शिखर चंद जैन
अगर कभी गौर किया जाए तो हम यह साफ महसूस कर सकते हैं कि हमारी जिंदगी अनगिनत अच्छे और बुरे पलों या घटनाओं की एक शृंखला ही है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपना सारा ध्यान बुरी यादों और बुरी घटनाओं पर ही केंद्रित करके दुखी रहें या फिर हल्के-फुल्के पलों को याद करके जरा मुस्कुरा लें और अपने दुखों से ध्यान भंग करने की कोशिश करें।
खुशी पर शोध करने वाली एक संस्था के शोधकर्ताओं के एक समूह ने ‘हैप्पी मेमोरी’ अध्ययन किया, जिसके नतीजों को उन्होंने अपनी एक किताब में दर्ज किया है। इसमें शोध करने वालों ने पाया कि हमारी यादें खुशियों का भंडार होती हैं। अच्छी यादों में बड़ी ताकत होती है। इनके सहारे हम अपने अकेलेपन, उदासी और चिड़चिड़े स्वभाव से ही नहीं, अपने बुरे दौर से भी आसानी से उबर सकते हैं। इसके लिए हमें अच्छी यादों का सृजन करने और उन्हें सहेजने की कला सीखनी चाहिए और नई आदतें डालनी चाहिए।
सबसे पहले जरूरी है कि हम आनंद के पलों में रमना सीखें। चारों तरफ अथाह जल राशि है, जिसमें लहरें अठखेलियां कर रही हैं। ऊपर साफ नीले आसमान में रुई के फाहों की मानिंद धवल बादल तैरते हुए मानो कहीं जा रहे हैं। हम एक छोटी-सी नाव में अपने परिवार और मित्रों के साथ सवार हैं। यह कितना अनुपम दृश्य है!
अब ऐसी स्थिति में हम इसमें रमने और इसका आनंद उठाने के बजाय फोन पर अपने कारोबार से संबंधित बातें कर रहे हैं, ग्राहकों की समस्याएं सुलझा रहे हैं या किसी बुरी घटना को याद करके उदास हो रहे हैं तो हमें आज के सुहाने पल भला कैसे याद रहेंगे? आनंद के पलों के कतरे-कतरे को जीना और पीना सीखने की जरूरत है। खुशी के माहौल में पूरी जिंदादिली के साथ शरीक होना सीखने की जरूरत है। अपना ध्यान अपनी पांचों इंद्रियों को जागृत रखने पर लगाया जा सकता है।
किसी शादी विवाह के नृत्य संगीत, खानपान और हंसी-मजाक के सुनहरे पलों को अपनी यादों में संजोना हो या पिकनिक की मस्ती को किसी उद्यान या अभयारण के रोमांच को सदा के लिए याद रखना हो या दोस्तों के साथ बिताए गए पलों को अविस्मरणीय बनाना हो तो हमें अपनी पांचों इंद्रियों को सक्रिय रखना चाहिए। भोजन के स्वाद का मजा लिया जा सकता है, बातों का आनंद लिया जा सकता है।
रमणीक दृश्यों को अपने मन में बसा लेना चाहिए और अनुभूतियों की गठरी को अपने मस्तिष्क में सजाने के लिए जितना संभव हो, उतना करना चाहिए। इन पलों को इस तरह सहेजा जाए कि जब भी हम उदास हों तो ये पल याद करके हल्का महसूस कर किया जा सके।
हमेशा कुछ नया करने का उत्साह रखना जरूरी है। पहली-पहली बार का कोई भी अच्छा अनुभव हमें लंबे समय तक याद रहता है। यह एक प्रामाणिक मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसलिए हम समय-समय पर कुछ नया आजमाने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे किसी समुद्री जहाज पर सैर, कोई साहसिक खेल, पहाड़ों की सैर, ऊंट की सवारी जैसे रोमांचक अनुभव आजमाया जा सकता है।
नए-नए पकवान बनाने या धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रमों में शरीक होने की रुचि रखी जा सकती है। नए खेल, नया शौक आजमाया जा सकता है। यहां तक कि अपने ही शहर के नए-नए क्षेत्रों में जाना भी हमें अच्छे अनुभव दे सकता है। पहली बार रक्तदान करना भी यादगार अनुभव हो सकता है। इससे किसी को गर्व का अनुभव भी होगा।
अपनी स्मृतियों के कोष को टटोलते-संभालते रहना कई बार जरूरी होता है। मसलन, हम समय-समय पर घर के फर्नीचर, सजावट की वस्तुएं, बर्तन, किताबों या अन्य सामानों की धूल झाड़ते हैं, उनकी साफ-सफाई करके उन्हें चमकाते हैं, ठीक उसी प्रकार स्मृति भंडार में मौजूद अपनी यादों को संभालते रहना चाहिए। वरना ये धीरे-धीरे धुंधली पड़कर अपनी चमक खो सकती हैं।
इसके लिए स्मृति चिह्न, कैलेंडर, डायरी आदि का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए। हम कहीं भी जाते हैं तो वहां से खिलौने, स्मारकों के प्रतीक की रिंग या अन्य स्थानीय सजावटी सामान जरूर खरीदते होंगे। उन्हें आंखों के सामने रखना चाहिए। विशेष अवसरों के वीडियो और तस्वीरें सहेज कर रखा जाए और उन्हें बीच-बीच में देखना एक खास अनुभव देता है।
डायरी में यात्राओं या अन्य अनुष्ठानों से जुड़े संस्मरण लिखना स्मृतियों को सहेजने का एक बेहतर जरिया है। इन्हें कभी-कभार पढ़कर मुस्कुराना जीवन को महसूस करना है। कैलेंडर पर विशेष तारीखों की वार्षिकी पर गोल घेरा बनाकर एक दो शब्दों में यादों को लिखना स्मृतियों को एक तरतीब देने की कला है। इस तरह की कुछ छोटी-छोटी गतिविधियां हमें वह जीवन फिर से वापस दे देती हैं, जो कई बार हम किन्हीं वजहों से खो चुके होते हैं। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि प्रकृति ने हमें जीवन जीने के लिए दिया है और उसमें खुशियां भरना हमारी जिम्मेदारी है।