शरद उपाध्याय
जीवन के गणित में उलझने के बाद अंत में यही लगता है कि वह कहीं ठगा गया है और अपने लिए जी ही नहीं पाया है। जिंदगी के रिश्ते निभाते-निभाते आदमी अपने आप को कई बार भूल जाता है। यह भी याद नहीं रख पाता कि उसकी खुद की भी एक जिंदगी है, अपने भी कुछ निजी पल हैं। बच्चों से, रिश्तों से, कुछ बहुत अपना भी है, जो अक्सर जीने से रह जाता है।
इसलिए अपने लिए समय निकालना बहुत जरूरी है। जब हम अपने जीवन में झांक कर देखेंगे तो मन की छटपटाहट यही इंगित करती रहती है कि भागदौड़ की दुनिया से कुछ पलों के लिए कहीं निकल जाएं। इस मायने में सर्वश्रेष्ठ उपाय है यात्रा। कहीं भी अपने माहौल से दूर निकला जाए और कुछ दिन बिताकर, फिर तरोताजा होकर अपनी दुनिया में आया जाए।
अपने आसपास देखने पर महसूस किया जा सकता है कि बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अपने दायरे में सिमटे हुए हैं। कुछ अपनी पारिवारिक परेशानियों में ही मगन है तो कुछ लोग हैं, जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। मन सभी का करता है कुछ पलों के लिए बाहर निकलने का। पर कुछ लोग समय नहीं निकाल पाते तो कुछ लोग यात्रा को अनावश्यक व्यय मानते हुए कहीं जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
ऐसे में यात्राओं को कुछ अलग ढंग से परिभाषित करने की जरूरत है। आमतौर पर देखा जा सकता है कि लोग कागज पर यात्रा का कार्यक्रम बनाते हैं तो उसमें लाभ-हानि का गणित बिठाते हुए यात्रा कार्यक्रम को इतना लंबा खींच लेते हैं कि जब जाने का वक्त आता है तो आदमी के हाथ-पांव फूल जाते हैं। जब दो दिन के लिए कभी घर से नहीं निकलना हुआ हो तो यह कैसे संभव होगा। कमरे में बैठकर, नक्शे पर छोटे-छोटे बिंदु देखकर आदमी यह सोचता है कि जब जा ही रहा है तो सारी जगह घूम लेगा।
लेकिन यथार्थ में यह संभव नहीं हो पाता। ऐसे में सर्वश्रेष्ठ उपाय है छोटी-छोटी यात्राओं का चयन करना। मसलन, हम अपने शहर से तीन-चार सौ किलोमीटर के दायरे की जगह को चुन सकते हैं। अगर हम आर्थिक रूप से अधिक व्यय नहीं चाहते, तो ट्रेन या बस से जा सकते हैं। पर्यटन कंपनियों या समूहों की ओर से चलाई जानी वाली छोटी-छोटी यात्राओं के पैकेज भी ले सकते हैं, ताकि बाकी चीजों को लेकर निश्चिंत रहा जा सके। बाहर का ठहराव एक या दो रातों का भी रखा जा सकता है।
इस सबसे घर से निकलते वक्त हमें एक मनोवैज्ञानिक फायदा मिल सकता है कि दिमाग में यह राहत रहेगी कि कल या परसों तो घर वापस आ ही जाएंगे। छोटी यात्रा झट से संपन्न भी हो जाती है। इसमें कामकाजी लोगों को अलग से ज्यादा छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। यात्रा की दिशा हम अपनी चाह के आधार पर तय कर सकते हैं। अगर हमारी रुचि धार्मिक स्थानों में हो तो धार्मिक, अगर प्राकृतिक सौंदर्य अधिक आकर्षित करता हो तो इससे संबंधित जगहों पर जा सकते हैं।
जगह हमारे मन के अनुकूल हो तो यात्रा के सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। यों जगहों के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल कर लेना बेहतर रहता है। घूमने और खाने-ठहरने की जगहों के बारे में पहले हासिल जानकारी से वक्त का सदुपयोग किया जा सकता है। एक अन्य जरूरी पहलू ध्यान रखने का यह होता है कि घर से बाहर निकलते वक्त असुविधाओं को स्वाभाविक मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। स्वीकार भाव से कहीं जाया जाए तो असुविधाएं भी एक विशेष अनुभव दे सकती हैं।
यों छोटी यात्रा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर हमें वह जगह अच्छी नहीं लगी, तो निकट होने से यह लगेगा कि कोई बात नहीं, कल तो घर पहुंच ही जाएंगे। पास होने से हम तय वक्त से पहले भी घर पहुंच सकते हैं। छोटी यात्राएं हमारी बड़ी यात्राओं की भूमिका बना सकती है। दरअसल, यात्राएं हमारे जीवन में तब बदलाव लाती हैं, जब हम अपने कुएं से निकलकर बाहर झांकते हैं।
एक नई तरोताजा आबोहवा से हमारे जीवन में निश्चित तौर से बदलाव आता है। यात्रा में कुछ दिन जब घर से बाहर रहते हैं तो हम एक नई दुनिया देखते हैं। बाहर निकलकर लगता है कि दुनिया बहुत बड़ी है। सबके अपने दुख-सुख है। जीवन के इस पहलू के निरीक्षण से हम मानसिक रूप से सबल बनते हैं। बस जरूरत है कि अपने भीतर की यात्राओं से इतर कभी बाहरी दुनिया की भी यात्रा की जाए।