भावना मासीवाल
पिछले कुछ सालों से और खासतौर पर बीते डेढ़-दो सालों के दौरान इंटरनेट पर निर्भरता जिस कदर बढ़ी है, वह प्रथम दृष्ट्या भली लगती है। लेकिन इंटरनेट केंद्रित दुनिया देखने में हमें जितनी सरल लगती है, उतनी है नहीं। इसकी जटिलता को वर्तमान समय की परिस्थितियों में अधिक गहराई से जाना जा सकता है, जब दुनिया सिकुड़ कर चारदिवारी के भीतर मोबाइल और लैपटॉप में कैद हो गई है। कभी हम खुश थे कि आधुनिक तकनीक ने पूरे विश्व को एक पटल पर ला खड़ा किया है और हमारी कार्य प्रणाली को अधिक सुगम बना दिया है। लेकिन आज की स्थितियों ने आधुनिक तकनीक से भरी जिंदगी को अधिक अवसादमय बना दिया है। मौजूदा दौर में महामारी के संकट के कारण सभी तरह के काम ऑनलाइन तकनीकी प्रणाली का हिस्सा बन गए हैं। बंद कमरे में काम करने की व्यवस्था ने परिवार के भीतर भी व्यक्ति को अकेला बना दिया है। इस कारण विद्यार्थी से लेकर अभिभावक और कर्मचारियों तक के भीतर मानसिक क्षोभ के भाव पैदा हो रहा है।

तकनीक ने हमारे जीवन को सरल अवश्य बनाया है, लेकिन यही तकनीक अब बच्चों से लेकर बड़ों तक में अवसाद का कारण बन रहा है। कक्षा-कक्ष के वातावरण में जहां विद्यार्थी अपने शिक्षकों और अपने परिवेश से ज्ञानार्जन करते थे और विद्यालयी परिवेश में सहयोग और साहचर्य की प्रवृत्ति सीखते थे, वहीं ऑनलाइन की दुनिया में बच्चे इस परिवेश से दूर, नितांत एकाकी हो गए हैं। उनकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई है। शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक और विद्यार्थी के कक्षा-कक्ष के संबंध को ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था से बदला नहीं जा सकता है। यह संबंध आत्मीय और आत्मज का संबंध है, जिसे ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था पूरी नहीं कर सकती है।

हमारे देश में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली कितनी कारगर है, इसे जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन की स्थितियों से भी जाना जा सकता है। आज भी ऐसे कई वर्ग हैं जो तकनीकी सुविधाओं तक अपनी पहुंच नहीं रखते हैं। कुछ जो पहुंच रखते भी हैं, उनमें इतनी क्षमता नहीं होती है कि वे परिवार में बच्चों की हर महीने की ऑनलाइन शिक्षा के लिए पांच सौ से हजार रुपए में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करा सकें। अगर परिवार में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या एक से अधिक होती है तो परिवार ऑनलाइन शिक्षा के लिए अनुपलब्ध हो जाता है। अमूमन परिवार में एक ही फोन की सुविधा और उसका भी ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप स्मार्ट नहीं होना भी बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से दूर ले जाता है। इस मुश्किल की सबसे बड़ी शिकार लड़कियां होती हैं।

हमारे देश में गांव, कस्बों और शहरों तक में ऐसे कई वर्ग मौजूद है जो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से जुड़ने में असमर्थ हैं। यह असमर्थता कहीं ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के बुनियादी उपकरण स्मार्ट फोन, अच्छी इंटरनेट सुविधा की उपलब्धता, जगह, बिजली आदि के कारण होती है तो कहीं महामारी से उपजी रोजगार की समस्या के चलते उत्पन्न होती है। पारिवारिक समस्याओं और बेरोजगारी से जूझते ऐसे परिवार के बच्चे, माता-पिता और परिवार के भरण-पोषण के लिए शहरों से लेकर गांवों तक में काम करते देखे जा सकते हैं। महानगरों में इस असमर्थता का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है जहां एक ओर दो कमरों में पूरा परिवार रहता है, उसी में एक कोना तलाशना और ऑनलाइन कार्य करना, अपने आप में व्यवस्था और खुद की असमर्थताओं का द्वंद्व है। वहीं ग्रामीण परिवेश में बुनियादी सुविधाएं मसलन, बिजली, फोन, नेटवर्क का अभाव ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था में बाधक तत्त्व के रूप में आज भी काम कर रहे हैं। इस व्यवस्था से वर्तमान में विद्यार्थियों के साथ-साथ ऑनलाइन कार्य व्यवस्था से जुड़े लोग जूझ रहे हैं।

इसी क्रम में वे बच्चे जो किसी तरह से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के मानदंडों को पूरा कर भी पा रहे हैं, वे अवसाद की स्थितियों से घिरते देखे जा रहे हैं। दरअसल, बीते एक साल से ऑनलाइन व्यवस्था में पढ़ाई और भविष्य की अनिश्चताओं का दबाव उन्हें अवसाद में डाल रहा है। कक्षा में यह अवसाद विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ संवाद के क्रम में न केवल कम हो जाता है, बल्कि मिल कर बेहतर विकल्प की तलाश के रास्ते तलाशता है। वहीं ऑनलाइन में यह संवाद आत्मीय और प्रभावी नहीं हो पाता है, क्योंकि ऑनलाइन प्रक्रिया का मापदंड सभी द्वारा पूरा किया जा सके, यह आज भी संभव नहीं हो सका है। वर्तमान समय की परिस्थितियों के मद्देनजर और नई शिक्षा नीति के अंतर्गत ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर विशेष जोर दिया जा रहा है। नई व्यवस्था जिस तरह की बनती दिख रही है, उसमें इस माध्यम पर निर्भरता को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। मगर आज भी हमारे देश में कई वर्ग ऐसे हैं जो तकनीकी सुविधाओं को प्राप्त करने में असमर्थ हैं। ऐसा नहीं है कि ऑनलाइन व्यवस्था बिल्कुल अप्रासंगिक है, लेकिन वे बच्चे और वे लोग कौन हैं जो आज भी इस व्यवस्था से कोसों दूर हैं? उन्हें खोजना और उनके लिए एक बेहतर और समावेशी व्यवस्था का निर्माण करना अभी आवश्यक है।