रमेश चंद मीणा

लेकिन वर्तमान में आदिवासी खत्म होने की कगार पर हैं। यही क्रम जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आदि मानव कहलाने वाली प्रजाति इस धरा से नष्ट हो जाएगी। एक आदिवासी प्रजाति जब खत्म होती है, तब उसके साथ बहुत कुछ दफ्न हो जाता है। एक दशक पूर्व ‘बो’ आदिवासी वृद्धा के मरने के साथ ही न केवल ‘बो’ जनजाति खत्म हो जाती है, बल्कि उसके साथ ‘बो’ भाषा भी खत्म होती है। उस जाति की संस्कृति और सभ्यता भी हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।

जब भी आदिवासी विषय पर चिंतन या विमर्श किया जाता है, तब आखिर आदि मानव को बचाए रखने की चिंता निहित होती है। भारत के अंडमान निकोबार में आदि मानव की तरह रहती हुई आदिवासी प्रजातियां हैं, जिन्हें बाहरी आबोहवा से बचाने के सरकारी उपक्रम किए जा रहे हैं। आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने, उन्हें अपनी आदिम स्थिति से ऊपर उठाने के जितने प्रयास हुए हैं, उनका लाभ कुछ सक्षम आदिवासियों ने भले उठाया हो, पर अभी भी हाशिए पर रहने या जीने वाली बहुत-सी जनजातियां हैं, जो गहरे और सघन जंगल, ऊंचे पहाड़ों और टापुओं में आदिम जीवन जी रही हैं।

ऐसे क्षेत्र और टापू भारत में भी देखे जा सकते हैं। मध्य भारत के आदिवासी बहुल बड़े जिले बस्तर और अंडमान निकोबार के टापू में रहने वाले आदिवासी हर तरह के लोकतांत्रिक हक-हकूकों से महरूम हैं और अपनी अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। या फिर वे जो नक्सली क्षेत्र हो चले हैं, जहां आदिवासी पुलिस और नक्सली दोनों की गोलियों के शिकार होकर नष्ट हो रहे हैं।

आदि मानव पर मंडरा रहे आसन्न संकट से नजर चुराना मुश्किल हो जाता है जब अमेजन के जंगल में ‘मैन आफ द होल’ नाम के आदिवासी के अंतिम व्यक्ति का अंत होने की खबर सामने आती है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। सन 1990 में ब्राजील के जंगल की जमीन हासिल करने के लिए अंकत्सू आदिवासियों का जनसंहार किया गया।

उस घटना के बाद केवल सात लोग ही बचे रह गए, जो गहरे जंगल में चले गए। उनमें से भी 2019 तक महज चार बच पाए। पीरीपकुरा आदिवासी जाति से अब दो पुरुष और एक महिला बची रह गई है। लात्विया समंदर के किनारे रहने वाले रैनडलिस्ट की आबादी 2018 तक सिर्फ दो सौ बची थी, जो लगातार हमलों का शिकार हो रहे हैं।

इस संदर्भ में ब्राजील के ‘मैन आफ द होल’ के खत्म होना एक जीवंत उदाहरण है। ‘मैन आफ द होल’ पर ब्राजील के आदिवासी विशेषज्ञ मार्सेलो दोस संटोस का कथन है- ‘उसे अपनी मौत का पहले ही आभास हो जाता है।’ वे आदिवासियों के नष्ट किए जाने के इतिहास में जाते हैं और पाते हैं कि जमीन पर कब्जा करने वाले लोग इन पर बेरहमी से हमला करते हैं।

जंगल काटकर खेत बनाने वाले इन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। 1995 में ‘मैन आफ द होल’ कहलाने वाली जनजाति पर बंदूक से गोलियां चलाई गई थीं, जिसमें छह लोग मारे गए। इस घटना में अकेला ‘मैन आफ द होल’ बचा रह गया था। लेकिन अब उसके मरने के साथ ही जनजाति का आखिरी इंसान भी दुनिया से रुखसत कर गया, अंडमानी बुजर्ग महिला बोआ की तरह।

आदिवासी विशेषज्ञ मार्सेलो दोस संटोस ने ‘मैन आफ द होल’ से 1996 में पहली बार बात करने का प्रयास किया था। इससे जाहिर होता है कि वह किसी तरह से अन्य जाति के संपर्क में ही नहीं आ सका था। ठीक अंडमानी टापू पर रह रही आदिवासियों की तरह जो पूरी तरह से शिकार या कंदमूलों पर आश्रित रहते हैं। वे किस भाषा में बात करते हैं? उनके रीति-रिवाज क्या है? ये सब बातें तभी बाहर आ सकेंगी, जब आदिवासी विशेषज्ञ उनके बीच पहुंचेंगे और अध्ययन करेंगे। ऐसा करना इसलिए भी संभवनाएं पैदा करेगा कि उनके आदिम व्यवहार शेष दुनिया और मानवशास्त्रियों के लिए उपयोगी हो सकेंगे, बल्कि उनके हित में उपयोगी कदम उठाए जा सकेंगे।

दरअसल, आदिवासी मनुष्यता के पहले पायदान पर है। लोकतंत्र में हाशिये पर रह रहे आदिम समुदायों का समग्र जीवन हर तरह से संरक्षित होना आवश्यक है। लोकतंत्र का आधार तभी मजबूत हो सकता है जब आदिम समुदाय अपनी आदिम अवस्था से मुक्ति पा सकें, न कि वे समूल ही नष्ट हो जाएं। आदिवासियों का इस तरह अपने समाजों का अंतिम इंसान होते जाना लोकतांत्रिक सरकारों के खिलाफ प्राकृतिक समन है।

ऐसे आदिम समुदाय ब्राजील के हों या भारत के, सभी आदिवासी चिंतकों को इस विषय पर गंभीरता से चिंतन करने व समुचित कदम उठाने की आवश्यकता है। आदिवासियों की कुछ खास विशेषताएं रही हैं, जो हर दौर में अनुकरणीय रहेंगी। पर्यावरण का रक्षक होना, कम से कम में अपना गुजारा करते हुए प्रकृति पर आश्रित रहना। आदिवासियों के बने रहने से जंगल सुरक्षित रहते आए हैं। हर देश की सरकारें विकास की बात करतीं हैं और विकास प्रकृति की कीमत पर हो रहा हैं।