महेंद्र राजा जैन

आजकल अंगरेजी का आकर्षण इस कदर बढ़ गया है कि हर मां-बाप और अच्छे खाते-पीते या संपन्न घरों के लोगों से लेकर कमजोर तबकों के लोग भी अपने बच्चों को अंगरेजी माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ाने के इच्छुक रहते हैं। इसका फायदा उठा कर आजकल हर गली-मोहल्ले में खुल गए अंगरेजी माध्यम के स्कूलों के बोर्ड लगे दिख जाते हैं। इन पर लिखी इबारत पढ़ कर कभी-कभी तो हमें अपने अंगरेजी ज्ञान पर संदेह होने लगता है। सोचना पड़ता है कि जो लोग खुद सही अंगरेजी नहीं लिख या बोल सकते, जिन्हें ए बी सी डी से आगे इन अक्षरों से बनने वाले शब्दों और वाक्यों की ठीक से जानकारी नहीं, वे बच्चों को क्या और कैसा पढ़ाते होंगे! कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि बच्चे घर से सही अंगरेजी लिख कर लाते हैं और विद्यालय में शिक्षक उनके सही लिखे हुए को भी ठीक करने के नाम पर गलत बता देते हैं। इन तमाम विद्यालयों में अंगरेजी का भूत इस कदर हर वक्त उपस्थित रहता है कि बच्चे हिंदी में बोलने से तो डरते ही हैं, गलत अंगरेजी बोलने पर शिक्षक की डांट खाने का भी डर रहता है। अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिनमें किसी बच्चे को अंगरेजी के बजाय कोई और भाषा बोलने पर दंडित करने का ब्योरा होता है। जगह-जगह कुकुरमुत्ते के समान खुल गए और चल रहे इन छोटे-मोटे शिक्षण संस्थानों की बात तो दूर, वर्षों से स्थापित और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में भी देखा जा रहा है कि वहां के अध्यापकों का अंगरेजी ज्ञान आधा-अधूरा होता है।

मेरे शहर इलाहाबाद में प्राचीन भारत के किसी महर्षि के नाम पर चलाए जा रहे एक विद्या मंदिर में अंगरेजी माध्यम से पढ़ाई होती है और शहर के बड़े-बड़े अफसरों, न्यायाधीशों, डॉक्टरों, इंजीनियरों आदि के बच्चे वहां पढ़ते हैं। इससे लगता है कि वहां पढ़ाई का स्तर काफी अच्छा होगा। ‘शिक्षा का माध्यम अंगरेजी है’, यह बताने के लिए जरूरी समझा जाता है कि वहां होने वाले कार्यक्रमों के आमंत्रण पत्र, विद्यालय की विवरणिका, बुलेटिन आदि भी अंगरेजी में छपाए जाएं। यह शहर का सबसे बड़ा अंगरेजी माध्यम स्कूल है और इस समय वहां करीब दस हजार से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं।

पिछले दिनों इस विद्या मंदिर के सालाना उत्सव के अवसर पर दिन भर चलने वाले ‘महाकार्यक्रम’ का अंगरेजी में छपा आमंत्रण कार्ड मिला। कार्यक्रम का उद्घाटन शहर के सर्वोच्च अधिकारी ने किया। मुख्य वक्ता और मुख्य अतिथि के रूप में भी कुछ आला अधिकारी आए हुए थे। कार्ड देख कर आश्चर्य हुआ कि अंगरेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले इस विद्या मंदिर के अधिकारियों को यह भी ज्ञान नहीं कि आमंत्रण कार्ड पर आतिथेय का नाम किस प्रकार लिखा जाना चाहिए। अगर आप किसी कार्यक्रम के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं, तो क्या अंगरेजी में छपाए गए आमंत्रण कार्ड पर आतिथेय यानी अपने ही नाम के पहले अंगरेजी में ‘प्रो’ यानी ‘पीआरओएफ’ या डॉक्टर यानी ‘डीआर’ जैसे शब्द भी लिखेंगे? निश्चय ही नहीं। पर इस आमंत्रण कार्ड पर आतिथेयों के नाम के पहले ‘एमआर’ और ‘पीआरओएफ’ लिखा जाना इस बात का परिचायक कहा जा सकता है कि इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक, अधिकारियों और अध्यापकों तक को सामान्य अंगरेजी का ध्यान रखना जरूरी नहीं लगता है या फिर उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं है।

सामान्य तहजीब न जानने के कुछ मामलों को नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन कार्ड पर छपे संस्थापक के परिचय से यह तो पता चलता है कि विद्यालय के अध्यापकों को अंगरेजी के वाक्य में एकवचन और बहुवचन के साथ प्रयोग की जाने वाली सही क्रियाओं का ठीक से ज्ञान नहीं है। मैंने अध्यापकों का जिक्र इसलिए किया कि कार्ड पर छपे मजमून आमतौर इस आयोजन से जुड़े अध्यापक ही तैयार करते होंगे। कार्ड पर मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में शहर के प्रमुख अधिकारियों का नाम था। क्या उनका ध्यान कार्ड पर अंगरेजी की इन भूलों पर भी गया होगा? अगर गया होगा तो वे इस संस्था के अध्यापकों और अधिकारियों के संबंध में क्या सोचते होंगे? किसी भी वक्ता ने अपने संबोधन में इस पहलू का जिक्र नहीं किया। इसका कारण यही हो सकता है कि या तो उन्होंने गौर नहीं किया होगा या फिर इसलिए इसे अनदेखा किया कि खुद उनके बच्चे भी वहीं पढ़ रहे हैं। मगर सवाल है कि जिस उम्र में बच्चों का दिमाग आकार ले रहा होता है, उसमें वे बच्चे क्या सीख रहे हैं और भविष्य में किस स्तर की जानकारी का प्रसार करेंगे!

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta