हमारे देश में कानून-व्यवस्था, अधिकार और महिला सुरक्षा के दावे केंद्र से लेकर राज्य सरकारों के स्तर तक प्रतिदिन किए जाते हैं। लेकिन स्त्री कितनी सुरक्षित है, यह आए दिन होने वाली घटनाओं से साफ जाहिर है। कुछ ही दिन पहले दिल्ली से मुंबई के विमान में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित फिल्म अभिनेत्री नाबालिग जायरा वसीम से एक अधेड़ सहयात्री द्वारा अभद्र हरकत और छेड़छाड़ का मामला सामने आया है। इससे यही पता चलता है कि भारत में स्त्रियों के प्रति पुरुषों का दृष्टिकोण और उनके मानव अधिकारों की स्थिति कितनी चिंताजनक है। जायरा जैसी न जाने कितनी लड़कियां इस तरह के जोखिम का सामना कर रही हैं। फिर भी सरकार को इस समस्या की कोई परवाह नहीं है।
समूचे देश में रोजाना न जाने कितनी मासूम बच्चियां शिकार होती हैं। तमाम तरह की कानूनी कार्रवाई में समयबद्ध फैसलों के बजाय पीड़ित परिवारों को परेशानी के फंदे में झूलते रहना पड़ता है। दूसरी ओर दिखावे के लिए ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे भी लगाए जाते हैं। अनेक कार्यक्रमों में अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। सच यह है कि मानवाधिकार हनन की घटनाओं में सबसे ज्यादा और आसान शिकार महिला ही होती है। देश में ऐसे मामले आज भी जारी हैं। 2015 की तुलना में 2016 में देश में अपहरण, बलात्कार और हिंसा जैसी आपराधिक घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
मौजूदा स्थिति से उबरने के लिए एक जागरूक समाज का निर्माण आवश्यक है। वरना देश को सर्वांगीण विकास के पथ पर ले जाना मुश्किल होगा। अभाव या किसी समस्या से पीड़ित परिवार से पूछा जाए कि क्या हम लोकतंत्र में जी रहे हैं? आखिर किसके भरोसे हैं देश की स्त्रियां? क्या अधिकारों के नाम पर गंगाजल छिड़कना इस समस्या का हल है? आज महिलाओं को अपने अधिकार जानने की जरूरत है। तभी वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा पाएंगी। ये घटनाएं देश की लचर कानून-व्यवस्था को उजागर करती हैं। इन पर सरकार का मौन रहना भविष्य के समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
’जालाराम चौधरी, राजस्थान</p>