयपुर
चुनाव से परहेज
एक तरफ तो दिल्ली में विधानसभा भंग करके दुबारा चुनाव कराने की मांग हो रही है और न्यायालय में इस बाबत मामला लंबित है। दूसरी ओर चुनाव आयोग ने तीन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव की घोषणा कर दी। यह सब क्या दर्शाता है? केंद्र सरकार दिल्ली के शासन के प्रति गंभीर क्यों नहीं है? लगता है, भाजपा अब दिल्ली में दलबदल करा कर सरकार बनाने की तैयारी में है। नौ-दस महीने से सरकार करोड़ों रुपए बिना काम के विधायकों पर बर्बाद कर रही है। उसी कड़ी में तीन विधायक और आ जाएंगे। यदि सरकार का गठन नहीं हो पाता है और विधानसभा भंग हो जाती है तो उसके बाद सभी सत्तर विधायक जिंदगी भर पूर्व विधायकों को मिलने वालेलाभ के पात्र होकर जनता के धन की बर्बादी करेंगे। क्या इसी का नाम प्रजातंत्र है?
यश वीर आर्य, दिल्ली