कारुलाल जमड़ा

शिशिर की शीतल पवन से थोड़ी राहत मिलती है, तो वासंती पवन के मादक झोंके मन को आह्लादित करने लगते हैं। डाल-डाल पर कोपलें फूटने लगती हैं। आम बौराने लगते हैं और टेसू के फूलों पर इसका प्रतिबिंब दिखाई देने लगता है। गुलमोहर, रातरानी और मोगरे की उन्मादी सुगंध बहने लगती है। कोयल की कुहू-कुहू पंचम सुर में पुकारती-सी लगती है कि देखो केसरिया परिवेश में वसंत ने दस्तक दे दी है। वसंत के ऐश्वर्य का अनुभव सच्चे अर्थों में जीवन को धन्य बना देता है।

वसंत का तात्पर्य ही है प्रफुल्लता या प्रसन्नता। ऋषि-मुनियों ने भी वसंत की महिमा का गान किया है। संस्कृत में वसंत का प्रचुर उल्लेख मिलता है। वसंत पंचमी के समय सरसों के पीले पुष्प से झूमते खेत आंखों को अपूर्व आनंद देते हैं। यही पीला रंग वासंती रंग कहलाता है। वसंत ऋतु प्रकृति का मनोहर, अनुपम रूप है। वह प्रकृति का शृंगार है। प्रकृति थके हुए मनुष्य के मन में इंद्रधनुषी रंग भर सकती है। प्रकृति के विरुद्ध व्यवहार पृथ्वी पर मानव जीवन के अस्तित्व को ही समाप्त कर सकता है। वसंत सृष्टि को नवपल्लवित करता है। मानव जीवन प्रकृति के बिना संभव नहीं है, इसकी अनुभूति कृष्ण को भी थी। इसलिए प्रकृति को न केवल उन्होंने समझा, बल्कि उसका उपयोग भी किया।

श्रीकृष्ण, कल-कल बहती यमुना, ब्रज की छवि, वनराज, गोवर्धन पर्वत का गर्वीला सान्निध्य, गाएं आदि प्रेमानुराग का संचरण करते हैं। वसंत प्रकृति की यौवनावस्था है और आशा का प्रतीक भी। प्रकृति का यह यौवन आशा का संचार करता है। वासंती रंग यह भी सीख देता है कि दुख की घड़ी, निराशा का वक्त लंबा नहीं होता। आखिरकार वासंती रंग की तरह खुशियों के रंग भी जीवन को सराबोर करते ही हंै। जरूरत है तो केवल इस बात की कि धैर्य रखते हुए वसंत की भांति उज्ज्वलता का वरण किया जाए और यह उज्ज्वलता आती है- आशावादी दृष्टिकोण से।

जो घोर अंधेरे में भी रोशनी की किरण देख लेता है, दबावों और तनावों के बावजूद विचारों में बिखराव नहीं आने देता, कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कराते हुए पूर्ण आशावान बना रहता है, वह लड़खड़ा भले जाए, बिखरता नहीं है। उसका दृष्टिकोण आशा और उत्साह से परिपूर्ण रहता है। कहते हैं, पतझड़ आया है तो बहार भी निश्चित आएगी। वसंत का आगमन उसी आशावादी सोच की परिणति है। स्वस्ति-गायन करता आकाश, सुरभि बिखेरती पवन- सभी सुख-समृद्धि की ओर ले जाते हैं और स्नेह, समता और बंधुत्व का भाव मन में जगाते हैं। वसंत की धारणा तो हमारी स्वाभावगत प्रकृति में ही निहित है। बस हमें उस धारणा को समष्टिगत कर परिपक्वता की ओर ले जाना है।

जीवन भी उतार-चढ़ाव के ताने-बाने से बुना है। धूप-छांव की तरह जीवन में उभयपक्षीय हलचलें होती रहती हैं। विश्वास और आशा बनाए रखना कठिन है और निराश होना आसान। बहुतेरे लोग प्रतिकूल परिस्थितियों से घबरा कर चिंतित, परेशान होकर आशा का संबल छोड़ देते और निराशा के घने अंधेरे में फंस कर अपने जीवन को चौपट कर लेते हैं। निराशा का अहसास किसी भी स्थिति में खतरनाक है। इससे बचे रहना तभी संभव है जब हमारी आशा की ज्योति विषमता की आंधियों में भी जलती रहे।

वसंत सृष्टि को नया सौंदर्य प्रदान करता है। इसके आगमन के साथ ही ऐसा लगता है जैसे अंतस में कोई अनजानी हूक बन गई हो। प्रकृति की भांति हृदय में भी चेतना जागृत होती है। कोयल के पंचम सुर पर वसंत नृत्य करता हुआ-सा लगता है। जीवन के वसंत में भी इस उत्सव का स्वागत किया जाना चाहिए। वसंत तो जीवन में किसी भी क्षण आ आ सकता है, भले धीरे-धीरे आए। प्रश्न है कि इसके स्वागत की तैयारी कैसे की जाए? वासंती रंग हमें यही संदेश देता है कि पतझड़ के बाद वसंत, दुख के बाद सुख और रात के बाद दिन, सृष्टि का नियम है। हमारा जीवन रूपी पुष्प हमेशा खिला रहे, कभी मुरझाने न पाए, इसके लिए निराशा और निरुत्साह को पास नहीं आने देना चाहिए। ये तो तुषारापात की तरह हैं, जिनसे जीवन-पुष्प मुरझाता ही है। इसलिए आशावादी बन कर प्रगति के मार्ग का वरण करना चाहिए। वसंत के फूल जहां सदा प्रफुल्लित रहने की सीख देते हैं, वहीं वासंती पवन का मदमस्त झोंका जीवन को गति प्रदान करना सिखाता है। वसंत का प्रकाश जीवन में समरसता बनाए रखने का संदेश देता है।