गोपेश्वर सिंह

‘अब आप खतरे से बाहर हैं…! इस नए जीवन का आनंद लें!’ आॅपरेशन के बाद जरूरी हिदायत के साथ अस्पताल से छुट्टी देते हुए डॉक्टर ने अंगरेजी में यही कहा। लगभग यही बात संबंधियों-शुभेच्छुओं ने भी कही कि यह मेरा पुनर्जन्म है। इन दिनों जिज्ञासा और प्रश्न घेर लेते हैं, जब कभी अकेला होता हूं। स्वास्थ्य लाभ के लिए घर में पड़ा हूं। कमजोरी के कारण न तो कहीं आ-जा सकता हूं और न लिख-पढ़ सकता हूं। ऐसे में अच्छे-बुरे खयालों का आना-जाना लगा ही रहता है।

पुनर्जन्म में मेरा रत्ती भर भी विश्वास नहीं। लेकिन बचपन से एक दार्शनिक किस्म का आवारा-सा खयाल मन में कभी-कभार आता रहा है कि मरने के बाद अपने जीवन को दूर से देखना कैसा रहेगा! मैं नहीं मानता कि मृत्यु के बाद अपने जीवन का पुनरावलोकन संभव है। लेकिन यह मानता हूं कि अपने से खुद को अलग करके जीवन को देखा जा सकता है। अपने भीतर के राग को विराग में बदलने से यह संभव है। जीवन से हमारा इतना अधिक रागात्मक मोह होता है कि इस विराग भाव के बारे में सामान्य मनुष्य सोच ही नहीं सकता। मुझे लगता है कि हिंदी में निराला ने इसे संभव किया था, तभी तो ‘आंखों के डोरे लाल-लाल’ जैसी रागात्मक पंक्ति लिखने वाले कवि ने गहन विराग भाव से भरी ये पंक्तियां लिखी होंगी- ‘मैं अकेला, देखता हूं, आ रही मेरे दिवस की सांध्य बेला!’ इन्हीं विपरीत भावों के कारण वे ‘राग-विराग’ के कवि हैं। ग़ालिब तो इस विराग भाव के उस्ताद हैं ही। इस विराग भाव की उपलब्धि के कारण रवींद्र मृत्यु-संगीत का आनंद लेते हैं। इस भाव को उपलब्ध करके दार्शनिकों ने जीवन और जगत की निर्मम-बेबाक व्याख्या की है। यह विराग ही वैराग्य की आधारभूमि है।

मुझे लगता है कि सबके जीवन में कभी-कभी विराग के क्षण भी जरूर आते होंगे। यह भाव कुछ के ही जीवन में आकार ले पाता है, बाकी उसे भूले रहते हैं। मैं खुद को ऐसे ही भूल जाने वाले लोगों की श्रेणी में रखता हूं। पिछले दिनों बीमारी के कारण मृत्यु मेरे इतना करीब आती गई कि मुझे उसकी साफ पदचाप सुनाई देने लगी। डॉक्टरों ने बीमारी की गंभीरता और उसके खतरनाक परिणाम की चर्चा की कि मेरा जीवन खतरे में है, आॅपरेशन का परिणाम कुछ भी हो सकता है। जांच-रिपोर्ट के मुताबिक अपेंडिक्स चार-पांच दिन पहले फट चुका था, उसके जहर के शरीर में फैल जाने के कारण आंत पूरी तरह बंद हो चुकी थी।

मृत्यु-भय से मेरे ऊपर भावुकता हावी होती गई। बचपन से लेकर अब तक की जीवन-यात्रा स्मृति के परदे पर एकबारगी कौंध गई। मृत-जीवित सभी रक्त संबंधी, अच्छे-बुरे सभी तरह के दोस्त तेजी से याद आते रहे। जीवन-रक्षक उपकरण लग चुके थे। इसी बीच कुछ खल मित्रों ने मोबाइल संदेश के जरिए अफवाह उड़ा दी कि मेरा निधन हो गया है। यह संदेश मेरे मोबाइल पर भी आया, जिसे घरवालों ने पढ़ा। फोन आने लगे। जीवन के छूटने की आशंकाजनित पीड़ा से मैं नीम बेहोशी में चला गया। मेरे भाई और वहां उपस्थित लोगों ने समझा कि मुझे नींद आ गई है।

लगभग एक घंटे बाद मेरी चेतना लौटी तो लगा कि इस अति ‘जीवन-मोह’ के कारण बचने की जो थोड़ी उम्मीद है, वह भी जाती रहेगी। फिर उपाय क्या है! मैंने अपनी दिवंगत मां को याद किया। उसकी याद से मुझे वैसे ही ताकत मिलती है, जैसे आस्तिकों को ईश्वर से मिलती है। जानता हूं कि यह शक्ति मनोवैज्ञानिक भर है। लेकिन मेरे लिए यह भौतिक सच्चाई से बढ़ कर है। शायद अवचेतन में यह बात बैठी है कि मां हर मुसीबत से उबार लेगी। आखिर बचपन में उबार ही लेती थी न!
मृत्यु-भय से उपजी भावुकता को मैंने झटका और सोचा कि हो जाए, जो होना है। थोड़ी देर बाद मैं हर तरह के भय से मुक्त था। मन स्थिर हो चुका था। बचपन से अब तक का जीवन मेरे सामने था। बहुत-सी वे चीजें, जिनके लिए मैंने जमीन-आसमान एक कर दिया था, अब व्यर्थ थीं। ईर्ष्या नहीं थी, जीवन में जिन्हें शत्रु मानता था, उनके प्रति कोई कटुता नहीं थी। पत्नी, पुत्र, भाई, संबंधी, जिनके लिए अच्छे-बुरे का भेद भूल कर जीवन होम कर देने का जो भाव था, वह तिरोहित हो चुका था और उसकी जगह असंपृक्त हृदय धड़क रहा था। भले ही न कर पाया होऊं, लेकिन दुनिया के लिए कुछ करने की जो युवा दीवानगी थी, वह भी शांत-चित्त थी। मैं बहुत सुखी महसूस कर रहा था। मन की यह स्थिति बहुत दिनों तक बनी रही। शायद यह मन का विराग भाव था!

लेकिन अब ज्यों-ज्यों स्वस्थ हो रहा हूं, विरागी मन त्यों-त्यों तिरोहित हो रहा है। मनपसंद चीजें खाने की इच्छा होने लगी है, प्रिय मित्रों-संबंधियों को याद करने लगा हूं, देर से आने पर अखबार वाले को डांटने लगा हूं, पत्नी से लड़ाई भी होने लगी है, बेटों के देर तक सोने पर गुस्सा होने लगा हूं, विश्वविद्यालय का अपना काम याद आने लगा है…! यह शायद मेरे भीतर रागी मन की वापसी है। दो महीने की यातना और मौत से संघर्ष के परिणामस्वरूप उपजा विराग भाव यादों से गायब हो रहा है। लगने लगा है कि यह रागी जीवन ही सच है, बाकी सब तो एक सपना था!

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