ललिता जोशी
हमारे देश के बहुत सारे बच्चे विदेश पढ़ने के लिए जाते हैं और उनके अभिभावक भी बड़े गर्व से उन्हें खर्च करके उन्हें वहां भेजते हैं, चाहे उन्हें कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। दूसरी ओर, हमारे यहां से उच्च स्तर का सरकारी अमला भी प्रशासनिक कार्यप्रणाली में सुधार लाने के नाम पर विदेशों में सरकारी खर्चे पर जाता है, ताकि वह अपनी कार्यप्रणाली सुधार कर देश सेवा में अपनी प्रभावी भूमिका निभा सके।
न जाने आज तक कितनों ने विदेश में जाकर प्रशिक्षण लिया होगा, लेकिन क्या अपने देश की कार्यप्रणाली में विदेश की व्यवस्थाओं की तरह का पेशेवर दृष्टिकोण दिखाई देता है? ऐसे ही हमारे नेता भी विदेशों में ‘स्टडी टूर’ यानी ‘अध्ययन पर्यटन’ के लिए जाते रहते हैं। कभी किसी देश की शिक्षा या उसकी नीति के अध्ययन के लिए जाते हैं तो कभी सीवर व्यवस्था की ‘स्टडी’ के लिए।
लेकिन हमारे यहां जहां-तहां भरे हुए नाले और बहते हुए सीवर की बदबू और उस पर भिनभिनाती मक्खियां, बदबूदार धाराओं से गुजरना आम आदमी के लिए एक आम बात है। खतरनाक गंदगी और गैसों से भरे सीवर में सफाई के लिए उसमें उतरे इंसान की अक्सर जान चली जाती है। सवाल है कि लाखों-करोड़ों खर्च करके विदेश के ‘स्टडी टूर’ का क्या फायदा?
यह अच्छी बात है कि हमें दूसरों से अच्छी बातें सीखनी चाहिए, चाहे वह मनुष्य हो या कोई देश। कभी शिक्षा पद्धति के लिए, कभी शहरी नियोजन, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और न जाने ऐसी ही कितनी व्यवस्थाओं में सुधार के लिए विदेशी दौरे किए जाते हैं। लेकिन क्या आज तक हमारे यहां महानगरों में मेट्रो के अलावा कोई परिवहन व्यवस्था सफल हुई है? विकसित देशों में पैदल चलने वालों का खास खयाल रखा जाता है। हमारे यहां आए दिन दुर्घटनाओं के शिकार बच्चे, बूढ़े और जवान सभी बनते रहते हैं। क्या इस पर अभी तक कोई प्रभावी कार्ययोजना बनी है?
कई देशों की शिक्षा पद्धति का ढिंढोरा पीटा जाता है कि उसे देख कर हम अपने देश में नौनिहालों का उद्धार करेंगे। क्या इन नियामकों ने कभी सोचा कि जिन घरों में दो जून की रोटी का जुगाड़ करने का संघर्ष हो और बच्चों का आकर्षण केवल मध्याह्न भोजन हो, वहां के बच्चों को उनके पाठ्यक्रम में शामिल की गई ‘खुशी की कक्षा’ क्या खुशी देगी? कृत्रिम रूप से अगर कोई भी भावना थोपी जाए तो वह ज्यादा देर तक प्रभावकारी नहीं हो सकती। हमारे उच्चाधिकारियों और नेताओं के अध्ययन पर्यटन के दौरान किए गए अध्ययन को अगर अपने देश की स्थितियों और परिस्थितियों के अनुरूप क्रियान्वित न किया जाए तो यह सब व्यर्थ ही है।
विदेशों में जाकर अध्ययन किया जाता है कि बच्चों की पढ़ाई और स्कूल की इमारतें कैसी हों। हमारे यहां स्कूल की इमारतें भव्य और ‘दिव्य’ बना दी गर्इं, लेकिन क्या पढ़ाई भी विश्वस्तरीय होती है। कुछ देशों में एक-एक नागरिक का जीवन वहां की सरकारों के लिए अनमोल होता है। ज्यादातर देशों में खाद्य पदार्थों में मिलावट नहीं की जाती और अगर कोई मिलावट करने वाला पकड़ा जाए तो उसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।
लेकिन अपने यहां बच्चों के दूध से लेकर दवाइयों तक में मिलावट की जाती है। बेचारा निर्दोष ग्राहक पूरी कीमत देकर अपने लिए अनजाने में बीमारियां खरीदता है और मिलावट करने वाले मालामाल होते रहते हैं। ऐसे ही प्राकृतिक तरीके से उगाई गई सब्जी और दालों के नाम पर बेची जाने वाली दाल और सब्जियों में जैविक खाद के नाम पर कृत्रिम रसायन डाले जाते हैं। सब्जियों के आकार बढ़ाने के लिए उन्हें इंजेक्शन लगाए जाते हैं।
यही हाल मासांहारी लोगों के खाने-पीने की वस्तुओं का है। फर्टिलाइजर से नकली और मिलावटी दूध बनाया जाता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है। मुनाफा कई गुना और उपभोक्ता बीमारी के घेरे में। त्योहारों के समय अक्सर नकली मावे से मिठाइयां बनाई जाती हैं। ऐसे न जाने कितने ही मिलावटी खाद्य पदार्थ प्रयोग में लाए जा चुके होते होंगे, जो पकड़ में नहीं आते। यही हाल दवाइयों के क्षेत्र में भी है।
क्या अध्ययन पर्यटन पर जाने वाले समूह इन सभी मुद्दों पर सरकार को संस्तुति देते हैं? ऐसा ही एक और उदाहरण पशु प्रेमियों का भी है। पशुओं से प्रेम करना अच्छी बात है। लेकिन आजकल कुत्तों के प्रति मनुष्य का प्रेम अलग स्वरूप में देखने में आ रहा है। ऐसे कितने ही मामले सामने आते रहते हैं, जिसमें पालतू या आवारा कुत्तों ने लोगों को अपना शिकार बनाया।
कई बार कुत्ते बच्चों और बुजुर्गों को नोच और काट कर मार ही डालते हैं। मनुष्यों के लिए पशुओं को सुरक्षित बनाया जाना चाहिए। इसके रखरखाव के लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जरूरत है। लेकिन यहां अपने देश पर कुत्तों की गंदगी की शिकायत पर कभी-कभी हत्या तक हो जाती है। विदेश में इनके मालिक अपने पशुओं की गंदगी खुद उठा कर कूड़ेदान में डाल देते हैं, लेकिन अपने यहां आम रास्तों और पार्कों में बिखरते रहते हैं। तो वैसे अध्ययन पर्यटनों का क्या लाभ, जिनका प्रभाव अपने देश में देखने को न मिले!