राजेंद्र प्रसाद
रिश्ते समाज के स्वरूप में आने के बाद से ही बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, जिनका सामाजिक, पारिवारिक और व्?यक्तिगत आधार है। इसलिए जिंदगी को सही से चलाने के लिए रिश्तों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता और सारी दुनिया रिश्तों की बुनियाद पर ही टिकी है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य कई तरह के रिश्ते जीता है। कहने को तो रिश्ता शब्द बड़ा अच्छा और सुखद लगता है, लेकिन दिल जीत कर जिम्?मेदारी से रिश्ते निभाना किसी बड़ी जंग जीतने से कम नहीं है।
यह जंग मनुष्य के दिल-दिमाग को खंगालती है। इंसान बहुत तरह के रिश्ता जीता है, जिनको निभाते वक्त सारी जिंदगी दांव पर लगी होती है। रिश्तों के बिना हमारा जीवन अधूरा है। ये जुड़ाव के प्रतीक हैं जो आमतौर पर तीन ध्रुवों पर टिके हैं। कुछ रिश्ते जन्मजात खून के होते है, कुछ संबंधी होते हैं और कुछ रिश्ते भावनाओं से बने होते हैं जो कभी-कभी खून के रिश्तों से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
पारिवारिक रिश्ते नींव की तरह हैं, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक चलते हैं और काम भी आते हैं। रिश्तेदारी के संबंध दीवार की तरह होते हैं जो नींव की मजबूती के आधार पर चलते हैं और दोस्ती के संबंध अनुकूलता के आधार पर चलते हैं। अब सवाल यह है कि हम रिश्ते बनाएं और निभाएं कैसे? एक बार रिश्ते बन जाएं तो संभाल कर रखें, जिससे वे मील के पत्थर बने रहें। संबंध भावना और चाहत से पनपते हैं और जब तक ये मौजूद हैं, संबंध बने रहेंगे और जहां ये दोनों चीजें मरने लगी, वहीं संबंध ढहने लगेंगे।
रिश्ते निभाने में जिम्मेदारी समझना बहुत जरूरी है, जिसमें स्वार्थ और जरूरत तलाशते रहना दिक्कततलब है। रिश्ते तभी प्रगाढ़ होते हैं जब हम अच्छे व्यवहार से उन्?हें सजाते हैं। रिश्तों में गहराई के लिए जरूरी है कि एक-दूसरे को समझ कर जिएं। कभी-कभी नजरअंदाजी से रिश्?तों में खटास आ जाती है। अगर अपनों की कद्र करेंगे, आपसी विश्वास कायम रखेंगे तो रिश्ते की डोर और मजबूत होगी। मेलजोल या बातचीत की कमी आती है, तब रिश्?ते भी निरंतर बिखरने लगते हैं।
तेजी से बदलते दौर में रिश्तों में गर्मजोशी दिनोंदिन कम हो रही है। गहरे रिश्ते बनाने से लोग हिचक रहे हैं। हर आदमी के स्वभाव में भिन्नता उसे दूसरों से अलग करती है। जिस दिन हम ये समझ जाएंगे कि सामने वाला गलत नहीं है, सिर्फ उसकी सोच हमसे अलग है, उस दिन संबंध की गहराई समझ में आ जाएगी। रिश्तों में मतभेद रहेंगे, लेकिन वह मनभेद में नहीं बदलने चाहिए। इसमें सब्र एक ऐसी सवारी है जो अपने सवार को कभी गिरने नहीं देती, न किसी के कदमों में और न किसी की नजरों में।
रिश्ते संभालते वक्त न कद बड़ा होता है, न पद। बड़ा वह है जो मुसीबत में खड़ा है। अच्छा दिल और अच्छा स्वभाव, दोनों रिश्तों के लिए आवश्यक है। अच्छे दिल से कई रिश्ते बनेंगे और अच्छे स्वभाव से वे जीवन भर टिकेंगे। यह सही है कि राहत अपनों से मिलती है, चाहत भी, लेकिन कभी-कभी आफत भी अपनों से ही मिलती है। फिर मुस्कुराहट भी अपनों से ही मिलती है।
कभी-कभी रिश्ते परिस्थितियों से भी बनते-बिगड़ते हैं। विपरीत परिस्थिति में सोचें कि जब तक सांस है, टकराव मिलता रहेगा; जब तक रिश्ते हैं, घाव मिलता रहेगा। अगर हमारे कर्म, भावना और रास्ता सही है तो गैरों से भी लगाव मिलेगा। रिश्तों के केंद्र में ‘वाणी’ भी होती है जो चाहे तो दिल ‘जीत’ ले, चाहे दिल को ‘चीर’ दे। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि जीभ पर लगी चोट जल्दी ठीक होती है और ज्ञान कहता है कि जीभ से लगी चोट कभी ठीक नहीं होती। रिश्तों को बनाने और मनाने में बरसों लग जाते हैं, लेकिन तोड़ने में केवल एक पल लगता है। रिश्तों की गहराई के लिए हमारी सारी खूबियां कम पड़ जाती हैं और खोने के लिए एक गलतफहमी ही काफी हैं।
रिश्तों में कई बार गुस्सा आता अकेला है, मगर सारी अच्छाई ले जाता हैं। सब्र भी अकेला आता है, मगर सारी अच्छाई दे जाता है। परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं, तब व्यक्ति का ‘प्रभाव, ज्ञान और पैसा’ नहीं, ‘स्वभाव और संबंध’ काम आते हैं। कुछ लोग रिश्तों को अहं से खराब कर लेते हैं। बहस की उस जीत का क्या फायदा, जिसमें रिश्ता हार जाया जाए!
रिश्तों में जुड़ना बड़ी बात नहीं, जुड़े रहना बहुत बड़ी बात है। जो रिश्ते सच में गहरे होते हैं, वे कभी अपनेपन का शोर नहीं मचाते। रिश्ते तो एक बार बनते हैं, फिर जिंदगी उनके साथ चलती जाती है। गिले-शिकवे सिर्फ सांस लेने तक ही चलते हैं। बाद में तो सिर्फ पछतावे रह जाते हैं। जब सोच में मोच आती है, तब हर रिश्ते में खरोंच आती है। भरोसा टूटने की आवाज नहीं होती, लेकिन गूंज जिंदगी भर सुनाई देती है। हमेशा याद रखना चाहिए कि अहंकार की आरी और कपट की कुल्हाड़ी रिश्तों को काट डालती है। रिश्ते कभी भी कुदरती मौत नहीं मरते। इनका हमेशा इंसान ही कत्ल करता है। कभी नफरत से, नजरअंदाज से तो कभी गलतफहमी से।