कृष्ण कुमार रत्तू
यह नया कालचक्र है। यह रंगों से चकाचौंध एक नया मंच है, जिस पर हम नया जीवन जीने के लिए एक नई तरह की जीवन पद्धति को अपना चुके हैं। अब इसका संदर्भ, अर्थ और उसका कलात्मक पक्ष जीवन की रचनात्मकता के लिए एक नया वर्तमान हमने अपने लिए ईजाद किया है। इन दिनों यह सचमुच चौंकाने वाला है। आज हमारा वर्तमान और भविष्य रोबोट जिंदगी से आभासी दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण किस तरह के आत्मबोध में है और किस तरह सिर्फ ‘स्क्रीन’ का रिश्ता रह गया है, वह और भी भयावह स्थिति की ओर इंगित करता है।
आज इस आभासी दुनिया के कारण हमारी जिंदगी का समूचा जीवन और मानवीय मूल्यों की रक्षा, इसका आत्मसम्मान इस समय कहां खत्म होता जा रहा है। अब सच तो यह है कि आज समाज के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो गया है। यह बढ़ती हुई नई सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया हो गई है और हमारी नई पीढ़ी और हमारा वर्तमान इसी नई दुनिया के कारण आज इतना छोटा हो गया है।
अब ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की परिभाषा और वैश्विक गांव की भाषा का मूल आधार बदलने जा रहा है। इसी मूल आधार के बदलते हुए हमने अपनी भाषा का अपना सौंदर्य बोध, आचार-विहार और अपने जीने का तरीका इस तरह से बदल लिया है कि अब हम जिन खबरों को ढूंढ़ते हैं, जिन सपनों को ढूंढ़ते थे, अब इन दिनों उसके बीच में लटक कर रहे गए हैं।
आज गांव और शहर का आदमी अलग है और उसके बीच एक महानगरीय जिंदगी का चेहरा एक अलग तरह के अद्भुत अच्छे अहसास की दिशायंत्र की जिंदगी की नई दिशाएं दिखा रहा है। यही कारण है कि आज भारत जैसा देश गरीब और अमीर में बंट गया है। विकास की नई राह खोजते हुए भारत के लिए अपना मन-मस्तिष्क प्राकृतिक सौंदर्यबोध के साथ छटपटा रहा है।
आज सारा का सारा सम्मोहन ऐसी जिंदगी का एक ऐसा प्रतीक बन गया है कि जिस पर सबको विश्वास है, पर आदमी का यानी मनुष्य का अपनी जमीन से रिश्तों से, भावनात्मक सपनों से रिश्ता लगभग टूट गया है। इस समय हम कितने अकेले हैं और कितने निरीह सपनों के पीछे भागने वाले हो गए हैं! हमारी रिश्तों की झोली खाली है।
हमारी जमीन के प्राकृतिक सौंदर्यबोध से फलों का रसहीन हो जाना और फूलों का महक से अधीर हो जाना हमारी नई जिंदगी को दर्शाता है। अब शादियों के शगुन भी आनलाइन होने लगे हैं तो किसी की उपस्थिति भी वीडियो काल से लग सकती है। यही आज नई आभासी जिंदगी का एक नया परिदृश्य है, जिस पर हम चौंक सकते हैं, पर आभासी दुनिया के इस नई जिंदगी के संदर्भ में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस जीवंत संभावनाओं से भरी कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी एआइ की दुनिया अब और भी चौंकाने वाली है।
इसमें सिर्फ अपनी इच्छा जाहिर करनी है यानी हमें कंप्यूटर को हुक्म देना है और वह चीज सामने तैयार होकर किसी भी भाषा में, किसी भी समय की किसी घटना का संपूर्ण विवरण मिनटों में प्राप्त हो जाएगा। इसीलिए आज पूरी दुनिया में यह चिंताजनक बात है कि यह मानवीय विकास के लिए एक नया खतरा है। पश्चिम में बहुत से देशों ने इसके बारे में पाबंदी लगाने की भी बात कही है, लेकिन यह विज्ञान की दुनिया है।
बहुत पहले जब किराए की कोख से वैज्ञानिक तकनीक से बच्चे पैदा करने का एक नया विकास का पहिया और विज्ञान की सोच सामने आई थी तो इसका भी विरोध किया गया था। इन दिनों अब जब समलिंगी शादियां होने लगी हैं, उनको मान्यता मिलने लगी है तो फिर इस आभासी दुनिया की ‘चैट-जीपीटी’ ही क्यों सवालों के घेरे में है?
दरअसल, सबसे खतरनाक बात यह है कि आज इस आभासी दुनिया के नए सौंदर्यबोध ने लोगों को उनके मां-बाप से लेकर दूसरे रिश्तों से काट दिया है। यह रिश्तों का कटना किसी को और भी उदासीनता के साथ मनोवैज्ञानिक स्तर पर अकेलेपन में धकेल सकता है। इसका अंदाजा इन दिनों जापान से लेकर मेक्सिको तक और मध्यपूर्व से लेकर दुनिया के उन देशों में देखा जा सकता है।
इस नई तकनीक की नई प्रौद्योगिकी की दुनिया में हम तकनीक के जरिए पतंगें उड़ा सकते हैं। आसमान में उड़ सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन धरती सूनी हो रही है और इस सूनी हो रही धरती का संताप हम जान सकते हैं। यह संताप आने वाली नस्लें भुगतेंगी। उस समय वे देखेंगे कि आभासी दुनिया में हमारा मन-मस्तिष्क, शरीर, दिल, दिमाग सब खोखला कर दिया गया है और मानवीय रिश्तों की डोर को, धरती के संगीत और रिश्तो की प्रीत को कहां छोड़ दिया हमने!
विज्ञान में नई शोध होगी, नया मुहावरा होगा। एक नई दुनिया होगी और उसमें एक नया सवेरा होगा। फिर आभासी दुनिया के साथ धरती के सच को छोड़कर क्यों न हम एक नए समाज का और नई सुंदर धरती का ऐसा रचनात्मक परिवेश पैदा करें, जिसमें मोहब्बत, इंसान के रिश्ते और धरती का प्राकृतिक सौंदर्य जिंदा रह सके।