कांग्रेस को सबक
महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है और अब उसने सही मायनों में अपने आप को देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है। हरियाणा में जहां भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है, वहीं महाराष्ट्र में भी वह सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई है, वहां पचीस साल बाद कोई पार्टी एक सौ से ज्यादा सीटों का आंकड़ा पार करने में कामयाब हो पाई है। खास बात यह है कि इन दोनों ही राज्यों में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं घोषित किया गया था, यहां भारतीय जनता पार्टी द्वारा नरेंद्र दामोदर दास मोदी को ही पार्टी के चेहरे के तौर पर पेश किया गया था, अति आत्मविश्वास से भरा उसका यह दांव कामयाब रहा, और लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी अपनी पहली परीक्षा में पास हो गए हैं।
नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा धीरे-धीरे कांग्रेस की जगह ले रही है, भविष्य में झारखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल जैसे राज्यों में एक के बाद एक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन शायद खुद कांग्रेस को ही इसमें उम्मीद की कोई किरण नजर आती दिखाई नहीं दे रही है, दूसरी तरफ भाजपा है जो अपने ‘भारत विजय’ के मिशन को लेकर बहुत उत्साहित नजर आ रही है। नई सरकार बनने के बाद से नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेसी नेतृत्व भी अदृश्य-सा हो गया है, पार्टी के पास अब ऐसा कोई नेता नहीं है, जो आगे बढ़ कर नेतृत्व का शून्य भर सके और कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊपर उठा पाए। लेकिन अकेले केंद्रीय नेतृत्व की शिथिलता ही कांग्रेस की समस्या नहीं है।
आए दिन कांग्रेस के नेतागण मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए दलील पेश करते नजर आते हैं कि इस सरकार के पास अपना विजन नहीं है और यह हमारे कार्यक्रमों को ही आगे बढ़ा रही है। दरअसल, कांग्रेस नेताओं की इसी दलील में ही कांग्रेस के मूल समस्या का जड़ छिपा है। भाजपा ने अपने आप को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश किया था, सत्ता मिलने के बाद वह कांग्रेस की भूमिका को उससे भी बेहतर तरीके से निभा रही है, आज हम सब गवाह हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मोदी सरकार कांग्रेस के उदारवादी आर्थिक नीतियों को नई ऊंचाइयां दे रही है।
एक समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कांग्रेसी-नुमा विकास दर का जो पहिया धीमा पड़ गया था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी मेहनत और मुश्तैदी से उसे गति देने की कोशिश में मशगूल हैं, इस मामले में तो वे भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी से भी एक कदम आगे नजर आ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस बात के लिए मना लिया है कि वे हिंदुत्व के अपने सामाजिक एजेंडे को लागू कराने के लिए आर्थिक क्षेत्र में स्वदेशी का राग अलापना बंद कर दे।
इसका विकल्प तो बस एक ही है कांग्रेस का गैर-कांग्रेसीकरण, लेकिन यह बहुत मुश्किल और जोखिम भरा काम होगा, इसके लिए कांग्रेस पार्टी को अपनी परछार्इं से पीछा छुड़ाते हुए पूरी तरह से अपना कायाकल्प करना होगा। अगर वह चाहती है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का सपना नाकाम साबित हो तो इसके लिए उसे और उसके नेता को नरेंद्र मोदी, उनकी पार्टी और सरकार के विकल्प के रूप में पेश होना पड़ेगा। इस मुल्क में एक साथ दो दक्षिणपंथी पार्टियां कामयाब नहीं हो सकती हैं, इसलिए कांग्रेस को देश की मौजूदा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के आर्थिक सामाजिक एजेंडे के बरअक्स नया विकल्प देना होगा।
राजनीति में एकतरफा वर्चस्वता अपने साथ एकाधिकार भी लेकर आती है, देश में लोकतंत्र की मजबूती और इसे कायम रखने के लिए विकल्प का होना बहुत जरूरी है, लेकिन यहां जिन्हें विकल्प होना था वे फिलहाल खुद ही अपना अस्तित्व खोज रहे हैं।
’जावेद अनीस, भोपाल
बेतुकी परिपाटी
राष्ट्रीय परंपराओं की रक्षा और उन्हें सम्मान देने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब एम्स के दीक्षांत समारोह में नीला गाउन (चोला) पहने हुए देखा तो दुखद आश्चर्य हुआ। नवयुवकों के ज्ञानवान बनने के शुभ अवसर पर काले, नीले गाउन और टोपी पहनने की औपनिवेशिक परंपरा को कब तक बिना सोचे-विचारे देश के कर्णधार और हमारे सम्माननीय नेतागण निभाते रहेंगे?
यूपीए सरकार के मंत्री जयराम रमेश ने एक दीक्षांत समारोह में, जहां वे मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे, इस तरह का गाउन पहनने से मना कर एक प्रशंसनीय उदाहरण पेश किया था। क्या हम इस प्रकार के विदेशी गाउन के स्थान पर कोई वैसा वेश नहीं अपना सकते, जो भारत की अपनी पहचान का वाहक हो?
’विनोद कुमार सर्वोदय, गाजियाबाद
नोबेल के बहाने
शांति का नोबेल पुरस्कार भारत और पाकिस्तान दोनों को संयुक्त रूप से देने की घोषणा हुई है, जिसमें भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को, ये नोबेल पुरस्कार ऐसे समय में दिए जा रहे हैं, जब भारत-पाक सीमा पर अशांति है और लोग विश्व में अमन-चैन और शांति चाहते हैं।
लेकिन पाकिस्तान की मंशा जगजाहिर है, वह जम्मू-कश्मीर के बहाने सीमा पर तनाव और कश्मीर में घुसपैठ की फिराक में लगा रहता है। इसलिए पाकिस्तान नहीं चाहता कि भारत में अमन-चैन और शांति रहे। क्योंकि पाक के पास और कोई हथियार ही नहीं है, जो भारत को उलझाए रख सके या ओछी राजनीति कर सके।
’रामनरेश गुप्ता, विवेक विहार, जयपुर