हाल ही में दोस्तों के साथ घूमते हुए मुझे जयसमंद झील देखने का मौका मिला। झील पर पहुंच कर सभी दोस्त फोटो लेने में व्यस्त हो गए और मैं झील के किनारे बैठ गया। दोनों ओर पहाड़ों से घिरी झील की खूबसूरती शाम के समय अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। कहते हैं कि जयसमंद झील एशिया का मानव निर्मित सबसे बड़ा जलाशय है। महाराणा जयसिंह ने इस झील का निर्माण करवाया था, इसलिए इस झील का नाम जयसमंद पड़ा। स्थानीय लोग इसका एक और नाम बताते हैं ‘ढेबर दर्रा’। यह दो पहाड़ियों के बीच बनी एक विशाल झील है। 1685 से लेकर 1691 तक बांध बना कर इसे निर्मित करवाया गया था। गोमती, सहायक नदियों और कुछ बरसाती नालों का पानी झील में आकर मिलता है। इसलिए कहा जाता है कि नौ नदियों और निन्यानवे नालों से पानी आकर झील में मिलता है।
झील के किनारे स्थित पहाड़ी पर एक महल है, जिसे ‘रूठी रानी का महल’ के नाम से जाना जाता है। कर्नल टोड के अनुसार, राणा जयसिंह ने अपनी प्रिय पत्नी कमलदेवी के लिए यह महल बनवाया था। दरअसल, इस महल के बारे में भी अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, रानी रूठ गई और फिर कभी महल से बाहर नहीं आई। इसलिए इसको रूठी रानी के महल के नाम से जाना जाने लगा। एक स्थानीय निवासी के अनुसार, राणा जयसिंह की पत्नी अपनी सुंदरता के कारण दूसरी रानियों के लिए ईर्ष्या की पात्र बन गई और इसलिए उन्हें इस महल में कैद कर दिया गया। लेकिन कुछ इतिहासकार बताते हैं कि राणा जयसिंह की पत्नी कमलदेवी को वहां पर ‘रूता रानी’ के नाम से पुकारा जाता था। इसलिए कालांतर में रूता रानी के महल को रूठी रानी के महल के नाम से जाना जाने लगा।
मैं झील की खूबसूरती को निहार ही रहा था, तभी एक बच्चा मेरे पास आया और इशारा करते हुए बोला ‘सर, मक्का ले लो, मछलियों को खिला दो।’ मैंने नजर घुमा कर देखा तो लोग पानी में मक्का के दाने फेंक कर मछलियों को खिला रहे थे। मैंने मक्का खरीदने से मना किया तो बच्चे ने दोबारा आग्रह करते हुए कहा ‘सर, खरीद लो, आपके लिए पांच रुपए की थैली लगा दूंगा।’ मैंने मक्का खरीदने के बारे में सोचा, लेकिन जेब देखने पर याद आया कि अपना बटुआ कार में ही छोड़ आया हूं।
आखिर बच्चा इस उम्मीद में मेरे पास ही बैठ गया कि शायद मैं उसकी मक्के की बची हुई थैलियां खरीद लूंगा। तभी मेरी नजर बच्चे के कपड़े पर गई। बच्चे ने राजकीय स्कूल की वर्दी पहन रखी थी। फिर मैंने बच्चे से बातचीत करते हुए पूछा- ‘क्या तुम स्कूल में पढ़ते हो?’ बच्चे ने उत्तर दिया- ‘सर, मैं गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा छह में पढ़ता हूं।’ उसने मुझे बीच में टोकते हुए कहा- ‘सर, मछली को दाना खिला दो?’ शायद बच्चा शाम होने से पहले अपनी थैलियां बेच कर घर जाना चाहता था। मैंने बच्चे से पूछा- ‘मछली को दाना खिलाने से क्या होगा?’ बच्चे ने उत्तर दिया- ‘दाना खिलाने से आपको पुण्य मिलेगा।’
मैंने बात को घुमाते हुए उससे पूछा- ‘झील के दूसरे किनारे पर दिखाई दे रहा बड़ा-सा भवन किसका है?’ तब तक मक्का बेचने वाले पांच-छह बच्चे आकर बातचीत में जुड़ गए। बच्चे उत्साह के साथ बताने लगे- ‘सर, वह रिजॉर्ट है।’ मैं कुछ पूछता उससे पहले ही एक बच्चा बोला- ‘वहां पर एक कॉफी सौ रुपए की मिलती है।’ उनमें से एक बच्चे ने मुझसे ही प्रश्न किया- ‘सर, कॉफी समझते हो न आप?’ मैंने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई। एक बच्चे ने बातचीत आगे बढ़ाई- ‘सर, रिजॉर्ट में अंदर जाने के चार सौ रुपए और अंदर खाना खाने के बारह सौ रुपए लगते हैं।’ बच्चों की बातों से लग रहा था कि वे आसपास की चीजों के बारे में काफी जानकारी रखते हैं। फिर भी मैंने अपनी शंका दूर करने के लिए बच्चों से पूछा- ‘तुम सबको यह सब कैसे पता? क्या तुम कभी रिजॉर्ट में अंदर गए हो?’ बच्चे ने उत्तर दिया- ‘मेरा भाई उस रिजॉर्ट में काम करता है। वह वहां पर रोटी बनाता है।’
बच्चों से झील और उसके आसपास स्थित होटलों, उनके घरेलू रहन-सहन और भविष्य के सपनों के संदर्भ में हुई संक्षिप्त बातचीत मेरे मन में कई प्रश्न छोड़ गई। जैसे राजशाही के समय सत्ता राजाओं के हाथ में थी, फिर अंग्रेजों के हाथ में आई और आजादी के बाद लोकतांत्रिक प्रणाली भारत में आई। धीरे-धीरे सत्ता में परिवर्तन होता गया, लेकिन आज भी एक बड़ी आबादी के जीवन में परिवर्तन नहीं आया है। ऐसे लोग पहले भी आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े थे और आज भी पिछड़े हुए ही हैं। आज भी बड़ी आबादी हमारे विकासरूपी मॉडल के दायरे से बाहर है जो केवल शहरों तक सीमित है।